नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (हि.स.)। स्वदेशी तौर पर निर्मित पनडुब्बी रोधी टोही जंगी जहाज (एएसडब्ल्यू) ‘आईएनएस कवरत्ती’ गुरुवार को औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल हो गया। विशाखापत्तनम स्थित नौसेना के डॉकयार्ड में थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने जंगी जहाज के ऊपर ही हुए एक समारोह में इसे नौसेना के बेड़े में कमीशन किया। भारतीय नौसेना कामोर्टा क्लास के इस युद्धपोत को एक युद्ध मंच के रूप में इस्तेमाल करेगी, क्योंकि इस पर लगी सभी प्रणालियों के समुद्री परीक्षण पूरे किये जा चुके हैं। यह जंगी जहाज परमाणु, केमिकल और बायलॉजिकल युद्ध की स्थिति में भी काम करेगा। रडार की पकड़ में नहीं आने के कारण इससे नौसेना की ताकत में इजाफा होगा।
कामोर्टा क्लास के युद्धपोत ‘आईएनएस कवरत्ती’ को शक्तिशाली एंटी-सबमरीन वारफेयर (एएसडब्ल्यू) के रूप में जाना जाता है। भारतीय नौसेना के घरेलू संगठन नौसेना डिजाइन निदेशालय ने स्वदेशी रूप से स्वीडन की एक कंपनी की मदद से डिजाइन किया है। गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई), कोलकाता ने इसे भारतीय नौसेना की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से निर्मित किया है। इस प्रकार स्वदेशीकरण के माध्यम से इस जहाज का निर्माण किये जाने से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का राष्ट्रीय उद्देश्य भी पूरा हुआ है। इस जहाज में 90 प्रतिशत तक स्वदेशी सामग्री लगाई गई है और सुपरस्ट्रक्चर के लिए स्टील के बजाय कार्बन कंपोजिट का उपयोग किया गया है। जहाज में लगाये गए हथियार और सेंसरसुइट भी स्वदेशी हैं, जिससे जहाज निर्माण के क्षेत्र में देश की बढ़ती क्षमता प्रदर्शित होती है।
नौसेना प्रवक्ता ने बताया कि इसे एक नए युद्ध मंच के रूप में नौसेना इस्तेमाल करेगी क्योंकि इस पर लगी सभी प्रणालियों के समुद्री परीक्षण पूरे किये जा चुके हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान लगे प्रतिबंधों के बावजूद समय से ‘आईएनएस कवरत्ती’ का निर्माण करना और नौसेना को संचालन के लिए सौंपना अपने आप में एक सराहनीय उपलब्धि है। ‘आईएनएस कवरत्ती’ को परिचालन बेड़े में शामिल करने के साथ ही भारतीय नौसेना की तैयारियों को बढ़ाया जाएगा।
‘आईएनएस कवरत्ती’ की खासियत
यह युद्धपोत रडार की पकड़ में नहीं आता, इसलिए इससे कम दूरी, मध्यम और लंबी दूरी रॉकेट हमला भी किया जा सकता है। रडार की पकड़ में नहीं आने के कारण इससे नौसेना की ताकत में इजाफा होगा। यह युद्धपोत परमाणु, केमिकल और बायलॉजिकल युद्ध की स्थिति में भी काम करेगा। इस युद्धपोत से हवा में 8 किमी. और सतह पर 12 किमी. तक एक मिनट में 120 राउंड फायर किये जा सकते हैं। सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली से लैस इस युद्धपोत पर 12 डिफेंस मिसाइल प्रणालियां लगाई गईं हैं। इतना ही नहीं दुश्मन को पानी के अन्दर ही मार गिराने के लिए इस जंगी जहाज में में डेप्थ रेंज रॉकेट और टॉरपीडो लगाए गए हैं। ‘आईएनएस कवरत्ती’ में एंटी-सबमरीन सेंसर लगे हैं, जो दुश्मन की पनडुब्बी को पकड़ने और उस पर प्रहार करने में माहिर होते हैं। इस पी-28 युद्धपोत में 76 एमएम का गन सिस्टम लगा है। इसमें पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता के अलावा विश्वसनीय आत्मरक्षा क्षमता भी है।
यह है जीआरएसई का 104वां पोत प्रोजेक्ट 28 की शुरुआत 2003 में की गई थी। यह उन चार एंटी सबमरीन युद्धपोतों में से अंतिम है, जिनका निर्माण जीआरएसई ने परियोजना पी-28 के तहत भारतीय नौसेना के लिए किया है। यह जीआरएसई द्वारा निर्मित 104वां पोत है। इसका नामकरण अर्नला श्रेणी की मिसाइल कार्वेट के नाम पर किया गया है। इससे पहले आईएनएस कमोर्ता, आईएनएस कदमत और आईएनएस किलतान युद्धपोतों की आपूर्ति की जा चुकी है, जो भारतीय नौसेना के ईस्टर्न फ्लीट का हिस्सा हैं। ये सभी नाम लक्षद्वीप द्वीपसमूह के द्वीपों के नाम पर रखे गए हैं। चार स्वदेशी एंटी-सबमरीन वारफेयर में से तीसरे युद्धपोत ‘आईएनएस किल्तान’ को तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2017 में विशाखापत्तनम के नौसेना डॉकयार्ड में कमीशन किया था।