वायुसेना ने एमआई-17 हेलीकॉप्टरों में विकसित की टिडि्डयों को मारने की तकनीक

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लगभग 40 मिनट में 750 हेक्टेयर क्षेत्र में किया जा सकेगा कीटनाशक का छिड़काव 



नई दिल्ली, 01 जुलाई (हि.स.)। भारतीय वायुसेना ने इस समय देश में टिडि्डयों का प्रकोप और इससे फसलों के नुकसान को देखते हुए दो एमआई-17 हेलीकॉप्टरों में दोनों ओर लगे नोजलों से कीटनाशकों का छिड़काव करने की तकनीक विकसित की है। कृषि मंत्रालय ने पहले ब्रिटेन की कम्पनी से एमआई-17 हेलीकॉप्टरों में उन्नत किट लगाने के लिए समझौता किया था लेकिन वायुसेना ने ऐसी तकनीक विकसित की है जो पूरी तरह स्वदेशी होने के साथ ही देश को आत्म-निर्भर बनाने में भी मदद देगी।
टिडि्डयों के हमले की आशंका को देखते हुए कृषि मंत्रालय ने मई 2020 में टिडि्डयों के प्रजनन को रोकने के लिए कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के लिए ब्रिटेन की कम्पनी मेसर्स माइक्रोन के साथ दो एमआई-17 हेलीकॉप्टरों में उन्नत किट लगाने के लिए समझौता किया था। कोविड-19 महामारी के कारण ब्रिटेन की यह कंपनी सितम्बर 2020 के बाद ही भारतीय वायुसेना को उन्नत किट की आपूर्ति कर पाएगी। इस बीच मई के अंतिम सप्ताह से टिडि्डयों का अचानक हमला शुरू हुआ जो कई राज्यों में तेजी से फैल गया।
वायुसेना के प्रवक्ता ने बताया कि ब्रिटेन की कंपनी से किट मिलने में देरी को देखते हुए भारतीय वायु सेना ने चंडीगढ़ के अपने नंबर 3 बेस रिपेयर डिपो में स्थित एमआई-17 हेलीकॉप्टर के लिए स्वदेशी रूप से नियंत्रण प्रणाली (एएलसीएस) को डिजाइन और विकसित करने का चुनौतीपूर्ण कार्य किया। सभी स्वदेशी पुर्जों का उपयोग करते हुए एमआई-17 हेलीकॉप्टर के दोनों ओर लगे नोजलों से कीटनाशकों का छिड़काव करने की तकनीक विकसित की गई। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नोजल में ही सीएसआईओ, चंडीगढ़ ने यह तकनीक विकसित की है। कीटनाशक मैलाथियॉन को हेलीकॉप्टर के अंदर लगे 800 लीटर क्षमता के आंतरिक सहायक टैंक में भरा जाएगा और दवाबयुक्त हवा का उपयोग करके नोजल के माध्यम से इलैक्ट्रिक पंप से इसका छिड़काव किया जाएगा, जिससे एक बार के अभियान में लगभग 750 हेक्टेयर के संक्रमित क्षेत्र में छिड़काव करने में लगभग 40 मिनट का समय लगेगा।
उन्होंने बताया कि विमान एयरक्राफ्ट सिस्टम और परीक्षण प्रतिष्ठान, बैंगलोर के पायलटों और इंजीनियरों के एक दल ने उन्नत एमआई-17 हेलीकॉप्टर के माध्यम से एएलसीएसका सफलतापूर्वक जमीनी और हवाई परीक्षण किया। इस प्रणाली को टिड्डी नियंत्रण अभियान की रोकथाम के तहत मैलाथियॉन के साथ उपयोग के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है। यह स्वदेशी रूप से विकसित प्रणाली होने के नाते एएलसीएस के माध्यम से इसकी देश में ही मरम्मत हो सकेगी जिससे भविष्य में इसे और उन्नत किया जा सकेगा। इसके अलावा विदेशी मुद्रा की बचत के साथ-साथ देश को विमानन से संबंधित तकनीक में आत्म-निर्भर बनाने में मदद मिलेगी।

 


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