नेपाल में फिर देखे जाएंगे भारतीय समाचार चैनल, प्रसारण से रोक हटी

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काठमांडू, 02 अगस्त (हि.स.)। भारत और नेपाल के बीच समय बीतने के साथ रिश्‍तों में आई खटास में कमी आती दिख रही है। कल तक वामपंथी सरकार के सहयोग से चीन के साथ पूरी तरह से खड़ा दिखता नेपाल अब अपने रुख में फिर से परिवर्तन के साथ अपने सांस्‍कृतिक, सामाजिक एवं आर्थ‍िक संबंधों को ध्‍यान कर भारत के नजदीक आ रहा है। हालांकि कुछ मामलों में नेपाल की ओर से अभी भी रिश्तों में तनाव बरकरार है लेकिन इसके बावजूद नेपाल में भारतीय चैनलों पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है।
इस संबंध में रविवार को नेपाल में डिश होम के प्रबंध निदेशक सुदीप आचार्य ने बताया कि उन्होंने सभी भारतीय न्यूज चैनलों का प्रसारण फिर से चालू कर दिया है। अब सभी नेपाली एवं बड़ी तादात में भारत से आकर यहां रह रहे लोग अपने मनपसन्‍द न्‍यूज चैनल को देख सकेंगे। उन्‍होंने बताया कि फिलहाल आज तक, जी न्यूज, इंडिया टीवी और एबीपी न्यूज जैसे कुछ चैनल आसानी से देखे जा सकते हैं, शेष सभी चैनलों को शुरू  करने की प्रक्रिया चल रही है।
उल्‍लेखनीय है कि नेपाल में नौ जुलाई को दूरदर्शन छोड़कर सभी भारतीय समाचार चैनलों पर रोक लगा दी गई थी लेकिन दूरदर्शन का प्रसारण जारी रहा है। भारतीय समाचार चैनलों को बंद करने के पीछे तर्क में बताया गया था कि नेपाली वितरकों ने इन समाचार चैनलों पर नेपाल के बारे में गलत प्रचार का आरोप लगाते हुए इन्‍हें बंद किया था। पिछले महीने नेपाली प्रधानमंत्री ओली द्वारा भगवान श्रीराम के जन्‍मस्‍थल अयोध्‍या पर उठाए सवालों के बीच दोनों देशों में तनाव बढ़ा। इससे पहले नेपाल ने 20 मई को संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र जारी किया था। नेपाल अभी भी अगस्त के मध्य तक विवादित नक्शे को भारत, गूगल, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजने की तैयारी कर रहा है। इस संशोधित नक्शे में नेपाल ने भारतीय क्षेत्र लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी पर अपना दावा किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा आठ मई को उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख पास को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी रणनीतिक सड़क का उद्घाटन करने के बाद भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध में तनाव आ गया था। नेपाल का कहना था कि सड़क का कार्य नेपाली क्षेत्र में किया जा रहा है। भारत ने उसके इस दावे को खारिज करके कहा था कि सड़क पूरी तरह से उसके क्षेत्र में है। इसके लिए भारत की तरफ से पुराने नक्‍शों एवं अनुबंधों की जानकारी भी साझा की गई थी।

 


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