नई दिल्ली, 08 जनवरी (हि.स.)। रक्षा मंत्रालय के सबसे बड़े थिंक टैंक दि यूनाइटेड सर्विस इंस्टीटूशन ऑफ इंडिया (यूएसआई) ने एक साल तक रिसर्च करने के बाद सेना में तनाव को लेकर कई अहम खुलासे किये हैं। सैनिकों में तनाव की मुख्य वजह वरिष्ठ अधिकारियों के व्यवहार, लम्बे समय तक छुट्टी न मिलने, अनावश्यक काम का बोझ बताया गया है। यानी जवानों के लिए यह तनाव ‘दुश्मन’ से ज्यादा खतरनाक हो चला है।
रिसर्च में कहा गया है कि सैन्य ड्यूटी को पूरी दुनिया में सबसे तनावपूर्ण नौकरियों में से एक माना जाता है। भारतीय सशस्त्र बल के एक जवान की हर तीसरे दिन तनाव में आत्महत्या और फ्रेट्रिकाइड के कारण मौत हो रही है, जिसके कारण हर साल 100 से अधिक सैनिकों की जान जा रही है। यह नुकसान सशस्त्र बलों के लिए विभिन्न मोर्चों पर तैनात सैनिकों के हताहत होने की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मनोविकृति, न्यूरोसिस और अन्य संबंधित बीमारियों से कई सैनिक प्रभावित हुए हैं। भारतीय सेना में इस तरह की अधिकतम घटनाएं दुश्मन के खिलाफ जवाबी कार्रवाई या आतंकवाद विरोधी माहौल में लंबे समय से तैनाती के कारण होती हैं।
रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल के दिनों में मीडिया ने सेना में बढ़ रहे आत्महत्या, फ्रेट्रिकाइड्स और साइकोसोमैटिक मामलों की समस्या को उजागर किया है। ऐसा लगता है कि भारतीय सेना में बढ़ रहे तनाव का पता लगाने के लिए बहुत अपर्याप्त शोध कार्य किए गए हैं, जिससे प्रशिक्षित सैनिकों के मनोवैज्ञानिक संतुलन खोने और आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने के कारणों का पता लगाया जा सके। इसलिए भारतीय सेना में तनाव के स्तर की जांच करने के उद्देश्य से पिछले साल रक्षा मंत्रालय के सबसे बड़े थिंक टैंक दि यूनाइटेड आर्मी इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (यूएसआई) में वरिष्ठ अनुसंधान फेलो कर्नल एके मोर ने एक शोध किया था। रिसर्च के दौरान सेना के जवानों द्वारा अनुभव किए गए तनावों की पहचान करने के बाद उन्हें लंबे समय तक जवाबी कार्रवाई या आतंकवाद विरोधी माहौल में न रखने की रचनात्मक सिफारिशें की गईं।
रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि भारतीय सेना हर साल किसी भी दुश्मन या आतंकवादी गतिविधियों की तुलना में आत्महत्या, फ्रेट्रिकाइड और अप्रिय घटनाओं के कारण अपने जवानों को खो रही है। लगभग पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय सेना के कर्मियों के बीच तनाव के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके अलावा वर्तमान में आधे से अधिक भारतीय सेना के जवान गंभीर तनाव में हैं। ड्यूटी के दौरान होने वाले तनावों को भारतीय सेना के जवानों ने अपने पेशे के अभिन्न अंग के रूप में अच्छी तरह से समझा और स्वीकार किया है, जिससे सैनिकों के स्वास्थ्य और युद्ध क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और इस वजह से उनकी संबंधित इकाइयां भी प्रभावित हो रही हैं। रिपोर्ट में तनाव पैदा करने वाले कारणों की ओर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी गई है।
भारतीय सैनिकों की तुलना में सेना के अधिकारियों में होने वाले तनाव पर किये गए अध्ययन में पाया गया है कि अधिकारी भी बहुत अधिक संचयी तनाव के स्तर का अनुभव करते हैं। सैनिकों की तुलना में अधिकारियों के तनाव के अलग-अलग कारण पाए गए हैं। इसलिए, सेना के कर्मियों और अधिकारियों के बीच तनाव पैदा करने वाले पहलुओं को अलग नजरिये से देखने की आवश्यकता है। अधिकारियों के बीच तनाव के प्रमुख कारणों में नेतृत्व की गुणवत्ता, अपर्याप्त प्रतिबद्धताओं, अपर्याप्त संसाधन, लगातार अव्यवस्थाएं, पोस्टिंग और पदोन्नति में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी, वेतन और स्थिति में गिरावट शामिल हैं। तनाव की छोटी वजहों में अपर्याप्त आवास और शैक्षिक सुविधाएं, कनिष्ठों के बीच प्रेरणा की कमी, छुट्टी न मिलना, असैनिक अधिकारियों का उदासीन रवैया और संक्षिप्त कार्यकाल को गिनाया गया है।
भारतीय सेना में तनाव कम करने के लिए रिसर्च रिपोर्ट में कई सलाह भी दी गई हैं जैसे कि तनाव रोकने की जिम्मेदारी इकाई स्तर पर नेतृत्व करने वाले अधिकारी की होनी चाहिए। इसके बाद संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता पर कमांड और मैन-मैनेजमेंट को अवगत कराया जाना चाहिए। इसके अलावा सैनिकों और अधिकारियों को एक-दूसरे का सहायक और प्रेरक बनाने की जरूरत बताई गई है। यह भी कहा गया है कि सेना के जवानों की विभिन्न श्रेणी जेसीओ, ओआर एंड ऑफिसर्स में होने वाले तनाव को अलग से देखा जाना चाहिए।
यह भी सलाह दी गई है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों, विभागों और समाज को भारतीय सेना के सैनिकों के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। मौजूदा वैधानिक प्रावधानों को और मजबूत करके सेना के कर्मियों और उनके परिवारों को सहयोग किया जाना चाहिए। मुख्य रूप से सेना में बढ़ते तनाव को रोकने के लिए लगातार अनुसंधान, विश्लेषण, समन्वय और निगरानी के लिए एक संस्थागत प्रणाली स्थापित किये जाने पर जोर दिया गया है।