भारत ने ‘ठंडे रेगिस्तान’ में तैनात किये 2500 टैंक

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लद्दाख में 16 हजार फीट ऊंचाई पर 46 टन वजनी टैंक को पहुंचाना नहीं था आसान  इतनी ऊंचाई और मुश्किल इलाके में दुनिया का कोई देश नहीं पहुंचा सका हथियार  माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी आग उगल सकते हैं भारतीय टैंक   



नई दिल्ली, 27 सितम्बर (हि.स.)​​।​ भारत और चीन के बीच में बातचीत के जरिए मसले को सुलझाने की कोशिशों के बीच भारतीय सेना के तेवर ढीले नहीं हैं। चीन की धोखेबाजी वाली फितरत को देखते हुए सेना किसी भी मोर्चे पर अपनी तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।​ इसीलिए भारतीय सेना ने 16 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पूर्वी लद्दाख के चूमर-डेमचोक क्षेत्र में बीएमपी-2 इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स के साथ टी-90 और टी-72 टैंकों की तैनाती की है, जो माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में भी काम कर सकते हैं। इनकी तैनाती का मतलब है कि भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में 16 हजार फीट की ऊंचाई पर टैंक, बीएमपी के साथ किसी भी मुकाबले के लिए तैयार है।
 
एलएसी के पास पूर्वी सीमा पर सिंधु नदी के पार लड़ाइयों के लिए समतल इलाका है, जो पूर्वी लद्दाख से लेकर चीन के कब्जे वाले तिब्बत तक है। यहां टी-90 और टी-72 टैंक पूर्वी लद्दाख के दुर्गम इलाकों में तैनात कर दिए गए हैं। इतनी ऊंचाई और मुश्किल इलाके में दुनिया का कोई देश इतने बेहतरीन हथियार नहीं पहुंचा सका है, क्योंकि 46 टन वजनी इस टैंक को लद्दाख जैसे इलाके में पहुंचा पाना आसान काम नहीं था। भारत ने यहां सपाट इलाके में टैंकों की गतिशीलता जानने के लिए अभ्यास भी शुरू कर दिया है। इस समय लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियां अपना असर दिखने लगीं हैं और दिनों-दिन तापमान गिर रहा है। तैनात किये गए बीएमपी-2 इन्‍फैंट्री कॉम्‍बैट व्हीकल्स की खासियत यह है कि ये माइनस 40 डिग्री तापमान में भी आसानी से काम कर सकते हैं। यानी लद्दाख की बर्फीली वादियों में अगर चीनी सेना ने कोई गुस्‍ताखी तो ये टैंक आग उगलना शुरू कर देंगे।  
 
सूत्रों ने बताया कि लद्दाख सीमा से सटे चूमर और डेमचोक इलाकों में भारत ने करीब 2500 बीएमपी-2 इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स के साथ टी-90 और टी-72 टैंकों की तैनाती की है। भारत इन रूसी टैंकों का तीसरा सबसे बड़ा ऑपरेटर है। भारतीय सेना के बेड़े में करीब साढ़े 4 हजार टैंक हैं, जिन्हें ‘भीष्‍म’ नाम दिया गया है। इनमें 125 एमएम की गन लगी होती है। यह अपने बैरल से एंटी टैंक मिसाइल भी छोड़ सकता है। वैसे तो इन टैंकों को रूसी कंपनी ने बनाया है लेकिन भारत ने इसमें इजरायली, फ्रेंच और स्‍वीडिश  सिस्‍टम लगाकर इन्हें और बेहतर कर दिया है। 1970 के दशक में भारतीय सेना का हिस्‍सा बने टी-72 टैंक न्‍यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हमलों से भी बचने में सक्षम है। इस समय भारत की सेना के बेड़े में विभिन्न प्रकार के करीब 4500 टैंक हैं।
सेना की 14वीं वाहिनी के चीफ ऑफ स्टाफ (फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स) मेजर जनरल अरविंद कपूर का कहना है कि दुनिया में भारतीय सेना सेना के पास एकमात्र फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स है, जिसके मैकेनाइज्ड बलों को इस तरह के कठोर इलाके में तैनात किया गया है। इस भूभाग में टैंक, पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों और भारी बंदूकों का रखरखाव एक तरह से चुनौती है। उन्होंने कहा कि लद्दाख में सर्दियां कठोर होने जा रही हैं लेकिन हम पूरी तरह से तैयार हैं। लद्दाख की सर्दियों के लिहाज से अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों के लिए पर्याप्त स्टॉकिंग कर ली गई है। उच्च कैलोरी का पौष्टिक राशन, ईंधन और तेल, सर्दियों के कपड़े, हीटिंग उपकरण सभी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। 
 

 


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