राजनाथ ने ’71 की जंग को बताया तीनों सेनाओं के तालमेल का शानदार उदाहरण

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बेंगलुरु के येलहंका वायु सेना स्टेशन में तीन दिवसीय भारतीय वायु सेना कॉन्क्लेव का उद्घाटन

 डीआरडीओ के रक्षा प्रतिष्ठानों में जाकर विभिन्न रक्षा उत्पादों और प्लेटफार्मों का निरीक्षण किया



नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (हि.स.)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को बेंगलुरु में वायुसेना कॉन्क्लेव के उद्घाटन मौके पर कहा कि आज के बदलते समय में जब हमारी तीनों सेनाओं के बीच तालमेल और एकीकरण को बढ़ावा देने की बात की जा रही है तो पाकिस्तान के साथ 1971 में हुई जंग इसका एक शानदार उदाहरण है। इस युद्ध ने हमें एक साथ मिलकर सोचने, योजना बनाने और लड़ने का महत्व बताया है। हमारी सेनाएं ढाका पर पूरी विजय सुनिश्चित होने के बावजूद वहां किसी प्रकार का राजनीतिक नियंत्रण थोपने के बजाय उन्हें उनकी सत्ता सौंपकर वापस आ गईं।

राजनाथ सिंह बेंगलुरु में अपने दौरे के दूसरे दिन शुक्रवार को दोपहर 3.30 बजे बेंगलुरु के येलहंका वायु सेना स्टेशन में तीन दिवसीय भारतीय वायु सेना कॉन्क्लेव के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। तीनों सेनाओं के एक साथ तालमेल करके युद्ध लड़ने का परिणाम यह हुआ कि महज 14 दिनों में ही पाकिस्तान से जंग खत्म हो गई। जो हमारे देश के सशस्त्र बलों के लिए सैन्य इतिहास के स्वर्णिम अध्याय में से एक साबित हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने इस जंग में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी देखा, जिसमें 93 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने एक साथ भारत के सामने हथियार डाल दिए।

उन्होंने कहा कि इन महज 14 दिनों में पाकिस्तान ने अपनी एक तिहाई सेना, आधी नौसेना नौसेना और एक चौथाई वायुसेना खो दी थी। यह युद्ध कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ। स्कालर्स और इतिहासकारों ने इसे आगे चलकर ‘जस्ट वार’ का एक क्लासिक उदाहरण करार दिया। यह युद्ध एक सबसे ऊंचे धर्म के लिए था और वह था मानवता का धर्म। ढाका में 16 दिसंबर, 1971 के समर्पण संधि पर हस्ताक्षर होने के साथ ही अनगिनत बंगाली बहनों और भाइयों पर किए जा रहे भयानक अत्याचारों का अंत हो गया। इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि युद्ध की पूरी कमान जिन्होंने संभाली, वे जनरल मानेकशा एक पारसी थे। इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि उस समय हमारी वायुसेना के चीफ पीसी लाल एक हिंदू थे। इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि उस समय उत्तरी कमांड के जनरल ऑफिसर एयर मार्शल लतीफ़ एक मुस्लिम थे।

रक्षा मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के साथ जब 3 दिसंबर, 1971 को युद्ध शुरू हुआ तो हम राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य रूप से पूरी तरह तैयार थे। इस तालमेल के परिणाम से आज हम सब ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया वाकिफ़ है। हमारे देश के राजनीतिक और सैन्य विचार की एकरूपता ने एशिया में एक नए राष्ट्र को जन्म दिया। शोषण और अन्याय को पराजित कर एक बार फिर यह साबित किया कि ‘यतः धर्मस्ततो जय:’ यानी जहां धर्म होता है, वहीं विजय होती है। इस दौरान भारत सरकार का दुनिया के बड़े देशों से हाथ मिलाने का प्रयास और सोवियत संघ के साथ मैत्री संधि भी बड़ा अहम कदम साबित हुआ। दुनिया के कई देशों ने जब भारत का साथ देने से सीधा इनकार कर दिया था तो ऐसे में रूस का हमारा साथ देना हमारे मनोबल और कूटनीति की बड़ी उपलब्धि थी।

रक्षा मंत्री ने वायुसेना सम्मेलन में कहा कि हमारे राष्ट्र का सर इस बात के लिए हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा कि हर जरूरत पड़ने पर भारत हमेशा सत्य, न्याय और मानवता के पक्ष में खड़ा रहा है। 1971 के संग्राम का भी यही आधार रहा था, यह सैन्य और राजनीति का समन्वय ही था, जिसने इस उद्देश्य में हमारी सफलता तय की। तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य नेतृत्व पर पूरा भरोसा करके उन्हें किसी भी प्रकार की कार्रवाई की पूरी छूट दी और हमारे सैन्य नेतृत्व ने अपनी परंपरा के अनुरूप देशवासियों का भरोसा पूरी तरह कायम रखा। इस युद्ध में कहने के लिए तो पूर्व और पश्चिम दो मुख्य मोर्चे थे, पर वास्तव में अनेक ऐसे मोर्चे थे जिनका हमको ध्यान रखना था, जो राजनीतिक और सैन्य तालमेल के बिना संभव नहीं था।

इससे पूर्व उन्होंने एलसीए तेजस सिम्युलेटर में उड़ान भरी और डीआरडीओ के रक्षा प्रतिष्ठानों में जाकर विभिन्न रक्षा उत्पादों और प्लेटफार्मों का निरीक्षण किया। उन्होंने खुद ट्विट करके कहा कि बेंगलुरु में सुविधा में एलसीए तेजस सिम्युलेटर में उड़ान भरने का अद्भुत अनुभव था। रक्षा मंत्री डीआरडीओ के संस्थान रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (डीआरडीई) और वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) भी गए। उन्होंने दोनों जगह डीआरडीओ के विभिन्न रक्षा उत्पादों और प्लेटफार्मों का निरीक्षण किया। उन्होंने विभिन्न रक्षा उत्पादों और प्लेटफार्मों के सफल विकास के लिए डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को बधाई दी।


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