सामुदायिक सहभागिता से स्वच्छ होगा अपना देश

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स्वच्छता अभियान को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सामुदायिक सहभागिता सबसे आवश्यक कदम है। सिर्फ सरकार के भरोसे रहने से भारत स्वच्छ नहीं हो सकता।



नई दिल्ली, 03 जुलाई (हि.स.)। स्वच्छ भारत अभियान सरकार का एक अच्छा और सराहनीय प्रयास है। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा अभी तक स्वच्छ-सुरक्षित पानी, शौचालय और जल निकासी की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है। स्वच्छता अभियान को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सामुदायिक सहभागिता सबसे आवश्यक कदम है। सिर्फ सरकार के भरोसे रहने से भारत स्वच्छ नहीं हो सकता। इसके लिए हम सभी देशवासियों को मिल-जुलकर पहल करनी होगी। इसके तहत कूड़े-कचरे को फिर से उपयोग में लाने की योजना भी अत्यंत जरूरी है। इससे बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करने में सहायता मिलेगी और हमारे गांव, शहर, कस्बे रहने योग्य बनेंगे। इसी तरह जल के पुनर्चक्रण के भी उपाय करने होंगे ताकि पानी का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके। इसके लिए समुदाय आधारित दृष्टिकोण अपनाना ही श्रेयस्कर रहेगा। समाज को पर्याप्त अधिकार, संसाधन और स्वच्छता नीति से सम्पन्न करना आज की महती आवश्यकता है। कोई भी नीति प्रभावी परिणाम तभी देगी जब समाज की सहभागिता उसमें हो। स्वच्छता नीति उचित, समग्र और उपयोगी हो तभी स्वच्छ भारत अभियान सफल होगा। स्वच्छता सुविधाओं के अभाव के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे, किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहते बल्कि, इससे बाहर भी जा सकते हैं। इसलिए सरकार, नागरिक संगठन और समाज के विभिन्न वर्गों को स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए सहभागिता के साथ कार्य करना होगा।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में हर वर्ष 7.2 मीट्रिक टन खतरनाक औद्योगिक कचरा, 4 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा, 1.5 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा, 1.7 मीट्रिक टन मेडिकल कचरा, 48 मीट्रिक टन नगर निगम का कचरा निकलता है। इसके अलावा 75 प्रतिशत से ज्यादा सीवेज का निपटारा ही नहीं हो पाता है। कचरे से रिसकर जहरीला रसायन जमीन, हवा और पानी को दूषित कर रहा है और इनके करीब रहने वाली आबादी अनेक गंभीर बीमारियों जैसे मलेरिया, डेंगू, टी.बी और चर्म रोगों से पीड़ित है। इतने कचरे से 27 हजार करोड़ रुपये की खाद पैदा की जा सकती है। 45 लाख एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ खेतों में बदला जा सकता है। 50 लाख टन अतिरिक्त अनाज पैदा करने की क्षमता हासिल की जा सकती है।
विकसित देशों में कचरा प्रबंधन लाभप्रद व्यवसाय में बदल चुका है। इससे खाद बायो-गैस व बिजली बनाई जा रही है। कुछ कचरे को रिसाइकल करके उससे जरूरत की वस्तुएं बनाई जा रही है। देश में उपलब्ध कचरे का 30-45 प्रतिशत जैविक कचरा होता है जिससे खाद बनाई जा सकती है। 40-45 प्रतिशत कचरे का रिसाइकलिंग से कई चीजें बनाई जा सकती हैं, जबकि 5-10 प्रतिशत को रिसाइकलिंग किया जा सकता है। यह सब समाज को बताने और समझाने की आवश्यकता है। बहुत हद तक सामुदायिक सहभागिता इस चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता रखती है।
स्वास्थ्य का स्वच्छता से सीधा संबंध है। स्वच्छता और आर्थिक विकास के बीच घनिष्ट संबंध है। बीमार व्यक्ति किसी काम को ठीक ढंग से नहीं कर सकता है। इसका सीधा असर उत्पादकता पर पड़ता है। मानव संसाधन उत्पादक नहीं हो पाएगा। स्वच्छता का महत्त्व इसी में निहित है कि लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाए कि स्वच्छता का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। पर्यावरण प्रदूषण से है और बढ़ते उपभोक्तावाद से है। भारत सरकार स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय के माध्यम से प्रत्येक गांव को हर साल 20 लाख रुपये देगी। इसके अंतर्गत सरकार ने हर परिवार के लिए व्यक्तिगत शौचालय की लागत 12,000 रुपये तय कर दी है।
एक अनुमान के अनुसार पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय इस अभियान पर 1,34000 करोड़ रुपये खर्च करेगा; ताकि सफाई, नहाने और कपड़े धोने के लिए पर्याप्त पानी की आपूर्ति की जा सके। सार्वजनिक शौचालय बनाने और ठोस कचरे का उचित प्रबंधन करने का लक्ष्य रखा गया है। जब हमारी सरकार स्वच्छ भारत मिशन को लेकर इतनी गंभीर है तो हमारा भी यह दायित्व है कि उस दिशा में काम करें। समाज की जागरूकता के लिए अभियान चलाएं। स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए जरूरी है कि ग्रामीणों के साथ समूह चर्चा की जाए। गांवों में नियुक्त प्रशासनिक ढांचे से जुड़े सरकारी, अर्ध -सरकारी और जन प्रतिनिधियों के साथ सहभागिता बढ़ायी जाए। कचरा प्रबंधन के सफल मॉडल पर समुदाय के साथ जानकारियां साझा कर उन्हें निरन्तर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। तभी स्वच्छ भारत अभियान की सफलता सुनिश्चित हो सकेगी।
 स्वच्छता कोई साधारण मुद्दा नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी पर जीवन के लिए वार्निंग बन रही है। पर्यावरण का संकट मानवता को चुनौती दे रहा है। भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव निरन्तर बढ़ रहा है। पूरे विश्व की दो तिहाई आबादी दक्षिण एशिया में रहती है और भारत इस उप-महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। गरीबी, कुपोषण और स्वास्थ्य की समस्याओं से हम अनवरत जूझ रहे हैं। पर्यावरण की समस्या का दायरा अत्यंत व्यापक है और स्वास्थ्य की समस्या का सीधा संबंध पर्यावरण से है। पर्यावरण का सीधा संबंध स्वच्छता से है और स्वच्छता का संबंध जीवन शैली से है। जीवन शैली का संबंध संस्कृति से है और संस्कृति सीखा गया व्यवहार है। इसलिए हमें अपने आसपास की समझ विकसित करने वाली सीख हर नागरिक में पैदा करनी होगी। अपने नागरिक बोध और दायित्वों के निर्वहन की निष्ठाएं पैदा करनी होगी। तभी अपना देश स्वच्छ बन सकता है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकता है।

 


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