अमेरिका के साथ हवा से लॉन्च किए जाने वाले ड्रोन्स विकसित करेगा भारत

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एएलयूएवी को विमान पर बम की तरह ले जाकर हवा से लॉन्च किया जाएगा

 डिजाइन, प्रदर्शन और परीक्षण में सहयोग करेंगे वायु सेना और डीआरडीओ



नई दिल्ली, 4 सितम्बर (हि.स.)। भारत और अमेरिका ने हवा से लॉन्च किए जाने वाले मानव रहित हवाई वाहन (ड्रोन्स) विकसित करने के लिए एक समझौता किया है। दोनों देश द्विपक्षीय रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (डीटीटीआई) के समग्र ढांचे के तहत 11 मिलियन डॉलर की प्रारंभिक लागत पर प्रोटोटाइप एएलयूएवी विकसित करने के लिए काम करेंगे। वर्ष 2012 में लॉन्च की गई यह परियोजना अब तक परवान नहीं चढ़ सकी थी लेकिन अब अमेरिका का सहयोग मिलने पर एयर-लॉंच्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (एएलयूएवी) विकसित किए जा सकेंगे।

भारत और अमेरिका के रक्षा मंत्रालयों ने मानव रहित विमानों (एएलयूएवी) के सम्बंध में एक परियोजना समझौते (पीए) पर हस्ताक्षर किये हैं। भारतीय वायु सेना की तरफ से उप वायुसेना प्रमुख (योजना) एयर वाइस मार्शल नरमदेश्वर तिवारी तथा अमेरिकी वायु सेना की तरफ से एयर फोर्स सेक्योरिटी असिस्टेंस एंड कोऑपरेशन डायरेक्टोरेट के निदेशक ब्रिगेडियर जनरल ब्रायन आर. ब्रकबॉवर ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये। दोनों अधिकारी डीटीटीआई के तहत गठित संयुक्त कार्य समूह के सह अध्यक्ष हैं।

मानव रहित विमानों में ड्रोन आदि भी शामिल हैं। यह समझौता रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (डीटीटीआई) के हवाले से संयुक्त वायु प्रणाली कार्य समूह के तहत किया गया है। भारत और अमेरिका के रक्षा मंत्रालयों के बीच हुए अनुसंधान, विकास, परीक्षण और मूल्यांकन (आरडीटी-एंड-ई) समझौते के दायरे में एएलयूएवी को रखा गया है।

इस समझौता ज्ञापन पर सबसे पहले जनवरी, 2006 में हस्ताक्षर किये गये थे। इसके बाद 2012 में लॉन्च की गई यह परियोजना परवान नहीं चढ़ सकी थी। इसलिए जनवरी, 2015 को फिर समझौते का नवीनीकरण किया गया था। अब फिर से किया गया यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को और गहन बनाने की एक महत्त्वपूर्ण पहल है। मूल रूप से एएलयूएवी को एक विमान पर बम की तरह ले जाया जाएगा और पारंपरिक यूएवी के बजाय हवा से लॉन्च किया जाएगा। भारत और अमेरिका एयर-लॉन्च किए गए छोटे एरियल सिस्टम या ड्रोन स्वार्म पर भी चर्चा कर रहे हैं।

डीटीटीआई का मुख्य लक्ष्य सहयोगात्मक प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान तथा भारत और अमेरिकी सेना के लिये भावी प्रौद्योगिकियों के सह-उत्पादन और सह-विकास पर लगातार जोर देना है। डीटीटीआई के अंतर्गत थल, जल, वायु और विमान वाहक पोतों की प्रौद्योगिकियों के सम्बंध में एक संयुक्त कार्य समूह का गठन किया गया है, ताकि इन क्षेत्रों में आपसी चर्चा के बाद मंजूर होने वाली परियोजनाओं पर ध्यान दिया जा सके। एएलयूएवी के बारे में किया गया परियोजना समझौता वायु प्रणालियों से जुड़े संयुक्त कार्य समूह के दायरे में आता है। यह डीटीटीआई की एक बड़ी उपलब्धि है।

परियोजना समझौते में अमेरिका की एयरफोर्स रिसर्च लैबोरेट्री (एएफआरएल), भारतीय वायु सेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बीच सहयोग का खाका शामिल किया गया है। इसके तहत एएलयूएवी प्रोटोटाइप का डिजाइन तैयार करके उसका विकास, परीक्षण तथा मूल्यांकन किया जायेगा। डीआरडीओ की लैब वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) और एएफआरएल के तहत एयरोस्पेस सिस्टम्स डायरेक्टोरेट, भारतीय और अमेरिकी वायु सेना इस परियोजना-समझौते को क्रियान्वित करने वाले मुख्य संगठन होंगे।


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