नई दिल्ली, 28 मई (हि.स.)। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर विजय राघवन ने गुरुवार को कहा कि भारत के सामने एक साल के भीतर कोरोना वैक्सीन विकसित करने की चुनौती है, इसलिए एक साथ 100 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। आमतौर पर वैक्सीन विकसित करने में 10-15 साल लगते हैं जिस पर 200 मिलियन डॉलर खर्च होते हैं। मौजूदा समय में वैक्सीन विकसित करने में 30 समूह जुटे हैं, जिसमें 20 समूह अच्छी गति से आगे बढ़ रहे हैं।
चार तरह की वैक्सीन पर चल रहा है काम
प्रोफेसर विजय राघवन ने बताया कि वैक्सीन को बचाव के लिए स्वस्थ लोगों को दिया जाता है इसलिए इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को पूरी तरह से जांचा जा जाता है जिसमें वक्त लगता है। वैक्सीन बनने की प्रक्रिया के बारे में उन्होंने बताया कि वैक्सीन चार तरह से विकसित की जाती है। एक वायरस के आरएनए से सम्बंधित जेनिटिक चीजें इंसानों में इंजेक्ट की जाती है। दूसरा, जिसमें वैक्सीन वायरस के कमजोर वर्जन को लेकर बनाया जाता है, जिससे इंसान के अंदर वायरस का प्रसार नहीं होता। तीसरा किसी और वायरस में कोरोना वायरस की प्रोटीन कोडिंग को लगाकर वैक्सीन विकसित की जाती है। चौथा वायरस के प्रोटीन लैब में तैयार कर उसका इस्तेमाल किया जाता है। भारत में इस समय इन चारों तरह की वैक्सीन पर काम चल रहा है।
वैक्सीन बाजार में आने तक पांच बातों का रखें ख्याल
प्रोफेसर राघवन ने कहा कि बाजार में वैक्सीन आने में अभी वक्त है, इसलिए लोगों को वैक्सीन के विकसित होने तक लोगों को पांच बातों का ध्यान अवश्य रखना होगा। लोगों को मास्क लगाना होगा, हाथों को सेनिटाइज करते रहना होगा, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा, ट्रैंकिंग और टेस्टिंग में भी तेजी लानी होगी। इन पांच कदमों से लोग करोना से बच सकते हैं।