भारत के नए विदेशी निवेश के नियमों से घबराए चीनी निवेशक

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नई दिल्ली, 24 अप्रैल (हि.स.)। भारत के विदेश निवेश के नियमों को और सख्त करने और परखने की योजना से चीनी निवेशक घबरा गए हैं। उनको लगने लगा है कि इस सख्ती से एशिया के सबसे बड़े लाभदायक निवेश बाजार में किए गए उनके प्रोजेक्ट्स और डील्स पर असर पड़ेगा।

यह नए नियम लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है। अन्य देश भी कोरोना के प्रकोप के बीच कॉर्पोरेट्स असेट्स की ब्रिक्री के विरोध का समर्थन करते हैं। पर वह उन देशों के साथ निवेश करना चाह रहे हैं जो भारत के साथ सीमा साझा करते हैं।

पड़ोसी देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार और चीन भारत में प्रमुख निवेशक हैं। भारत में जिन चीनी फर्मों ने निवेश किया है वह 26 बिलियन डॉलर से अधिक है।

चीनी ऑटो कंपनियां ग्रेट वॉल मोटर, एसएआईसी यूनिट एमजी मोटर्स ने भारत पर बड़ा दांव लगाया है। जबकि उनकी तकनीतकी कंपनियां जैसे टेंसेंट और अलीबाबा ने भी भारतीय डिजिटल पेमेंट फर्म पेटीएम, बिग बास्किट और ओला जैसे कंपनियों के विकास को बढ़ावा दिया है।

यह नए नियम भारतीय व्यवसाय को प्रभावित करने वाले कोरोना के प्रकोप के दौरान ‘अवसरवादी’ अधिग्रहण को रोकने के लिए किया गया है। लेकिन सरकारी सूत्रों को कहना है कि यह ग्रीनफील्ड निवेश पर भी लागू होंगे। हलांकि चीन ने इन नियमों को भेदभावपूर्ण बताया है।

इंडियन लॉ फर्म एल एंड एल पार्टनर्स के वैभव कक्कड़ का कहना है कि कुछ चीन निवेदशों ने पहले ही चीजों को होल्ड पर रख दिया है। वह नियमों के और स्पष्ट होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हर चीनी निवेशक चिंता में हैं। किसी भी सरकार की मंजूरी में महीने लग सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इससे भारतीय डिजिटल व्यापार पर असर पड़ेगा। जिन्हे कोरोना संकट से लड़ने के लिए फंड की जरूरत है।

एमजी मोटर्स और ग्रेट वॉल इस नीति और भविष्य की निवेश योजनाओं और इसके प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। एम जी ने पिछले साल ही भारत में गाड़ियां बेचने शुरू कर दिया था। लेकिन  650 मिलियन डॉलर का निवेश करना अभी बाकी है। हालांकि ग्रेट वॉल ने अभी उत्पादन शुरू नहीं किया है।

सरकारी अधिकारी ने मीडिया को बताया कि जबसे इन नीति को सार्वजनिक किया गया है तबसे भारत का उद्योग मंत्रालय कई प्रश्नों की समीक्षा कर रहा है। लेकिन  यह तय नहीं किया गया है कि आगे स्पष्टीकरण जारी किया जाएगा या नहीं। लेकिन फरवरी में कहा था कि उनके भारत में  आने वाले सालों में उनका 1 बिलियन डॉलर निवेश करने की योजना है।

यह नए नियम देश में स्थित संस्थाओं को नियंत्रित करते हैं जो भारत के साथ भूमि सीमा साझा करते हैं। इस तरह के सीधे विदेशी निवेश को अब सरकार की मंजूरी की जरूरत होगी। मतलब वह तथाकथित स्वचलित मार्ग से नहीं जा सकते। यह हांग-कांग से किए गए निवेश पर भी लागू होगा।

इस नीति से दोनों देशों के संबंधों में खटास आने का खतरा है। इसके साथ ही कोरोना के प्रकोप से पहले को भारत में चीन विरोधी भावना है उसे बढ़ावा मिल रहा है।

कंपनिया रोज ही उपभोगताओं की भावना से लड़ती हैं कि चीनी सामान हीन क्वालिटी के हैं और अब लोगों के विचार और भी खराब हो गए हैं क्योकि कोरोना महामारी के फैलने की शुरूआत चीन से ही हुई थी।

 


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