गतिरोध खत्म करने के करीब पहुंचे भारत-चीन

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चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से 30 किमी. पीछे जाने को हुआ सहमत  भारत भी भौतिक सत्यापन के बाद 15 किमी. पीछे जाने को तैयार  ‘टॉप सीक्रेट रोडमैप’ ने दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर बनाई सहमति 



नई दिल्ली, 10 नवम्बर (हि.स.)। भारत और चीन के बीच अगले हफ्ते होने वाली 9वीं सैन्य वार्ता से अच्छी खबर मिलने की उम्मीद है। सातवें दौर की वार्ता में एक-दूसरे को सौंपे गए ‘टॉप सीक्रेट रोडमैप’ पर दोनों देश गतिरोध खत्म करने के करीब पहुंचे हैं। आठवें दौर की वार्ता में चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से 30 किमी. पीछे जाने को सहमत हुआ है जिसका, भौतिक सत्यापन करने के बाद भारत भी 15 किमी. पीछे जाने को तैयार है। कमांडर स्तरीय वार्ता में बनी इन सहमतियों पर दोनों देशों का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व मंथन करके ‘फाइनल रोडमैप’ तैयार कर रहा है, जिसके आधार पर अगली वार्ता में दोनों देशों के बीच कार्ययोजना तैयार होनी है।
छठे दौर की वार्ता में 21 सितम्बर को दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में हुई बैठक के आधार पर गतिरोध खत्म करने के लिए एक रोडमैप मांगा गया था। सातवें दौर की वार्ता में 12 अक्टूबर को चीन और भारत ने एक दूसरे को ‘टॉप सीक्रेट रोडमैप’ सौंपे। इस पर भारत के शीर्ष सैन्य, राजनीतिक, कूटनीतिक और चाइना स्टडी ग्रुप ने मंथन किया। इसी तरह भारत के ‘टॉप सीक्रेट रोडमैप’ पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने भी अपने देश के राजनैतिक नेतृत्व से इस पर सलाह-मशविरा किया। छह नवम्बर को हुई आठवें दौर की कमांडर स्तरीय वार्ता में भारत और चीन ने एक दूसरे के सामने ‘फाइनल रोडमैप’ रखा। 
पिछली दो बैठकों में भारत ने चीन पर पूर्वी लद्दाख के सभी विवादित बिंदुओं से हटने के लिए दबाव बनाया। इनमें पैन्गोंग झील के दोनों किनारों समेत डेप्सांग में भी अप्रैल के पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए कहा गया। चीन से भारत का साफ़ कहना है कि उसे पूरे लद्दाख के सभी विवादित बिंदुओं से हटना होगा। यह भी कहा गया है कि वह पहले आगे आया है, इसलिए वह पहले पीछे जाए। चीन से फिंगर-4 से हटकर फिंगर-8 पर जाने को कहा गया। चीन ने कुछ निश्चित दूरी तक दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने के लिए वापसी का सुझाव दिया था लेकिन भारत ने इसे ख़ारिज कर दिया। आठवें दौर की वार्ता में रखे गए ‘फाइनल रोडमैप’ में चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से 30 किमी. पीछे जाने को सहमत हुआ है। 
भारत का कहना है कि चीन के 30 किमी. पीछे हटने का भौतिक सत्यापन करने के बाद ही भारत एलएसी से 15 किमी. पीछे हटने के बारे में फैसला लेगा। चीन ने फिर पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर की रणनीतिक ऊंचाइयों से भारत के हटने का मसला उठाया लेकिन भारत ने चीन की इस बात को ख़ारिज कर दिया कि वह अपनी सीमा में है और एलएसी पार करके इन पहाड़ियों को अपने नियंत्रण में नहीं लिया है, इसलिए इन्हें खाली करने का सवाल ही नहीं उठता। दोनों पक्षों द्वारा व्यापक प्रस्ताव बनाए गए हैं, जिन पर वार्ता के लिए तारीखों को अंतिम रूप देने पर चर्चा चल रही है। प्रस्ताव में सरकार पर उच्चतम स्तर पर चर्चा की जा रही है, जिसमें चीन नीति पर शीर्ष समूह, चीन अध्ययन समूह शामिल है। 
लद्दाख में लगातार तेजी से गिरते तापमान के बीच अब लगता है कि भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों को हटाने को लेकर आपसी सहमति के करीब पहुंच रहे हैं, क्योंकि सैन्य स्तर पर बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है​।​ ​इस दिशा में तौर-तरीकों को अगले कुछ दिनों में पूरी तरह से अंतिम रूप दिया जा सकता है, जिसमें चरणबद्ध तरीके से सभी विवादित क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाना भी शामिल है​।​ सूत्रों ने कहा कि हालांकि, भारत इस मामले पर सावधानी से आगे बढ़ रहा है क्योंकि वह चाहता है कि बातचीत और समझौते दोनों हकीकत में बदलें और जमीन पर लागू हों​।​ बातचीत में टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को उनकी वर्तमान पोजिशन से पीछे ले जाने का मामला भी शामिल है​।
​​​एक निजी कार्यक्रम​ में मंगलवार को सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने स्वीकार किया कि ​चीन से चल रहे गतिरोध को ख़त्म करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया जारी है। छह नवम्बर को हुई 8वें दौर की सैन्य कमांडर वार्ता में दोनों पक्षों के बीच कुछ मुद्दों पर सहमति बनी है और हम उम्मीद कर रहे हैं कि बहुत जल्द एक समझौते तक पहुंचने में सक्षम होंगे​। वार्ता में बनी सहमतियों पर आगे बढ़ने के लिए दोनों ही पक्ष अपने-अपने राजनीतिक और शीर्ष नेतृत्व के साथ मंथन कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन के बीच यह समझौता दोनों के लिए लाभकारी और परस्पर स्वीकार्य होगा​।
​लद्दाख में चीन सीमा पर तैनात सैनिकों को ठण्ड से बचाने के लिए किये गए उपायों के बारे में उन्होंने कहा कि गर्मियों ​​के मही​ने में सेना के सामानों की स्टॉकिंग ​के लिए सबसे उचित ​समय होता है, क्योंकि हमेशा ​नवम्बर से मई ​तक बर्फ़बारी की वजह से सड़क​ मार्ग बंद होने ​से दिक्कत होती है। यह ​हर साल की ​एक​ सामान्य प्रक्रिया है ​जो लम्बे समय से चली आ रही आ रही है​​। ​इसी प्रक्रिया के तहत इस बार भी सेना की जरूरतों के लिहाज से सामानों की स्टॉकिंग की गई है​। ​​सेना के पास अब सामानों की कोई कमी नहीं है​​। सभी सैनिकों को कपड़ों, उपकरणों, हथियारों से लैस किया गया है। ​हम ​हर जगह तैनात सैनिकों के लिए ​सामानों की पूर्ति करते हैं​ लेकिन इस बार ​मौजूदा स्थिति में तैनात अतिरिक्त सैनिकों के लिए आपातकालीन खरीद ​करनी पड़ी है, जिसे पूरा कर लिया गया है​।

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