नई दिल्ली, 22 सितम्बर (हि.स.)। भारत-चीन के बीच 14 घंटे चली वार्ता की शुरुआत में ही भारत की ओर से स्थिति साफ कर दी गई कि वो एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे और अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। इस वार्ता में सेना के साथ-साथ विदेश मंत्रालय को भी शामिल करके राजनयिक तौर से चीन पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। सेना के भी भारी-भरकम अधिकारी चीन से वार्ता करने के लिए बिठाए गए। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मॉस्को वार्ता में तय हुए पांच बिन्दुओं के आधार पर चीन से एक रोड मैप मांगा गया है। सीडीएस बिपिन रावत भी पहले कह चुके हैं कि चीन से आखिरी उम्मीद तक भारत के मुताबिक फैसलों पर अमल कराने की कोशिश की जाएगी। सभी तरह की वार्ताएं नाकाम होने पर ही सैन्य विकल्प का इस्तेमाल किया जाएगा।
बड़ी मुश्किल से छठे दौर की वार्ता के लिए तैयार हुए चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत ने जिस तरह 12 अफसरों की ‘फौज’ भेजी, उससे इसे ‘फाइनल’ मीटिंग माना जा रहा है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित भारतीय थल सेना की 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया। यह पहला मौका था जब इस सैन्य वार्ता में विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि के तौर पर संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव को भी शामिल किया गया। सेना की ओर से दो अतिरिक्त मेजर जनरल अभिजित बापट और मेजर जनरल पदम शेखावत भी चीन से वार्ता करने को बैठे।
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की ओर से नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर के आईजी दीपम सेठ भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने। अग्रिम चौकियों पर आईटीबीपी के ही जवान तैनात हैं और यह सुरक्षा बल गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है, इसलिए इस वार्ता में गृह मंत्रालय का भी प्रतिनिधित्व रहा। तीन जुलाई को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लद्दाख पहुंचे थे तो आईजी दीपम सेठ ने ही पीएम मोदी को एस्कॉर्ट किया था। चीन की ओर से मेजर जनरल लिन लिउ वार्ता में मौजूद रहे।
इस बार वार्ता में सेना मुख्यालय प्रतिनिधि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भी शामिल हुए। वार्ता में शामिल हुए चीनी जनरल ली शी झोंग और भारतीय जनरल मेनन के बीच अच्छा तालमेल माना जाता है। दोनों सैन्य अधिकारियों ने नवम्बर 2018 में अरुणाचल प्रदेश-तिब्बत सीमा पर भारत और चीन के बीच बुम ला में पहली मेजर जनरल स्तर की वार्ता का नेतृत्व किया। उस समय वह असम मुख्यालय वाले 71 इन्फैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) थे। तभी से जनरल पीजीके मेनन चीनियों से निपटने में विशेषज्ञ माने जाते हैं। जनरल मेनन को इस बैठक का हिस्सा इसलिए भी बनाया गया क्योंकि वह अक्टूबर से 14वीं कोर की कमान संभालने जा रहे हैं। वह सीधे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे को रिपोर्ट करते हैं।
मास्को में चीनी रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के साथ राजनाथ सिंह और डॉ. एस जयशंकर की बैठक के बाद यह पहला मौका था जब दोनों देशों के कोर कमांडरों की वार्ता के लिए चीन आगे आया। यही वजह रही कि इस बैठक को सिर्फ सैन्य वार्ता तक ही सीमित न रखकर कूटनीतिक वार्ता का रूप देने के लिए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव को भी शामिल किया गया। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में बनी पांच सूत्रीय सहमति को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए इस बार चीन पर मुख्य रूप से दबाव बनाया जाना था। इसलिए लद्दाख में तनाव को सैन्य और राजनयिक स्तर पर कम करने की यह भारत की ओर से अंतिम कोशिश मानी की जा रही है। इस वार्ता के बाद अब चीन के साथ आगे बैठक होगी या नहीं, इस पर चाइना स्टडी ग्रुप के साथ बैठक में फैसला हो सकता है।
दरअसल इससे पूर्व पांचवें दौर तक की वार्ता में दोनों देशों के कोर कमांडर ही आमने-सामने बैठे जिसमें तमाम मुद्दों पर चीन की ओर से सहमति भी जताई गई लेकिन जमीनी हालात जस के तस ही रहे। हर बार चीन की तरफ से सहमतियों को जमीन पर उतारने के बजाय धोखा ही मिला। इसकी वजह यह थी कि चीन की सेना बैठकों में कुछ कहती थी और चीन का विदेश मंत्रालय इससे अलग अपनी राय रखता था। यानी चीनी सेना और चीनी विदेश मंत्रालय में तालमेल न होने से ही सीमा पर तनाव लगातार बढ़ा। इसीलिए भारत मास्को वार्ता में तय हुए पांच बिन्दुओं के आधार पर चीन से एक रोड मैप चाहता है जिसमें एलएसी पर किये गए अवैध निर्माण, हजारों सैनिकों और हथियारों को पीछे हटाने की कार्ययोजना समयावधि के साथ शामिल हो। भारत ने इस वार्ता में सेना के अधिकारियों के साथ विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को भी शामिल करके चीन को यह भी सन्देश देने की कोशिश की है कि उनकी तरह हमारे पक्ष के शीर्ष नेतृत्व में तालमेल का अभाव बिलकुल नहीं है।