नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। पूर्वी लद्दाख के पैगॉन्ग झील इलाके में चीन के साथ फिर बढ़े टकराव की बुनियाद चीन ने 1999 में ‘कारगिल वार’ के दौरान ही रख दी थी। उस समय पैगॉन्ग झील के उत्तरी तट की पहाड़ियों को खाली छोड़कर भारतीय सैनिक पाकिस्तानी सैनिकों से कारगिल की चोटियां खाली करवाने चले गए थे। इस बीच मौका पाकर चीन ने खाली पड़ीं लद्दाख की चोटियों पर धीरे-धीरे कब्जा करना शुरू कर दिया। दो माह में कारगिल की बर्फीली पहाड़ियां तो पाकिस्तान से वापस ले ली गईं लेकिन इसके बाद लद्दाख में खाली पड़ी चोटियों पर भारतीय सैनिक नहीं लौटे। इसी का नतीजा है कि आज चीन से अपनी ही लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियां वापस लेना मुश्किल हो रहा है। चीनी सेना को एक बार फिर पैगॉन्ग झील के पास चीनी घुसपैठ को भारतीय जवानों ने रोका है लेकिन चीन बार-बार भारतीय फिंगर-4 पर अपना दावा जताता है और भारतीय फौज के जवान उसे उल्टे पैर वापस भेज देते हैं।
कारगिल युद्ध का चीन ने उठाया फायदा
भारत-पाकिस्तान के बीच लगभग 60 दिनों तक कारगिल युद्ध चला जो 26 जुलाई, 1999 को खत्म हुआ। भारतीय सेना कारगिल युद्ध तक पूर्वी लद्दाख की चीन सीमा पर पैगॉन्ग झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 तक स्थायी रूप से तैनात रहती थी। कारगिल में संघर्ष शुरू होने पर लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर तैनात सैनिकों को वहां बुला लिया गया, क्योंकि ठंड के वातावरण में रहने के अभ्यस्त होने के कारण वे कारगिल के शून्य से नीचे तापमान में युद्ध लड़ने में सक्षम थे। इस वजह से पैगॉन्ग झील के फिंगर-8 तक का इलाका भारतीय सैनिकों से खाली हो गया। इसी बीच मौका पाकर चीनी सेना पीएलए ने फिंगर 5 तक सड़कों का निर्माण कर लिया जबकि इससे पहले चीनी सेना फिंगर 8 के पीछे अपने इलाके यानी सिरजैप और खुरनाक फोर्ट पर तैनात रहती थी। दरअसल फिंगर 8 के बाद का यह चीनी इलाका चट्टानी है, जिसकी वजह से चीनी सेना को पेट्रोलिंग के लिए फिंगर 8 तक आने में दिक्कत होती थी। मौके का फायदा उठाकर फिंगर 5 तक बनाई गई सड़कों की वजह से चीनियों के लिए यहां तक आवाजाही की समस्या खत्म हो गई।
भारत की ओर से हुई बड़ी चूक
भारतीय सेना ने 60 दिनों में कारगिल की चोटियां तो पाकिस्तानियों से खाली करा लीं लेकिन इसकी बड़ी कीमत पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चुकानी पड़ी। यहां भारत की ओर से बड़ी चूक यह हुई कि कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद सेना को वापस लद्दाख की सीमा पर नहीं भेजा गया। इसी का फायदा उठाकर चीन ने फिंगर 5 तक सड़कों का निर्माण करके यहां कई स्थाई ढांचों और बंकरों का निर्माण करके फिंगर-8 तक पूरी तरह कब्जा जमा लिया। मौजूदा तनाव के बीच फिंगर-4 तक चीनी सैनिक आ गए हैं। इसे ऐसे समझना आसान होगा कि फिंगर-4 और फिंगर-8 के बीच आठ किमी. की दूरी है। इस तरह देखा जाए तो चीन ने आठ किलोमीटर आगे बढ़कर फिंगर-4 पर पैगॉन्ग झील के किनारे आधार शिविर, पिलबॉक्स, बंकर और अन्य बुनियादी ढांंचों का निर्माण कर लिया है। पीएलए ने फिंगर-5 के पास 2 और बंकरों का निर्माण किया है। अब यहां चीन के कुल 6 बंकर हो गए हैं।
अब चीनी सैनिक हटने को तैयार नहीं
विवाद की मुख्य जड़ फिंगर-4 से चीनी सैनिक हटने को तैयार नहीं हैं। पैगॉन्ग लेक इलाके के फिंगर एरिया में चीनी सेना ने पक्के निर्माण कर रखे हैं और यहां भारत और चीन के आमने-सामने होने से अभी भी तनाव बरकरार है। सैन्य वार्ताओं में भारत की तरफ से साफ कहा गया कि चीन को पैगॉन्ग एरिया में फिंगर-8 से पीछे जाना होगा लेकिन चीन इस पर बिल्कुल सहमत नहीं है। पैगॉन्ग झील के किनारे से चीनी सैनिक फिंगर-4 से फिंगर-5 तक पीछे हटे हैं लेकिन अभी भी रिज लाइन या छोटे पहाड़ी रास्तों से हटने को तैयार नहीं हैं। भारतीय सैनिक फिंगर-3 और फिंगर-2 के बीच आ गए हैं। अभी भी चीनी सेना ने फिंगर-8 और फिंगर-4 के बीच बनाए गए ढांचों को नहीं गिराया है। चीन के सैनिक भारतीय गश्ती दल को फिंगर-4 से आगे नहीं जाने देते हैं।
एलएसी को एकतरफा बदलने की कोशिश
पूर्वी लद्दाख के पैगॉन्ग झील इलाके में एलएसी पर दोनों पक्षों में तनाव बढ़ने की शुरुआत यहीं से हुई थी। चीनी सेना को पीछे करने के हुई वार्ताओं में चीन का दावा रहता है कि फिंगर 8 से फिंगर 5 तक उसने वर्ष 1999 में सड़क बनाई थी, ऐसे में ये इलाका उसका है। भारत का कहना है कि चीन ने दोनों देशों के बीच एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल) की शांति को लेकर हुए समझौते का उल्लंघन किया है, क्योंकि फिंगर 5 तक कैंप और सड़क बनाकर चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश की है। शांति समझौते के तहत दोनों देश एलएसी पर बिना एक-दूसरे की रजामंदी के किसी भी तरह का ‘बदलाव’ नहीं कर सकते।