नई दिल्ली, 28 नवम्बर (हि.स.)। भारत और चीन के बीच 8वीं सैन्य वार्ता में बनी सहमतियों को जमीन पर उतारने के लिए दोनों देशों में अगली वार्ता की तारीख अब तक नहीं तय हो पाई है। इससे अब यह साफ है कि पूर्वी लद्दाख सीमा पर सात महीने से चल रहा सैन्य टकराव कठोर सर्दियों तक जम गया है और इस दौरान भी दोनों देशों के सैनिक बर्फीली ऊंचाइयों पर तैनात रहेंगे। भारत और चीन के बीच सबसे विवादित क्षेत्र पैन्गोंग झील में भारतीय नौसेना ने मार्कोस कमांडो तैनात कर दिए हैं। हालांकि माइनस में पारा पहुंचने के बाद पैन्गोंग झील बर्फ बन जाएगी लेकिन नौसेना ने फिलहाल पेट्रोलिंग के लिए हाईटेक नावें भी भेजीं हैं।
एलएसी के रणनीतिक स्थानों पर पहले से ही भारतीय सेना की पैरा स्पेशल फोर्सेस और एयर फोर्स के गार्ड कमांडो तैनात हैं। अब तैनात किये गए नौसेना के मार्कोस कमांडो तीनों सेनाओं को एकीकृत करेंगे, जिस तरह यहां भारतीय वायुसेना के गार्ड कमांडो भारतीय सेना की पैरा स्पेशल फोर्सेस के साथ समन्वय में काम करते हैं। नौसेना के मार्कोस कमांडो और वायुसेना के गार्ड कमांडो अपने मिशन को चुपके से निपटाने में माहिर होते हैं, इसीलिए इन्हें अत्यधिक ठंडे मौसम की स्थिति में घुसपैठ रोकने की ट्रेनिंग के साथ तैनात किया गया है। मार्कोस कमांडो को पैन्गोंग क्षेत्र में इसलिए तैनात किया गया है, क्योंकि यहीं पर भारतीय और चीनी सेना 8 माह से संघर्ष की स्थिति में आमने-सामने हैं। नौसेना के कमांडो को जल्द ही झील क्षेत्र में संचालन के लिए नई नावें मिलने वाली हैं। हालांकि माइनस में पारा पहुंचने के बाद पैन्गोंग झील बर्फ बन जाएगी लेकिन नौसेना ने फिलहाल पेट्रोलिंग के लिए हाईटेक नावें भी भेजीं हैं।
दोनों देशों के बीच 6 नवम्बर को कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के आठवें दौर के बाद अब तक कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है। पारस्परिक रूप से स्वीकार्य पीछे हटने के तौर-तरीकों और सहमतियों को जमीन पर उतारने के बारे में वार्ता लगभग रुकी हुई है। चीन ने नौवें दौर की सैन्य वार्ता के लिए तारीख पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। चीन पंगोंग झील के दक्षिणी किनारे और चुशुल क्षेत्र से प्रस्तावित विघटन शुरू करने पर अड़ा है, जहां भारतीय सैनिकों ने 29-30 अगस्त के बाद ठाकुंग चोटी से गुरुंग हिल, स्पैगपुर गैप, मागर हिल, मुखपारी, रेजांग ला और रिज लाइन को अपने नियंत्रण में लिया है। भारत पहले पैन्गोंग झील के उत्तरी किनारे से चीन को पीछे भेजना चाहता है, जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने फिंगर 4 से 8 तक 8 किलोमीटर के क्षेत्र में मई से कब्जा जमा रखा है।
इसलिए पैन्गोंग का उत्तरी और दक्षिणी किनारा दोनों देशों के बीच सबसे ज्यादा ‘गले की हड्डी’ बना है। इसके अलावा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डेप्सांग प्लेन इलाके में भी पिछले सात महीनों से पीएलए सैनिक सक्रिय हैं और भारतीय गश्त को रोक रहे हैं। आठवें दौर की वार्ता में भारत और चीन पैंगोंग झील और चुशुल क्षेत्र से सैनिकों, टैंकों, हॉवित्जर और बख्तरबंद वाहनों को वापस करने पर सहमत हुए थे लेकिन इसके लिए तौर-तरीकों पर असहमति की वजह से अब तक कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है। दोनों सेनाओं के सैनिक 15 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर बैठे हैं, जहां अब तापमान शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे है। पीएलए के सैनिक ऑक्सीजन की कमी से बेहोश होने लगे हैं जबकि भारतीय सैनिक इस तरह की लड़ाई में तैनात होने के आदी हैं।
इस बीच लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर उच्च ऊंचाई पर भारत ने अभ्यस्त सैनिकों की तैनाती की है। सेना ने इन ऊंची ऊंचाइयों को भी तीन हिस्सों में बांटा है। अगर सैनिक को 9 हजार से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात किया जाता है तो इसके लिए 6 दिन का अधिकतम तैनाती समय होता है। इसे स्टेज वन कहते हैं। 12 हजार से 15 हजार फीट की ऊंचाई के लिए स्टेज टू होता है, जिसमें 10 दिन का अधिकतम तैनाती समय होता है। इसी तरह स्टेज थ्री के लिए 4 अतिरिक्त दिन यानी कुल 14 दिन होते हैं। यह 15 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई के लिए होता है। ऊंचाई के हिसाब से क्लोदिंग और इक्विपमेंट भी बदल जाते हैं। इसीलिए सेना ने इन्हीं मानकों के अनुसार उच्चतम ऊंचाई पर तैनात सैनिकों की रोटेशनल तैनाती शुरू की है।