नई दिल्ली, 03 सितम्बर (हि.स.)। कभी लद्दाख, कभी अक्साई चिन, कभी तिब्बत तो कभी डोकलाम और कभी सिक्किम। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के चलते जमीनी सीमा का उल्लंघन करने से बाज नहीं आता। इसी वजह से 1962 के युद्ध के बाद पहली बार चीन के साथ टकराव चरम पर है। खासकर मई से लेकर अब तक चीन और भारत के बीच लगातार सीमा विवाद बढ़ा है। 1962 के बाद यह पहला मौका है जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की उन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है, जहां दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने खुलासा किया है कि भारतीय सैनिकों से टकराने के बजाय पीछे हटने पर चीनी सेना इस इलाके के अपने कमांडर से बुरी तरह खफा है। गुरुवार सुबह से एलएसी के निकट भारतीय और चीनी वायुसेना की आसमान में हलचल बढ़ी है। 6 चीनी फाइटर जेट्स गलवान घाटी के 40 किमी. उत्तर-पश्चिम की ओर देखे गए हैं। इसके बाद भारतीय वायुसेना भी सतर्क हो गई है और एयर डिफेन्स सिस्टम सक्रिय कर दिया गया है।
भारत और चीन के बीच सीमा का विवाद करीब 6 दशक पुराना है। इसे सुलझाने के लिए भारत ने हमेशा पहल की लेकिन चीन ने कभी अपनी तरफ से ऐसा नहीं किया। दोनों देशों के बीच कई इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) स्पष्ट न होने की वजह से चीन और भारत के बीच के घुसपैठ को लेकर विवाद होते रहे हैं। इस बार पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर का लगभग 70 किमी. क्षेत्र भारत और चीन के बीच नया हॉटस्पॉट बना है। यह नया मोर्चा थाकुंग चोटी से शुरू होकर झील के किनारे-किनारे रेनचिन ला तक है। भारत की सीमा में आने वाले इस पूरे इलाके में रणनीतिक महत्व की तमाम ऐसी पहाड़ियां हैं जिन पर 1962 के युद्ध के बाद दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं।
चीन ने 29/30 अगस्त की रात भारत के साथ नया मोर्चा पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर पर खोला है। भारतीय इलाके की थाकुंग चोटी पर कब्ज़ा करने आये चीनी सैनिकों को खदेड़ने के बाद तनाव ज्यादा ही बढ़ा है। चीनियों ने एक बार फिर धोखेबाजी करके भारत को एहसास करा दिया कि अब इन पहाड़ियों को खाली छोड़ना ठीक नहीं है। इसलिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने एक-दूसरे की फायरिंग रेंज में टैंक, आर्टिलरी गन, रॉकेट लॉन्चर और सर्विलांस ड्रोन के अलावा हजारों सैनिकों की तैनाती कर दी है। इन तीन दिनों के भीतर भारतीय सैनिकों ने 70 किमी. में सीमा के साथ लगी रणनीतिक महत्व की कई शीर्ष पहाड़ियों पर कब्जा करके चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चौंका दिया है। लगभग 15 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित इन पहाड़ियों को सिर्फ ड्रोन और अन्य निगरानी उपकरणों के जरिये ही देखा जा सकता है।
चीन अपने कमांडर से नाराज
पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर पर भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद चीन को शर्मिंदा करने वाली अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने जानबूझकर भारत को उकसाने के लिए पैन्गोंग झील के इस इलाके में घुसपैठ की कोशिश की। चीन अब इसलिए बौखला गया है कि उसके कमांडर ने भारतीय सैनिकों से टकराने के बजाय पीछे हटने का फैसला क्यों किया? अमेरिकी खुफिया विभाग का कहना है कि चीनी सेना में एक कर्नल रैंक वाले अधिकारी ने अपनी सेना को बीजिंग से मिले उच्च सैन्य आदेशों के खिलाफ अपनी सेना को वापस होने का आदेश दिया।
अमेरिका खुफिया का मानना है कि इस बार चीनी सैनिक दोनों पक्षों के बीच युद्ध में बढ़त हासिल करने के लिए यह उकसाने वाली कार्रवाई कर रहे थे। भारतीय सैनिकों के आने के बाद स्थिति ‘हाथापाई’ होने के करीब थी लेकिन दोनों पक्षों के अधिकारियों ने वास्तविक लड़ाई शुरू होने से पहले अपनी-अपनी सेना वापस ले ली। रिपोर्ट में कहा गया है कि गलवान घाटी में भारत की कड़ी कार्रवाई देख चुकी चीन की सेना इतनी घबरा गई थी कि 29 अगस्त की रात भारतीय सेना को देखकर चुपचाप पीछे हट गई। अमेरिका का मानना है कि जून में गलवान की घटना के बाद भारतीय सेना ने एलएसी पर अपनी चौकसी बढ़ा दी थी और भारतीय सेना चीन के उकसावे और उससे निपटने के लिए पहले से तैयार थी। रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि एलएसी पर भारत की तैयारियों को जानते हुए भी चीनी सेना ने 29 अगस्त की रात जो किया, वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसी बात है।
रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं कि चीन के लिए इससे अधिक अपमानजनक कुछ भी नहीं हो सकता है क्योंकि भारत अपनी विशेष फ्रंटियर फोर्स का उपयोग कर रहा है, जिसमें मुख्य रूप से तिब्बती निर्वासित हैं जो चीनी सेना की घुसपैठ को विफल कर रहे हैं। एक समय चीन ने इन्हीं तिब्बतियों को निर्वासित कर दिया लेकिन अब यही भारत के तिब्बती सैनिक अपनी वीरता से पीएलए घुसपैठियों को पीछे धकेल रहे हैं।