अब मोर्चे पर और सैनिक नहीं बढ़ाएंगे भारत-चीन

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​एकतरफा ​जमीनी कार्रवाई से हालात बदलने की कोशिश न करने पर बनी सहमति  ​सीमा पर तैनात सैनिकों और ​सैन्य साजो-सामान पीछे करने पर नहीं बनी कोई राय  



​नई दिल्ली, 23 सितम्बर (हि.स.)​​।​ ​​भारत और चीन ​​लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) ​पर 20 सप्ताह ​से चल रहे सैन्य गतिरोध को हल करने ​की दिशा में एक कदम आगे बढ़े हैं।​ ​दोनों देश सीमा ​पर अधिक सैनिकों को ​इकठ्ठा न करने और ​​एकतरफा ​जमीनी कार्रवाई से हालात बदलने की कोशिश ​न करने पर सहमत​ हो गए हैं​।​​ साझा बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सीमा के दोनों तरफ मौजूदा समय ​में तैनात हजारों सैनिकों ​और​ ​​सैन्य साजो सामान को पीछे करने के बारे में दोनों देशों के बीच क्या सहमति बनी है​।  ​​
​भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच ​सोमवार को छठे दौर की करीब 14 घंटे चली ​​बैठक में दोनों देशों के बीच बनी सहमतियों पर मंगलवार देर शाम साझा बयान जारी किया गया। ​​सोमवार सुबह करीब 9 बजे से यह बैठक लद्दाख में चीन की ओर स्थित मॉल्डो में शुरू हुई और रात 11 बजे खत्म हुई। ​​साझा बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष “सीमा पर और अधिक सैनिकों को भेजने से रोकने के लिए सहमत हैं, एकतरफा रूप से जमीन पर ​ऐसी किसी भी कार्रवाई ​करने से ​बचेंगे जो स्थिति को जटिल कर सकते हैं”।​ इसे एलएसी ​पर चल रहा विवाद हल करने के लिए पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि दोनों पक्षों ने ​इन बिन्दुओं पर सहमति बनने के बाद यह बयान जारी ​किया है​।​​
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​बयान में कहा गया है कि ​दोनों पक्षों ने जल्द से जल्द​ 7वें दौर की सैन्य कमांडर-स्तरीय बैठक आयोजित करने​, जमीन पर समस्याओं को ठीक से हल करने के लिए व्यावहारिक उपाय करने​ ​और सीमा क्षेत्र में शांति और शांति की रक्षा के लिए संयुक्त रूप से सहमति व्यक्त की​ है​।​​ ​संयुक्त वक्तव्य में ​यह भी ​कहा गया है कि दोनों पक्षों ने​ वार्ता के दौरान एलएसी के साथ स्थिति को स्थिर करने ​के बारे में ​खुले तौर पर चर्चा की​। बयान में कहा गया, “दोनों देश महत्वपूर्ण सहमति को लागू करने, जमीन पर संचार ​तंत्र ​को मजबूत करने और गलतफहमी से बचने के लिए ईमानदारी से ​सहमतियों ​को लागू करने पर ​राजी हुए​ हैं​।”​​ ​छठे दौर की ​इस ​वार्ता ​से पहले 6 जून से 2 अगस्त के बीच दोनों कमांडर पांच बार ​आमने-सामने बैठकर वार्ता कर चुके हैं​​​​।​
​संयुक्त बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सीमा के दोनों तरफ मौजूदा समय ​में तैनात हजारों सैनिकों को पीछे करने के बारे में दोनों देशों के बीच क्या सहमति बनी है​। कुल मिलाकर वार्ता में दोनों देश मिलकर यह नहीं तय कर पाए हैं कि एलएसी पर मौजूदा समय में दोनों तरफ भारी संख्या में तैनात सैनिकों और सैन्य साजो सामान को कैसे और कब पीछे किया जाएगा। इसका मतलब लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों की सर्दियां ऐसे ही गुजरेंगी। जहां तक सीमा पर और अधिक सैनिकों की संख्या न बढ़ाये जाने की बात है तो पहले से भारत के करीब 50 हजार से ज्यादा सैनिक तैनात हैं। अब इससे और अधिक सैनिकों को तैनात करने की आवश्यकता भी नहीं है। सैनिकों की यही संख्या किसी भी गंभीर स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त हैं।​
बड़ी मुश्किल से छठे दौर की वार्ता के लिए तैयार हुए चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत ने 12 अफसरों की ‘फौज’ भेजी थी।​ भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित भारतीय थल सेना की 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया। यह पहला मौका था जब इस सैन्य वार्ता में विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि के तौर पर संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव को भी शामिल किया गया। सेना की ओर से दो अतिरिक्त मेजर जनरल अभिजित बापट और मेजर जनरल पदम शेखावत भी चीन से वार्ता करने को बैठे। इस बार वार्ता में सेना मुख्यालय प्रतिनिधि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भी शामिल हुए। जनरल मेनन को इस बैठक का हिस्सा इसलिए भी बनाया गया क्योंकि वह अक्टूबर से 14वीं कोर की कमान संभालने जा रहे हैं। अग्रिम चौकियों पर तैनात भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की ओर से नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर के आईजी दीपम सेठ भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने।

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