नई दिल्ली, 26 जुलाई (हि.स.)। पूर्वी लद्दाख के डेप्सांग मैदानी क्षेत्र, पैंगोंग झील और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स एरिया के विवादित मुद्दों को लेकर भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तरीय पांचवें दौर की बैठक अगले सप्ताह होगी। पूर्व की चार बैठकों के बाद दोनों देशों के सैन्य कमांडर हॉटलाइन पर एक-दूसरे के सम्पर्क में थे। मगर बात न बनने पर अब फिर आमने-सामने बैठकर रुकी हुई विघटन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के साथ ही रणनीतिक रूप से यथास्थिति बहाल करने पर चर्चा करेंगे। फिलहाल चीन के अड़ियल रुख को देखते हुए भारतीय सेनाओं ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा संभालने के इरादे से खुद को तैयार करना शुरू कर दिया है।
भारतीय क्षेत्र के चार विवादित क्षेत्रों में से पैंगोंग झील और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स एरिया में चीनी सेना अभी तक पीछे नहीं हटी है, बल्कि मई के बाद 30 हजार से अधिक सैनिकों और भारी हथियारों की तैनाती में वृद्धि हुई है। भारत और चीन के बीच पैंगोंग झील का उत्तरी तट मुख्य समस्या बना हुआ है। चीनी सैनिक अब तक सिर्फ फिंगर-4 से फिंगर-5 पर वापस गए हैं लेकिन पूरी तरह से रिज-लाइन को खाली नहीं किया है। चीनियों ने मई के बाद फिंगर-4 से फिंगर-8 तक 8 किलोमीटर के हिस्से पर कब्जा करने के बाद स्थायी ढांचों का निर्माण भी किया है। अभी तक गलवान घाटी में 15 जून को हुई झड़प की जगह, हॉट स्प्रिंग्स में पेट्रोलिंग-15 और पेट्रोलिंग पॉइंट-14 पर चीनी सैनिकों को पीछे हटाने का काम पूरा हुआ है। अभी भी गोगरा के पेट्रोलिंग पॉइंट-17 ए में दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के करीब हैं। गलवान घाटी के उत्तर में डेप्सांग मैदानी क्षेत्र भी प्रमुख चिंता का विषय है। भारत डेप्सांग मैदानी क्षेत्र में एक-दूसरे की गश्त रोकने के ‘पुराने नियम’ पर जोर दे रहा है। चीनी सैनिक अभी भी भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग पॉइंट-10, 11, 12 और 13 में जाने से रोक रहे हैं।
कारगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का रविवार को 21वां जश्न मना रही भारतीय सेना के लिए लद्दाख की खून जमा देने वाली बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं। चीन से तनातनी फिलहाल खत्म होती नहीं दिखती। इसलिए सेना ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा संभालने के इरादे से खुद को तैयार कर लिया है। चीन के अड़ियल रुख को देखते हुए भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में अग्रिम मोर्चों पर तैनात सैनिकों के लिए राशन और अन्य इंतजाम करने शुरू कर दिए हैं। खासकर उन सैनिकों के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं, जिन्हें सुपर उच्च ऊंचाई वाले ठंड के क्षेत्र में तैनात किया गया है। कई डिवीजन के सैनिकों को 14 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर तैनात किया गया है, जहां अक्टूबर के अंत में रात का तापमान शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस तक नीचे जा सकता है। जिन रेजिमेंट की ऊपर पहाड़ियों पर तैनाती की गई है, वे कुछ हफ्तों के लिए राशन आदि के अपने स्टॉक पर टिक सकती हैं। उनके पास कई स्थानों पर पूर्व-निर्मित आवासों के अलावा टेंट भी हैं। अधिक ऊंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए बर्फ या आर्कटिक टेंट की भी व्यवस्था की जा रही है।
सेना के उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने कहा कि सैन्य वार्ता के बाद सीमा रेखा से पीछे हटने की शुरू की गई ‘जटिल और जटिल’ प्रक्रिया को स्थानीय कमांडरों द्वारा सत्यापित किया जाएगा ताकि जमीन पर इसकी ‘सत्यता और शुद्धता’ सुनिश्चित की जा सके। इस प्रक्रिया के लिए समय-सीमा देने से इनकार करते हुए लेफ्टिनेंट-जनरल जोशी ने कहा, “मेरा मानना है कि यह बातचीत और प्रक्रिया दोनों पक्षों द्वारा निर्धारित कार्यप्रणाली का पालन करने की प्रतिबद्धता स्टैंडऑफ की समय-सीमा तय करेगी।”