नई दिल्ली, 05 अक्टूबर (हि.स.)। वास्तविक नियंत्रण रेखा(एलएसी) पर चीन के साथ जिस सड़क निर्माण को लेकर गतिरोध शुरू हुआ था, वह अब बनकर लगभग तैयार हो गई है। दौलतबेग ओल्डी (डीबीओ) तक सड़क बनाने का फैसला शुरू से ही चीन को अखरा था। हालांकि चीन को यह गलतफहमी थी कि भारत शायद ही यह मुश्किल कार्य कर पाए। इसके साथ उसने अड़ंगेबाजी करने के अलावा अपने विरोध को मौजूदा हालातों तक पहुंचाया लेकिन भारत ने अपना कार्य नहीं रोका और डीबीओ तक रणनीतिक सड़क तैयार करके चीन को चौंका दिया है। अब इस रोड पर सिर्फ ब्लैक टॉपिंग होना बाकी है जो इस महीने के अंत तक पूरी हो जाएगी। इससे गलवान घाटी को जोड़ने के लिए 10 किलोमीटर की लिंक रोड भी बहुत तेजी से बन रही है।
पूर्वी लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक सड़क निर्माण पांच महीने से चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध के बावजूद सभी प्राथमिकताओं में में से एक था। दुर्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग (डीएस–डीबीओ) का निर्माण अब अंतिम दौर में है। इसके अलावा लद्दाख से जुड़ीं कई अन्य परियोजनाओं पर तेजी से कार्य चल रहा है। इन परियोजनाओं को शुरू करने का फैसला तो वाजपेयी सरकार में हुआ था लेकिन निर्माण कार्य में तेजी मोदी सरकार में आई। इन्हीं में से एक अटल टनल का निर्माण पूरा होने के बाद 3 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उद्घाटन किया है। लेह के लिए नीमू-पद्म-दार्चा सड़क भी जल्द ही चालू हो जाएगी जिसका निर्माण कार्य पूरा होने के अंतिम चरण में है। सरकार ने एलएसी के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक सड़कों के लिए बजट में 1,200 करोड़ रुपये की वृद्धि की है। लद्दाख के सीमा क्षेत्रों में कई और सड़कों का निर्माण कराया जाना है।
चीन को पहले लग रहा था कि भारत दौलतबेग ओल्डी (डीबीओ) तक सड़क नहीं बना पायेगा क्योंकि पहाड़ों को काटना और स्ट्रेटजिक सड़क बनाना आसान नहीं होगा लेकिन चीन का माथा तब ठनका जब सड़क बनकर लगभग 80 प्रतिशत तैयार हो गयी। दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क का निर्माण कार्य अब लगभग पूरा हो गया है और इसी माह के अंत तक चालू होने की उम्मीद है। यह सड़क दुर्बुक से अंतिम भारतीय ग्राम श्योक तक लगभग 255 किलोमीटर लम्बी है। यह सड़क भारत-चीन की सीमा एलएसी के लगभग समानांतर है जो 13,000 फुट से 16,000 फुट के बीच की विभिन्न बीच ऊंचाई से होकर गुजरती है। यह सड़क लेह को काराकोरम दर्रे से जोड़ती है तथा चीन के शिनजियांग प्रांत से लद्दाख को अलग करती है।
दरअसल 1962 में सड़कों, पुलों का विकास न होने से भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए जाना जाता है। महज एक माह के इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था, इसलिए वह इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था। युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरूरत महसूस की गई। पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) का नक्शा बदलने की शुरुआत सही मायने में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से हुई। उस समय कुल 61 सामरिक स्थानों को चिन्हित करके एलएसी पर रणनीतिक सड़कें बनाने का फैसला लिया गया। इसी के तहत कश्मीर से दौलतबेग ओल्डी तक सड़क बनाने का फैसला लिया गया। वाजपेयी सरकार मेंं सड़क बनाने के फैसले तो लिए गए लेकिन सड़कें बनाने के काम में तेजी मोदी सरकार में आई।
सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने भी कहा है कि डीबीओ रोड की ब्लैक टॉपिंग इस महीने के अंत तक पूरी हो जाएगी। डीबीओ सड़क से खूनी गलवान घाटी को जोड़ने के लिए 10 किलोमीटर की लिंक रोड बहुत तेजी से बन रही है। इस लिंक रोड के बनने पर भारतीय सेना सिर्फ आधे घंटे में गलवान घाटी पहुंच सकती है जिसमें अभी लगभग 8 घंटे लगते हैं।इसीलिए चीन इस सड़क का काम बंद करने के लिए भारत पर दबाव बना रहा है। डीबीओ रोड के अलावा डेमचोक और कारगिल में भी परियोजनाएं चल रही हैं। पूर्वी और पश्चिमी लद्दाख में कई सड़कें बन रही हैं। रोहतांग में 10,040 फीट की ऊंचाई पर अटल सुरंग का उद्घाटन होने के बाद अब शिंकू ला दर्रे के पास पांच किलोमीटर लंबी सुरंग की योजना में तेजी लाये जाने की योजना है, फिर भी इसके पूरा होने में तीन साल लग सकते हैं। इस सुरंग का भी हर मौसम में इस्तेमाल किया जा सकेगा।