नई दिल्ली, 04 सितम्बर (हि.स.)। चार राउंड की बात होने के बाद भी भारत-चीन के बीच सीमा पर तनाव कम होता नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में भारतीय सेना को हाई अलर्ट पर रखा गया है। थाकुंग चोटी पर चीनी घुसपैठ नाकाम किये जाने के बाद भारत और चीन के सैन्य अधिकारी बातचीत के जरिए मसले का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। शुक्रवार को चुशूल में सुबह 10 बजे से पांचवें राउंड की बैठक चल रही है, क्योंकि इससे पहले चार राउंड की बैठक बेनतीजा रही है। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने आज ही इस क्षेत्र का दौरा किया और सीमा के हालात को बहुत ही नाजुक और गंभीर बताया है। उन्होंने चीन को सख्त सन्देश दिया कि हमारे जवानों का जोश बरकरार है और हर स्थिति का सामना करने को तैयार हैं।
यह मोर्चा चीन ने ही 29/30 अगस्त की रात थाकुंग चोटी पर कब्जा करने के प्रयास से खोला है। चीनियों को खदेड़ने के बाद आक्रामक हुई भारतीय सेना ने पैंगोंग के दक्षिणी छोर की उन पहाड़ियों पर कब्जा करने का अभियान छेड़ दिया, जिन पर 1962 के युद्ध के बाद दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं। इसी के बाद से चीन बौखलाया हुआ है और चार राउंड की बात होने के बाद भी भारत-चीन के बीच सीमा पर तनाव कम होता नजर नहीं आ रहा है। चारों बैठकें बेनतीजा रहने के बावजूद शुक्रवार को भी चुशूल में सुबह 10 बजे से पांचवें राउंड की बैठक चल रही है।
भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने भी आज ही चुशूल क्षेत्र का दौरा करके सीमा के हालात बहुत ही नाजुक और गंभीर बताया है। यहां की स्थिति देखने के बाद नरवणे ने कहा कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर तनाव बढ़ता जा रहा है। स्थिति बहुत ही नाजुक और गंभीर है लेकिन हमने अपनी सुरक्षा के लिए सभी रणनीतिक कदम उठाए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे जवानों का जोश बरकरार है और हर स्थिति का सामना करने को तैयार हैं। तनावपूर्ण स्थिति खत्म करने के लिये वार्ता चल रही है और हम बातचीत के जरिए ही मौजूदा हालात से निपटेंगे। सेना प्रमुख ने इस क्षेत्र के दौरे के समय तैनात जवानों की पीठ थपथपाई और किसी भी परिस्थिति से मुकाबला करने के लिये हौसला अफजाई की।
चीन से 1962 में हुए युद्ध के बाद यह पहला मौका है, जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की उन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है, जहां दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं। वैसे तो भारत और चीन के बीच सीमा का विवाद करीब 6 दशक पुराना है। इसे सुलझाने के लिए भारत ने हमेशा पहल की लेकिन चीन ने कभी अपनी तरफ से ऐसा नहीं किया। दोनों देशों के बीच कई इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) स्पष्ट न होने की वजह से चीन और भारत के बीच के घुसपैठ को लेकर विवाद होते रहे हैं। इस बार पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर का लगभग 70 किमी. क्षेत्र भारत और चीन के बीच नया हॉटस्पॉट बना है। यह नया मोर्चा थाकुंग चोटी से शुरू होकर झील के किनारे-किनारे रेनचिन ला तक है। भारत की सीमा में आने वाले इस पूरे इलाके में रणनीतिक महत्व की करीब 30 ऐसी पहाड़ियां हैं, जिन पर भारतीय सेना ने सैनिकों की तैनाती करके चीन के मुकाबले ज्यादा रणनीतिक ऊंचाई हासिल कर ली हैं।
ठंड के दिनों में पहाड़ों पर रहने के आदी नहीं चीनी सैनिक
भारत-चीन सीमा तनावपूर्ण माहौल के बीच सेना को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए गये हैं। आने वाला सर्दियों का मौसम भारतीय सेना के लिए अनुकूल होगा, क्योंकि उसके सैनिक ठंड के दिनों में उच्च ऊंचाई पर रहने के अभ्यस्त और पहाड़ी युद्ध में सबसे अच्छे माने जाते हैं जबकि चीनी सेना को इसका कोई अनुभव है। चीन अगर अगले चार हफ्तों में कार्रवाई करने में विफल रहता है तो उसे अगले साल तक इंतजार करना होगा क्योंकि वे ठंड के दिनों में पहाड़ों पर रहने के अभ्यस्त नहीं हैं। सर्दी के दौरान लेह के आसपास 20 हजार सैनिकों को रखने की व्यवस्था की जा रही है। चुशूल क्षेत्र का तापमान शून्य से 30 डिग्री नीचे और पहाड़ियों पर इससे ज्यादा भी गिर जाता है। लद्दाख में सितम्बर के मध्य तक बर्फबारी शुरू हो जाती है, जो अगले 7-8 महीनों तक जारी रहती है। इसलिए लद्दाख में तैनात करीब 60 हजार सैनिकों को शून्य से 40 डिग्री नीचे के तापमान में सुरक्षित रखने और उन्हें रसद आपूर्ति जारी रखने की असल चुनौती है।