वाशिंगटन, 23 जुलाई (हि.स.)। अफग़ानिस्तान और कश्मीर मामलों में डोनाल्ड ट्रम्प और इमरान खान के बीच सोमवार दोपहर व्हाइट हाउस में हुई बातचीत पर अमेरिकी मीडिया ने तीखे कटाक्ष किए हैं, जो उनकी ‘कथनी और करनी’ को एक बार फिर संदेह के घेरे में डाल दिया है। अमेरिकी मीडिया ने अपने ही राष्ट्रपति के आचरण, व्यवहार और बातचीत के तौर तरीक़े पर कड़ी टिप्पणियां की हैं।
भारत सरकार सात दशकों से कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बताती रही है। इस मामले में भारत की दशकों से स्पष्ट नीति रही है कि ऐसे सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ बातचीत द्विपक्षीय आधार पर होनी चाहिए, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर तब तक शांतिपूर्ण हल निकाल पाना संभव नहीं है, जब तक उग्रवादी संगठन तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की चुनी हुई सरकार से सीधे बातचीत करने को तैयार नहीं हो जाता।
रिपब्लिकन समर्थित समाचार पत्र ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने सुर्खियों में लिखा है, ‘कश्मीर मामले में ट्रम्प की मध्यस्थता का प्रस्ताव, भारत ने की आपत्ति।’ इमरान ने अफ़ग़ानिस्तान मामले में ट्रम्प को झुकते देख कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया और दुनिया में सर्वशक्तिशाली देश के एक महान नेता के रूप में ट्रम्प को मध्यस्थता स्वीकार करने का अक्षरश: न्योता दे डाला। इस पर ट्रम्प ने भी अपनी पीठ थपथपाते हुए यह जोड़ दिया कि ”भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो सप्ताह पूर्व जब उनसे मिले थे, तब उन्होंने भी उनसे मध्यस्थता करने का प्रस्ताव किया था लेकिन ट्रम्प के इस कथन के थोड़ी ही देर बाद विदेश मंत्रालय में प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्रम्प के इस कथन को बेबुनियाद बता दिया। यही नहीं, अख़बार ने भारतीय प्रवक्ता के कथन का पूरा विवरण देते हुए यह भी लिखा है कि कश्मीर मामले में भारत की दशकों से यह स्पष्ट नीति रही है कि ऐसे सभी महत्वपूर्ण मामलों में भारत द्विपक्षीय बातचीत पर ज़ोर देते आया है।
‘वाशिंगटन टाइम्स’ ने लिखा है कि दोनों नेताओं की बातचीत में अफ़ग़ानिस्तान मामले में ट्रम्प इमरान के सम्मुख दंडवत दिखाई पड़े। टाइम्स ने लिखा, ‘ओवल में बातचीत के दौरान इमरान के सम्मुख ट्रम्प ऐसे झुक गए कि वह अफ़ग़ानिस्तान शांति बहाली में समाधान ढूंढने के लिए तालिबान को युद्ध बंदी करने में मदद करेंगे और तालिबान पर अपेक्षित दबाव बनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान सरकार से बातचीत करने को तैयार करने में मददगार साबित होंगे। अमेरिका पिछले 18 वर्षों से लगातार चलते आ रहे युद्ध से निजात पाना चाहता है ताकि वह अपने 15 हज़ार अमेरिकी सैनिकों को अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले स्वदेश बुला सकें। ट्रम्प पहले भी यह कई बार कह चुके हैं कि वह सैन्य आक्रमण से एक सप्ताह में अफगानिस्तान का नक़्शे से नाम हटा सकते हैं लेकिन वह ऐसा नहीं करना चाहते क्योंकि इसमें लाखों लोग हताहत होंगे। यह बात उन्होंने एक बार फिर इमरान के सामने दोहराई।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने दो टूक शब्दों में लिखा कि यह वही ट्रम्प हैं जिन्होंने एक साल पहले पाकिस्तान के हुकुमनामों के बारे में ट्वीट कर उन्हें ‘झूठ और धोखेबाजी से लबरेज़’ बताया था। जबकि उन्हीं ट्रम्प ने सोमवार को व्हाइट हाउस में इमरान खान का स्वागत कर आशा जताई कि वह अफ़ग़ानिस्तान मामले में समाधान ढूंढने में अमेरिका की मदद करेंगे ताकि अमेरिकी सैनिक स्वदेश लौट सकेंगे। प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित इस ख़बर में ट्रम्प के कथन पर अमेरिका-पाकिस्तान कूटनीति में विशेषज्ञ आरिफ़ रफ़ीक के हवाले से कहा गया है कि वाशिंगटन अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया को लेकर इस्लामाबाद पर कुछ ज़्यादा ही उत्साहित है लेकिन उसे निराशा हाथ लगना स्वाभाविक है। वाशिंगटन के लिए इस्लामाबाद से दीर्घावधि तक सम्बंध बना कर रखना नामुमकिन होगा।