नई दिल्ली, 22 मार्च (हि.स.)। भारतीय नौसेना की वायु इकाई आईएनएएस 310 स्क्वाड्रन ने रविवार को अपनी हीरक जयंती मनाई। इस स्क्वाड्रन ने पिछले 60 वर्षों में भारत को नियमित और अनियमित युद्धों में रास्ता दिखाया है। गोवा स्थित भारतीय नौसेना की समुद्री टोही इस स्क्वाड्रन ने 21 मार्च, 1961 को फ्रांस के हाइरेस में कमीशन प्राप्त किया था। आईएनएएस 310 स्क्वाड्रन ने 1961 के बाद से कई ऑपरेशनों में देश के लिए अभूतपूर्व सेवा प्रदान की है और अभी भी समुद्र तट पर दैनिक निगरानी अभियानों को अंजाम दे रही है। इस स्क्वाड्रन ने 1991 तक एलिज विमान का संचालन किया और बाद में तट आधारित डोर्नियर-228 विमान को चुन लिया।
पिछले एक वर्ष में कोविड-19 महामारी के बीच इसी स्क्वाड्रन के एयरक्राफ्ट ने समूचे देश में उड़ान भर कर महत्वपूर्ण चिकित्सा सामग्री और कोविड परीक्षण किट की आपूर्ति की। चिकित्सा टीमों और चिकित्सा संबंधी साजो-सामान लाने के कार्यों में लगभग 1000 उड़ानें भरी हैं। फ्रांसीसी निर्मित एलिज एंटी-सबमरीन वारफेयर (एएसडब्ल्यू) विमान 1991 तक तीन दशकों तक इस स्क्वाड्रन की सेवा करते थे। 1962 में चीन से और पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 में युद्धों के दौरान इस विमान का इस्तेमाल किया गया था। 1987 में मालदीव में तख्तापलट के दौरान एलिज विमान ने तख्तापलट करने वाले नेताओं और बंधकों के साथ भाग रहे एक व्यापारी जहाज पर हमला किया।
कोविड महामारी के कारण हीरक जयंती समारोह सादे तरह से मनाया गया। डाबोलिम, गोवा स्थित आईएनएस हंसा नौसेना एयर स्टेशन इस मौके पर डॉर्नियर विमान के फ्लाईपास्ट का गवाह बना जिसमें समुद्री कमांडो राष्ट्रीय ध्वज के साथ कूदे। इसके बाद ‘बड़ा खाना’ का आयोजन हुआ जिसमें सशस्त्र बल के अधिकारी और चालक दल ने एक साथ भोजन करके 60 साल पहले के उन पलों याद किया जब कोबराओं की परवरिश फ्रांस में हुई थी। 310 स्क्वाड्रन भारतीय नौसेना के पहले विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर शुरू की गई दो स्क्वाड्रन में से एक थी। 310 स्क्वाड्रन के एलिज ने 1987 और 1991 के बीच ऑपरेशन पवन में भाग लिया जहां उन्हें एलटीटीई के जहाजों को ट्रैक करने और नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
इस स्क्वाड्रन के एक अकेले एलिज विमान ने 1988 में अपहृत जहाज एमवी प्रोग्रेस लाइट में भागने वाले विद्रोहियों के खिलाफ रॉकेट हमला किया। 1991 में एलिज विमान को रिटायर कर दिया गया था। इसके बाद समुद्री आधारित डोर्नियर-228 को समुद्री टोही और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक विमान के रूप में प्रतिस्थापित किया गया। यह डोर्नियर विमान निगरानी और टोही के लिए दिन-रात खुफिया मिशनों को चला सकता है। इसी कारण डोर्नियर विमान न केवल नौसेना बल्कि सेना और वायु सेना की आंख और कान में बदल गए। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान और 2001 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान नौसेना के डोर्नियर्स ने ओवरलैंड मिशन के लिए उड़ान भरी, जहां सीमा पार दुश्मन के रडार स्थलों की पहचान करने के लिए उनके संवेदी सुइट का उपयोग किया गया था।