सप्ताह की सुर्खीःदूर हुई युद्ध की आशंका, भारत में कोरोना कमजोर

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भारत के साथ पूरी दुनिया के लिए यह सप्ताह पहले के मुकाबले थोड़ा सुखद रहा। इस दौरान भारत में विश्वव्यापी महामारी कोरोना से कुछ राहत मिली है, तो इजराइल -हमास युद्ध विराम को एक बड़े संघर्ष से निजात के तौर पर देखा जा सकता है।

जहां तक भारत में कोरोना की दूसरी लहर की बात है, सरकार और देश के आम लोगों के संकल्प ने इस पर जीत की तरफ कदम बढ़ाना शुरू किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए, तो राज्य सरकारों और सबसे बड़ी बात यह कि आम लोगों ने इस पर गंभीरता दिखायी। देश की आम जनता ने पिछली बार की तरह बिना किसी हड़बड़ी के इसबार पहले से ही सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी। केंद्र के दिशा-निर्देशों के बीच विभिन्न प्रदेशों में लॉकडाउन का असर कोरोना मरीजों में लगातार कमी के तौर पर देखा जा सकता है।

सप्ताह के प्रारम्भ में मरीजों की संख्या जहां चार लाख के पार पहुंच गयी थी, वहीं शुक्रवार 21 मई को यह 2 लाख, 59 हजार तक सीमित रह गयी। अगले दिन शनिवार 22 मई को इस संख्या में और दो हजार की कमी आयी। चिंता की बात जरूर है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम नहीं दिख रही। हालांकि इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कोरोना जांच और मृतकों के बारे में जारी प्रमाण एकत्र करने में समय के अंतर के कारण होता है। मरने वालों की संख्या प्रमाणित होते तीन से चार दिन लग जाते हैं। अब जो आंकड़े आएंगे, जल्द ही मृतकों की संख्या में भी कमी दिखाई पड़ेगी।

सर्वाधिक संतोष की बात यह है कि सप्ताह के शुरू में जहां कोरोना से इलाज के लिए  रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (​​डीआरडीओ) ने दवा खोज निकाली, तो सप्ताह के मध्य में ऐसी किट बनाने में सफलता अर्जित की है, जिससे लोग स्वयं कोरोना की जांच कर सकेंगे। यह प्रक्रिया मात्र 30 से 45 मिनट की है। निश्चित ही यह किट जहां मरीजों की जांच का रास्ता आसान करेगी, वहीं नयी दवा से इलाज सहज हो जायेगा।

फिलहाल टला युद्ध का खतराः कोरोना संकट के बीच इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को भी लंबे समय तक याद किया जायेगा। संघर्ष के 11 दिनों के बाद इसी सप्ताह दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम ने दुनिया को थोड़ी राहत दी। कोरोना भले विश्वव्यापी हो, अधिक बढ़ने पर यह युद्ध भी प्रत्यक्ष-परोक्ष कई तरह से दुनिया के देशों पर असर डाल सकता था। ऐसे प्रभावों में तेल की आपूर्ति और उससे जुड़ी महंगाई से सभी वाकिफ हैं। बहरहाल, ताजा संघर्ष 2014-2026 के गाजा युद्ध के बाद से सबसे भीषण माना जा रहा था। गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई। हालांकि युद्ध विराम के बाद सबकुछ सामान्य हो जायेगा, इसकी उम्मीद बेमानी है। संघर्ष विराम, अमेरिका, मिस्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों के दबाव में हुआ। इसके बाद भी बहुत से प्रश्न हैं, जिनका समाधान खोजना होगा। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह कि यरुशलम की उस विवादित भूमि का क्या होगा, जो मुस्लिम-यहूदी और ईसाई, तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है।

 


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