नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला : दो से अधिक बच्चे वाले भी लड़ सकते हैं चुनाव

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यह फैसला 25 जुलाई 2019 से होगा लागू, सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की थी याचिका



नैनीताल, 19 सितम्बर (हि.स.)। उत्तराखंड पंचायत चुनाव में दो से अधिक बच्चों वाले भी चुनाव लड़ सकते हैं। इस मामले में दायर याचिका पर गुरुवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा कि दो से अधिक बच्चे वाले चुनाव लड़ सकेंगे और यह फैसला 25 जुलाई 2019 से लागू होगा। इस तारीख के बाद दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माने जाएंगे। इस प्रकरण में पूर्व में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद तीन सितंबर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में पंचायत जनाधिकार मंच के संयोजक जोत सिंह बिष्ट ने आदि ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। जोत सिंह बिष्ट ने कहा आज हाई कोर्ट नैनीताल ने पंचायत जनाधिकार मंच की याचिका पर उत्तराखण्ड की जनता के पक्ष में एक अहम निर्णय दिया है। उत्तराखण्ड की सरकार के बनाये गए कानून को न्यायालय ने दुरुस्त करते हुए 26 जुलाई 2019 से पहले जिनके दो से अधिक बच्चे हैं अब वो लोग भी पंचायत चुनाव लड़ सकते हैं।
जोत सिंह बिष्ट ने कहा 19 सितंबर का दिन विश्व में घटित दो महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से अपने आप में खास दिन है। आज के दिन 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने जो ऐतिहासिक भाषण दिया, उसके लिए यह दिन हमेशा याद किया जाता है। आज ही के दिन 1893 में न्यूजीलैंड में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया था। ऐसे ही महत्वपूर्ण दिन में पंचायत अधिनियम संशोधन विधेयक 2019 के खिलाफ जो याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई थी उस याचिका का फैसला आया है।
बिष्ट ने कहा 26 जून 2019 को उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इस देवभूमि में एक ऐसा काला कानून बनाया जिसकी वजह से ग्राम सरकार, मध्यवर्ती सरकार और जिला सरकार के लिए चुने जाने वाले 66000 नहीं बल्कि इस चुनाव में शिरकत करने वाले और शिरकत करने की इच्छा रखने वाले कई लाख लोगों को प्रभावित किया। उनके मूलभूत अधिकार से वंचित किया। एक ऐसा काला कानून बनाया गया जिसमें न कोई समझ थी न परंपरा का निर्वहन किया गया। न कानून का और न व्यवहारिक पक्ष का पालन किया गया। सरकार ने अपने अहम की तुष्टि के लिए इस कानून के माध्यम से राज्य की ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले दो से अधिक संतान के माता पिता को चुनाव लड़ने से वंचित करने का फैसला लिया था।

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