कानपुर, 12 नवम्बर (हि.स.)। नये शोधों और नई तकनीकों से विश्व में अपना लोहा मनवा रही कानपुर आईआईटी ने अब राष्ट्रीय नदी गंगा पर कार्य शुरु कर दिया है। इसके तहत आईआईटी ने निरासारा स्वयंशासित वेधशाला को विकसित किया है, जिससे गंगा नदी के स्वास्थ्य की जांच की जा सके। यह वेधशाला प्रदूषित तत्वों की बराबर जानकारी देगी और गंगा के स्वास्थ्य के लिए आगाह भी करेगी। यह प्रणाली नदी के विभिन्न स्वास्थ्य मानकों को मापने के लिए कम लागत वाली और लघुकृत यथावत जल गुणवत्ता सेंसर और एक ऑटो-सैंपलर से सुसज्जित है। यह तंत्र गंगा नदी के समग्र स्वास्थ्य की सफाई और कायाकल्प करने में मदद करेगा
वर्तमान दौर में दुनिया एक जलवायु आपातकाल को देख रही है और भारत इस पर बराबर मंथन कर रहा है। यहां पर एक बड़ी नदी प्रणाली है जिसके कारण भारत में असमय बाढ़, झाग से भरे जहरीले जल निकाय और जल स्तर में अप्रत्याशित वृद्धि, प्रदूषित नदियां और इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग और मानव अभ्यास से प्रभावित हैं। नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के अपने निरंतर प्रयासों में आईआईटी कानपुर ने गंगा नदी के यथावत मॉनिटरिंग, रियल टाइम डेटा ट्रांसमिशन और वेब आधारित विज़ुअलाइजेशन के लिए निरासारा स्वयंशासित वेध शाला (एनएसवीएस) नामक एक जलीय स्वायत्त वेधशाला विकसित की है।
इस एनएसवीएस प्रणाली का उद्घाटन गंगा नदी में बिठूर के लक्ष्मण घाट पर आईआईटी कानपुर के अनुसंधान और विकास के डीन प्रो. ए.आर. हरीश द्वारा किया गया था। प्रो. बिशाख भट्टाचार्य के नेतृत्व में प्रधान अन्वेषक के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के पृथ्वी वैज्ञानिकों, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरों की एक टीम द्वारा इस परियोजना को कार्यान्वित किया गया है।
निदेशक का कहना
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि, गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है बल्कि हमारे लिए एक सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए इसे किसी भी नुकसान से बचाने की हमारी जिम्मेदारी है। मैं एनएसवीएस प्रणाली के उद्घाटन पर प्रो. बिशाख भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली टीम को बधाई देता हूं, जो गंगा नदी के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए वास्तविक समय में, यथावत निगरानी सुनिश्चित करेगी। अपनी वर्तमान क्षमता में, एनएसवीएस प्रणाली पानी की पीएच, चालकता और घुलित ऑक्सीजन क्षमता जैसे तीन महत्वपूर्ण मापदंडों को समझ सकती है। इसका उपयोग कुल घुलित ठोस (टीडीएस), विशिष्ट गुरुत्व और पानी में धातु आयनों की उपस्थिति का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है। सिस्टम स्वायत्त रूप से प्रत्येक पंद्रह मिनट में डेटा एकत्र करता है और संस्थान को वायरलेस नेटवर्क के माध्यम से इसकी रिपोर्ट करता है। आत्मनिर्भरता के लिए, इसका प्लेटफोर्म सौर कोशिकाओं से युक्त ऊर्जा संचयन प्रणालियों और एक अद्वितीय भंवर प्रेरित कंपन (वीआईवी) प्रणाली से लैस है जो नदी के प्रवाह से ऊर्जा बना सकता है।
बताया कि प्रणाली में एक खुला मंच वास्तुकला है जिसमें कि अन्य संस्थान द्वारा विकसित सेंसर को एक सहयोगी मोड में आईआईटी कानपुर प्रणाली के साथ एकीकृत कर सकते हैं। यह विकास इस विश्वास के अनुरूप है कि भारतीय उपमहाद्वीप में गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की सफाई और स्वास्थ्य का कायाकल्प केंद्र बिंदु है, जो अक्सर कुछ प्रमुख चुनौतियों से जूझता है, जिसमें अपर्याप्त कुशल जनशक्ति, खराब समय-श्रृंखला समाधान, एकीकृत डेटा फ्यूजन और मांग पर पानी के नमूने की क्षमता शामिल हैं। इस परियोजना को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और आईयूएसएसटीएफ – इंडो-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम द्वारा संयुक्त रूप से प्रायोजित किया गया है।