एइएस से निपटने के लिए केंद्र देगा हर संभव सहायता : डा.हर्षवर्धन

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केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने मुजफ्फरपुर जाकर चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों को देखा



पटना 16 जून ( हि.स.) । केंद्रीय स्‍वास्थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बिहार में महामारी का रूप ले चुके एइएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) से निपटने के लिए केंद्र वित्तीय और तकनीकी सहायता देगा। उन्होंने इसके इलाज की व्यवस्था को और बेहतर करने तथा इसकी रोकथाम के लिए कई दिशा निर्देश भी दिए। उन्होंने रविवार को मुजफ्फरपुर के  श्री कृष्णा जुबली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) जाकर चमकी बुखार से पीड़ित मरीजों को देखा और वहां की व्यवस्था को अपर्याप्त बताया।
उन्होंने  बच्चों के लिए अलग से सौ बेड का अस्पताल बनाने और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को तत्काल ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिए विशषज्ञों को तीन महीन के अंदर व्यवस्था करने को कहा।
विगत दस दिनों से बच्चों की एइएस से लगातार हो रही मौत के बाद रविवार को केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे तथा बिहार के स्वस्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय के साथ मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच का रविवार को निरीक्षण करने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और  पेशे से चिकित्सक डॉ. हर्षवर्धन ने संवाददाता सम्मेलन में राज्य सरकार को मुजफ्फरपुर में उच्च गुणवत्ता वाले ‘अंतःविषय आधुनिक शोध संस्थान ‘बनाने , गहन चिकित्सा केंद्र की सुविधा से लैस सौ शैया की क्षमता वाले बच्चों के लिए एसकेएमसीएच में अलग से अस्पताल बनाने, पांच स्थानों पर वाइरालजी लैब स्थापित करने, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को तत्काल ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिए विशषज्ञों की व्यवस्था करने, मच्छरों के प्रकोप को रोकने के लिए नियमित छिड़काव कराने , महामारियों पर शोध की व्यवस्था करने तथा एस के एम सी एच में सुपर एस्पेसिअलिटी अस्पताल को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया ।
डॉ. हर्षवर्धन ने इन दिशा-निर्देशों को समय सीमा के अंदर पूरा करने का निर्देश देते हुए राज्य सरकार को इस कार्य के लिए हर सम्भव केन्द्रीय सहायता देने का आश्वासन दिया और कहा कि इन सभी कार्यों को पूरा करने में केंद्र वित्तीय तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा ।उच्च गुणवत्ता वाले अंतःविषय के आधुनिक शोध संस्थान को एक वर्ष के अंदर पूरा करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस तरह की परिस्थिति बार- बार आ रही है जिससे बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो रही है । बीमार बच्चों की चिकित्सा का जायजा लेने के बाद उन्होंने कहा कि कुछ बच्चों के खून में चीनी की मात्रा कम पाई गई , कुछ में सोडियम की कमी देखी गई और कुछ के शरीर में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलित था।
उन्होंने कहा कि यह बीमारी वायरल इन्फेक्शन,लीची में मिलनेवाले पदार्थ के विषैलेपन , अन्य मेटाबोलिक कारण , गर्मी या ऊमस या किसी अन्य कारण से फ़ैल रही है इसलिए इस पर शोध आवश्यक है। जिस तरह से यह बीमारी इस मौसम में बिहार में फैलती है उसे देखते हुए मुजफ्फरपुर के अलावा किसी एक अन्य स्थान पर भी इस तरह का शोध संस्थान अगले एक वर्ष में स्थापित करने का उन्होंने निर्देश दिया । स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध कर रहे देश के अन्य संस्थान तथा डब्लू एच ओ जैसे अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थानों से सम्पर्क में रहते हुए इन शोध संस्थानों में गहराई से सतत शोध किया जाएगा ताकि इस तरह की बीमारी के बारे में पता लगा कर उसका इलाज और उसकी रोक थाम का उपाय निकाला जा सके ।
उन्होंने कहा कि इस बीमारी के कुछ मामलों में जापानी एन्सेफलाईटिस से मिलते-जुलते लक्षण देखे गए किन्तु यह बीमारी जापानी एन्सेफलाइटिस से अलग है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि जापानी एन्सेफलाइटिस और एइएस से बचाव के लिए टीकाकरण भी किया गया है । स्वास्थ्य मंत्री ने एसकेएमसीएच में विषम परिस्थितियों और अत्यधिक दबाव के बावजूद चिकित्सकों के काम की सराहना करते हुए कहा कि जो बच्चे समय पर अस्पताल पहुंच गए उनके बचने की सम्भावना काफी बढ़ गई किन्तु किसी भी कारणवश अस्पताल पहुंचने में देरी होने पर परेशानी बढ़ गई। इसे देखते हुए उन्होंने अस्पताल पहुंचने से पहले प्राथमिक स्वास्थ्य कन्द्रों पर ऐसे विशेषज्ञों की व्यवस्था करने को कहा जो पूरी प्रतिबद्धता के साथ इस बीमारी के लक्षण के साथ पहुंचे बच्चों को तत्काल  ग्लूकोमीटर से उनके खून में चीनी की मात्रा जांच कर उन्हें तुरंत ग्लूकोज़ चढा सकें। इस तरह की व्यवस्था से बच्चों के बचने की सम्भावना अधिक हो जायेगी । इस बीमारी के अन्य संभावित कारणों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अत्यधिक गरमी और आर्द्रता की वजह से भी इस तरह की बीमारी का होना सम्भव है क्योंकि यह बीमारी इसी मौसम में फ़ैल रही है । बीमारी के फैलाव को देखते हुए उन्होंने कहा कि यह बीमारी वायरल इन्फेक्शन की वजह से भी हो सकती है । इसके लिए उन्होंने एक साल के अन्दर पूरे राज्य में वायरोलॉजी के पांच लैब स्थापित करने को कहा । मुजफ्फरपुर में आधारभूत संरचना के साथ उपलब्ध वायरोलोजी लैब में यथाशीघ्र विशेषज्ञ की व्यवस्था करने का उन्होंने निर्देश दिया । मच्छरों की वजह से भी इस बीमारी के फैलाव की सम्भावना जताते हुए उन्होंने सभी इलाके में तुरत छिड़काव कराने को कहा । डा हर्षवर्धन ने पटना के आईएमआरआई की तरह आसपास के जिलों में भी महामारियों पर शोध के लिए स्टडी सेंटर बनाने को कहा ।
मुजफ्फरपुर के एस के एम् सी एच में बन रहे सुपर एस्पेसिअलिटी ब्लाक को छह महीने के अंदर पूरा करने का निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि इससे इस तरह की बीमारी के इलाज में दूसरे विभाग का भी सहयोग मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि यदि यह बीमारी गर्मी और आर्द्रता की वजह से फ़ैल रही हो तो भारत सरकार के मौसम विभाग से जानकारी पहले ही प्राप्त कर इसके बचाव पर काम किया जा सकता है । बीमार अवस्था में बच्चों को यथाशीघ्र अस्पताल पहुंचाने के लिए बेह्तर सुविधा से लैस पर्याप्त संख्या में एम्बुलेंस की व्यवस्था करने का निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इस बीमारी के इलाज के लिए बेहतर प्रबंध किया है। उन्होंने कहा कि यह बीमारी किस रूप में फैलेगी, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती किन्तु शोध और सटीक इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है ।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि अश्विनी  चौबे और मंगल पाण्डेय के साथ -साथ वह स्वयं भी पूरी स्थित की समय- समय पर निगरानी करेंगे । इस बीच केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री की मौजूदगी में भी एसकेएमसीएच में दो बच्चों की रविवार को मौत हो गई जिसके साथ ही इस बीमारी से मरने वालों की संख्या बढ़ कर 108 हो गई ।
उल्लेखनीय है कि गरमी बढ़ने के साथ ही इस बीमारी से मुज़फ्फरपुर में बच्चों की अस्पताल में ही मौत का सिलसिला शुरू हो गया और अब इस बीमरी ने वैशाली , समस्तीपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण समेत अन्य इलाकों में भी तेज़ी से पाँव पसारना शुरू कर दिया है । इस बीच बीमार बच्‍चों के परिजनों ने इलाज की व्‍यवस्‍था को ठीक नहीं बताया और कहा कि अस्‍पताल में डॉक्‍टर मरीजों पर पूरा ध्‍यान नहीं दे रहे। मुजफ्फरपुर के रहनेवाले बिहार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने भी माना कि इलाज की व्‍यवस्‍था में कमी है। अपने बयान में उन्‍होंने कहा कि जैसे आपातकालीन हालात हैं, उसके अनुसार बेड व आइसीयू की व्‍यवस्‍था नहीं हो सकी है जबकि बिहार के स्वास्थ्य मंत्री इलाज की व्‍यवस्‍था को दुरुस्त बता रहे हैं । इस बीमारी से हो रही मौत पर चिंता और दुःख प्रकट करते हुए मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने मरने वालों के परिजनों को चार-चार लाख की सहायता देने की घोषणा करते हुए इलाज के लिए पहले ही पर्याप्त व्‍यवस्‍था करने का निर्देश दे रखा है । इस बीमारी से विगत 10 सालों में लगभग 450 बच्चों की मौत हो चुकी है । सबसे अधिक 2012 में 120 बच्चों की मौत हुई थी । 2010 में 24 बच्चों ने इस बीमारी से दम तोड़ा था , 2011 में 45, 2012 में 120, 2013 में 39, 2014 में 86, 2015 में 11, 2016 और 2017 में चार- चार तथा 2018 में 11 बच्चों की मौत हुई थी । इस वर्ष अभी तक या आंकडा 108 तक पहुंच गया है ।

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