नई दिल्ली, 05 जुलाई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री हरेन पंड्या की हत्या के मामले में 12 आरोपितों को बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने हत्या का दोषी मानकर उम्रकैद देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने हरेन पंड्या हत्याकांड की दोबारा जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन पर 50 हजार का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने पिछले 12 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने याचिका में कहा था कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में गवाह आजम खान के बयानों से इस केस में नया खुलासा हुआ है। आजम खान ने 3 नवंबर 2018 को ट्रायल कोर्ट में दिए बयान में कहा था कि हरेन पंड्या की हत्या एक कांट्रैक्ट किलिंग का हिस्सा थी। हरेन पंड्या की हत्या की सुपारी डीजी वंजारा ने दी थी। याचिका में कहा गया था कि आजम खान ने ये भी खुलासा किया था कि सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति ने उसी सुपारी के तहत हरेन पंड्या की हत्या की थी।
याचिका में पत्रकार राणा अय्यूब लिखित पुस्तक गुजरात फाईल्स में बातचीत के रिकॉर्ड का हवाला दिया गया था। उस बातचीत में हरेन पंड्या केस को देख रहे सीबीआई अधिकारी वाईए शेख ने राणा अय्यूब को बताया था कि सीबीआई ने इस मामले की अपने से जांच नहीं की थी। सीबीआई ने वही किया जो गुजरात पुलिस ने कहा। वाईए शेख ने खुलासा किया था कि हरेन पंड्या की मौत एक राजनीतिक साजिश की वजह से हुई जिसमें कई राजनेता और आईपीएस अफसर शामिल थे।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने जून 2007 में 12 लोगों को दोषी करार दिया था। हाईकोर्ट ने 2011 में सभी को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि जांच गलत दिशा में की गई और इसके लिए जांच अधिकारी जिम्मेदार हैं। याचिका में कहा गया है कि नए खुलासे से हाईकोर्ट की आशंका सही साबित होती है।