अमेरिका से एच 1 बी वीजाधारक आईटी कर्मियों का ‘ रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ शुरू

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अगले एक- दो साल में क़रीब दो से ढाई लाख भारतीय आईटी कर्मी स्वदेश लौट सकते हैं अथवा उन्हें अमेरिका छोड़कर पड़ोसी देश कनाडा, यूरोप अथवा सिंगापुर में रोजगार के लिए जाने को विवश होना पड़ सकता है।



लॉस एंजेल्स, 14 जून (हि.स.)। ‘’बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’’ की कड़ी रीति नीति के चलते अमेरिका में एच-1बी (अस्थाई वीज़ा) वीजाधारक कर्मियों का ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ शुरू हो गया है। इनके सम्मुख प्रशासन आए दिन नई-नई अड़चनें खड़ी कर रहा है और ग्रीन कार्ड मिलने में कठिनाइयों की वजह से 30 से 35 प्रतिशत आईटी कर्मियों का स्वदेश लौटना करीब-करीब तय है।

अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले एक- दो साल में क़रीब दो से ढाई लाख भारतीय आईटी कर्मी स्वदेश लौट सकते हैं अथवा उन्हें अमेरिका छोड़कर पड़ोसी देश कनाडा, यूरोप अथवा सिंगापुर में रोजगार के लिए जाने को विवश होना पड़ सकता है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सत्तारूढ़ होने और अमेरिकी नागरिकों को रोजगार में प्राथमिकता दिए जाने की नीति के कारण यूएस सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज, (यूएससीआईएस) ने कड़ा रुख अपना रखा है।

इस समय एच-1बी वीजाधारी करीब आठ लाख भारतीय आईटी कर्मी सन 2008 से स्थायी निवासी के रूप में ग्रीन कार्ड के लिए कतार में लगे हुए हैं। यूएससीआईएस ने एच-1बी वीजाधारकों के लिए नई-नई शर्तों में डेटा आपरेटर की जगह कुशल कर्मियों का राग अलाप रहे हैं। इतना ही नहीं आईटी कर्मियों को अमेरिका की बड़ी कम्पनियों के लिए आउट सोर्स के रूप में तीसरी पार्टी के साथ काम करने से पहले उन्हें अपने कामकाज के बारे में विस्तृत जानकारी देने की शर्तें रखी गई हैं। इसके अलावा अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त जे-1 स्टूडेंट को एच-1बी वीजाधारक के रूप में प्राथमिकता दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। अब वीजा नवीकरण के लिए भी कामकाज से संबंधित ढेरों शर्तें लगा दी गई हैं। नतीजा है कि एक तिहाई वीजा धारकों को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

यही नहीं, अब नियोक्ताओं को आईटी कर्मी रखते समय एक प्रपत्र पर यह जानकारी देना अनिवार्य है कि उक्त कर्मी की योग्यता क्या है, उससे क्या काम लिया जा रहा है और वह किस कम्पनी के लिए कहां क्या काम कर रहा है?

मीडिया में कहा जा रहा कि इमीग्रेशन के मुद्दे पर ट्रम्प जो काम कांग्रेस से नहीं करा सके, वह काम यूएसआईएस से कराना शुरू कर दिया है। इस संबंध में यूएससीआईएस की ओर से एच-1बी वीजाधारक आईटी कर्मियों के कामकाज के बारे में विस्तृत जानकारी मांगना और सामान्य स्तर के आईटी कर्मियों के वीजा के नवीकरण में रोड़े लगाना आम बात हो गई है। फिर पिछले कुछ सालों में कमर तोड़ महंगाई ने और नई समस्याएं खड़ी कर दी हैं।

सिलिकन वैली में आईटी कर्मियों की मांग के बावजूद कांग्रेस में इमीग्रेशन पर 12 से अधिक विधेयक विचारार्थ लम्बित हैं। इन विधेयकों को पारित कराए जाने में संख्या बल आड़े आ रहा है। कांग्रेस के निचले सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है, तो ऊपरी सदन सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी का। इस कार्य में डेमोक्रेट ने एशियाई आईटी कर्मियों को अपना वोट बैंक मान कर साथ दिया है। इन आईटी कर्मियों में भारत के आठ लाख आई टी कर्मियों के ग्रीन कार्ड संबंधी आवेदन अधर में लटके हुए हैं, तो एच 1- बी वीज़ा धारकों पर निर्भर एच चार वीजाधारक  स्पाउज के रोज़गार, श्रुंखलाबद्ध आव्रजन पर प्रतिबंध के कारण प्रवासी भारतीयों के लिए संयुक्त परिवार के बिखरने के भय से आईटी कर्मियों का भरोसा टूटने लगा है।

इसके अलावा उन भारतीय बच्चों के भविष्य पर भी एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है, जो अपने माता-पिता के साथ माता अथवा पिता के वीजा पर अमेरिका आए थे। काफी प्रयास के बावजूद 21 साल की आयु के बाद  इन बच्चों के लिए भारत लौटने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। ये बच्चे अमेरिका में रहकर  कॉलेज में शिक्षा लेते हैं, तो उनके ‘स्टेटस’ को लेकर संकट उत्पन्न हो रहा है। उन्हें छात्र के रूप में जे 1वीजा पर चार गुना फीस देनी पड़ सकती है, जो अमेरिका में महंगाई के कारण दुष्कर है।

इस मुद्दे पर कांग्रेस में भारतीय मूल के डेमोक्रेटिक जन-प्रतिनिधियों– प्रोमिला जायपाल (वाशिंगटन), आर ओ खन्ना (कैलिफोर्निया) और राजा राममूर्ति (इलिनोईस) ने समय-समय पर कांग्रेस में आवाज उठाई है, लेकिन मामला जहां का तहां है।

राष्ट्रपति पद की डेमोक्रेटिक प्रत्याशी कमला हैरिस यह कहती रही हैं कि ट्रम्प प्रशासन का रवैया भारत की संयुक्त परिवार की मूल भावनाओं के विरुद्ध है। यही नहीं, सत्ताधारी रिपब्लिकन पार्टी के सिनेटर ओरिन हैच (ऊटा) ने तो एच-1बी वीजा धारकों पर निर्भर स्पाउज के लिए एच 4वीजा के आधार पर रोज़गार के अधिकार को निर्बाध जारी रखने तथा ग्रीन कार्ड के लिए प्रत्येक देश के लिए सात प्रतिशत कोटे की शर्त खत्म किए जाने पर जोर दिया है।

इन मुद्दों पर प्रवासी भारतीय ‘इमीग्रेशन वायस’ के बैनर तले कैपीटल हिल पर प्रदर्शन भी करते रहे हैं। ग्रीन  कार्ड के लिए प्रत्येक देश के लिए सात प्रतिशत के कोटे की बजाए आईटी कर्मी की कुशलता और शिक्षा को आधार बनाए जाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं। इस काम में ‘’इमीग्रेशन वायस’’ ने कांग्रेस में अच्छी पैठ रखने वाली एक फर्म ‘’ट्विनलोजिक स्ट्रेटिजिस’’ की भी मदद ली है, लेकिन परिणाम शून्य ही है।

 


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