बेगूसराय, 13 जुलाई (हि.स.)। बौद्ध काल में अंगुत्तराप के नाम से प्रसिद्ध मिथिला, मगध और अंग की संधि स्थली बेगूसराय ऐतिहासिक धरोहरों से भी परिपूर्ण है। इसका प्रमाण है हरसाई स्तूप, जयमंगला गढ़ एवं बराबर खुदाई में पाल कालीन तथा बौद्ध धर्म से संबंधित अवशेषों का मिलना। काबर क्षेत्र के आसपास मंझौल थुम्ब से नटियाहीडीह तक मौजूद 11 स्तूप यहां के ऐतिहासिक महत्व की दास्तां को प्रतिबिंबित कर रहे हैं।
स्थानीय स्तर पर ‘दैत्य का छिट्टा’ नाम से प्रसिद्ध स्तूपों में से हरसाई स्तूप मंझौल-गढ़पुरा नमक सत्याग्रह पथ में कावर नहर के करीब में उत्तर तरफ स्थित है। यहां चार स्तूपों का एक समूह है जो संपूर्ण बिहार में पाए जाने वाले अन्य स्तूपों से पूर्णतया अलग है। तीन स्तूप के मध्य इसका एक मुख्य स्तूप है जिसमें एक पश्चिम, दूसरा दक्षिण तथा तीसरा उत्तर दिशा में है। सब लगभग एक समान दूरी पर मिलता है। मुख्य स्तूप की ऊंचाई करीब 65 फीट एवं व्यास करीब 360 फीट है। पाल कालीन साहित्य में भगवान बुद्ध के अंगुत्तराप भ्रमण तथा बौद्धकाल में जयमंगला गढ़ के महाविहार होने का संकेत मिलने से इन स्तूपों को बौद्ध कालीन माना जा रहा है।
इतिहासकारों का मत है कि मिट्टी के टीले के रूप में मौजूद ये स्तूप भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के बने हैं। हरसाई स्तूप के आसपास के खेतों से भवनों के भग्नावशेष बराबर मिलते रहते हैं। बौद्ध कालीन इस स्मारक की महत्ता को दृष्टिगत करसिका संरक्षण एवं विकास किया जाय तो आनेवाली पीढ़ी को इस संस्कृति को समझने, बूझने का अवसर मिलता रह सकता है।
स्थानीय किवदंती के अनुसार पौराणिक काल में यहां दैत्यों का बसेरा था तथा उसी के मध्य रहती थी मां जयमंगला। एक बार दैत्यराज जयमंगला से शादी करने पर अड़ गया तो माता ने शर्त रखी थी काबर को पूरी रात में मिट्टी से भर दोगे तो मैं शादी कर लूंगी, अन्यथा तुम्हें यहां से बाहर भागना होगा। दैत्यों ने मिट्टी भरनी शुरू की तभी आधी रात को ही दैवीय बल से सुबह का उजाला फैल गया। इसके बाद जान के भय से भागते दैत्य माता जयमंगला का एक स्तन काट कर भाग निकले तथा इस क्रम में जहां-जहां मिट्टी भरने वाला छिट्टा फेंका गया, वह स्तूप के रूप में है एवं स्थानीय लोग इसे दैत्य का छिट्टा कहते हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता से यह विलुप्त हो रहा है, कई स्तूपों को काटकर जहां स्थानीय लोगों ने खेत बना लिया है, तो वहीं जो बचे हैं उसे भी धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है। ध्यानाकर्षण बाद अधिकारी आते हैं, संरक्षण की बातें की जाती हैं , परंतु उदासीनता एवं संवेदनहीनता के कारण इसका क्षय लगातार जारी है।
2012 में यहां उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी पर्यटन मंत्री समेत आला अधिकारियों के साथ आये थे। जल्द से जल्द इसे संरक्षित कर पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की बातें कही थीं। इसके बाद हरसाई स्तूप को संरक्षित एवं सुव्यवस्थित किए जाने के लिए गढ़पुरा सीओ द्वारा 2014 में इस स्थल के विकास के लिए जमीन की मापी कर तथा हरसाई स्तूप से लेकर मुख्य सड़क तक पथ के निर्माण के लिए प्रतिवेदन बनाकर भेजा गया था लेकिन आगे की कार्यवाही के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं मिलने से कार्यवाही नहीं हो पाई है और दिनों-दिन स्तूपों का आस्तित्व सिमटता जा रहा है।
पुरातत्वविद प्रो शैलेश कुमार सिन्हा एवं डॉ कुंदन कुमार का कहना है कि अपने भग्नावशेष में संपूर्ण इतिहास को समेटे इन स्कूलों का जिम्मेदारीपूर्वक संरक्षण वह विकास कर दिया जाए तो यह अंतरराज्यीय एवं अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र बन सकता है।