पटना, 03 जुलाई (हि.स.) । बिहार विधान परिषद में राज्यपाल कोटे से कुल एक दर्जन एमएलसी के मनोनयन को लेकर एनडीए के घटक दलों के बीच सहमति नहीं बन सकी है। लिहाजा शुक्रवार को भी लोग इंतजार करते रह गये और कैबिनेट से कोई प्रस्ताव पास नहीं हो सका। दो दिन पहले भाजपा नेता भूपेंद्र यादव की नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद चर्चा थी कि बात बन गयी है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
दरअसल, बिहार विधान परिषद की 12 सीटों पर राज्यपाल कोटे से सदस्यों का मनोनयन होना है। वर्ष 2014 में इस कोटे से मनोनीत विधान पार्षद डेढ़ महीने पहले ही रिटायर हो चुके हैं लेकिन नये सदस्यों का मनोनयन नहीं हो रहा है जबकि इसमें कोई बाधा नहीं है। दरअसल, नाम राज्यपाल कोटा होता है लेकिन एमएलसी के तौर पर किसका मनोनयन होगा, इसकी सिफारिश राज्य सरकार करती है। राज्य सरकार जिसका नाम भेजती है, राज्यपाल उसे मंजूरी दे देते हैं। बिहार और केंद्र में एक ही गठबंधन की सरकार है, लिहाजा कहीं कोई बाधा नहीं दिख रही थी।
जदयू-भाजपा के साथ- साथ लोजपा नेताओं को इंतजार था कि शुक्रवार को कैबिनेट में इस बाबत प्रस्ताव आयेगा। दरअसल यह एक औपचारिक प्रक्रिया होती है। राज्य मंत्रिमंडल यह प्रस्ताव पारित करती है कि विधान परिषद में मनोनयन के लिए मुख्यमंत्री को अधिकृत किया जाता है। इसके बाद मुख्यमंत्री 12 नामों की सूची राजभवन को भेज देते हैं। लेकिन नेता कयास लगाते रह गये और कैबिनेट में इसका कोई प्रस्ताव तक नहीं आया। सियासी जानकार बताते हैं कि बिहार में एनडीए के घटक दलों यानी जदयू, भाजपा और लोजपा के बीच राज्यपाल कोटे से मनोनयन पर सहमति नहीं बन पायी है। दो दिन पूर्व भाजपा नेता भूपेंद्र यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले थे। तब यह चर्चा थी कि दोनों के बीच एमएलसी के मनोनयन पर भी चर्चा हुई थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट में भी यह दावा किया जा रहा था कि बात भी बन गयी है लेकिन शुक्रवार के घटनाक्रम से यह दिख रहा है कि तीनों पार्टियों में सहमति नहीं बन पायी है।
लोजपा का फंसा है पेंच
सूत्र बताते हैं कि बात लोक जनशक्ति पार्टी को लेकर फंसी हुई है। नीतीश कुमार लोजपा के लिए सीट नहीं छोड़ना चाहते हैं। चर्चा यह भी है कि नीतीश कुमार ने भाजपा को कहा है कि वह अपने कोटे से लोक जनशक्ति पार्टी के लिए सीट छोड़ दे। लेकिन भाजपा तीनों पार्टियों का प्रतिनिधित्व चाहती है, लिहाजा पेंच फंसा हुआ है।