नई दिल्ली, 20 जुलाई (हि.स.)। महाकवि नीरज को गुजरे एक साल बीता तो स्मृति सभा नहीं हो रही है, स्मृति उत्सव मनाए जा रहे हैं। किसी दिवंगत को याद करने वाली स्मृति सभा में पहली बार देखने को मिला कि लोग उसके लिखे गीत के बोल पर झूमने लगे। 18 जुलाई को स्व. गोपाल दास नीरज के वार्षिक श्राद्ध का समापन ‘शोखियों में घोला जाए फूलों का शवाब, उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब ’ गीत बजाकर किया गया। हास्य के महान कवि सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि सौंदर्य के महान कवि को नाच-गाकर ही याद करना चाहिए।
इसके अगले ही दिन 19 जुलाई की देर शाम तक प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक बार फिर देशभर के चुनिंदा कवियों का जमावड़ा हुआ। वहां भी एक उत्सव के रूप में महाकवि नीरज को याद किया गया। नीरज फाउण्डेशन द्वारा आयोजित इस स्मृति उत्सव में केन्द्रीय पर्यटन व संस्कृति मंत्री प्रह्वलाद पटेल मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नीरज स्मृति न्यास के अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य आरके सिन्हा ने की।
एक तरफ पत्रकारों की टोली थी तो दूसरी तरफ कवियों-गीतकारों की महफिल जमी थी। हास्य-व्यंग्य और ओज की रचनाओं के माध्यम से सबने अपने प्रिय कवि नीरज को याद किया। कवि नीरज की पंक्तियां ही सबकी जुबान पर थीं- सदियां लग जाएंगी हमें भुलाने में। सुरेन्द्र जैन, अरुण जैमिनी, सुरेश उपाध्याय, डॉ. कीर्ति काले, वेदप्रकाश वेद, चिराग जैन, राधाकांत पांडे, सौरभ शर्मा, गुनवीर राणा आदि सुपरिचित कवियों ने एक कविता नीरज की सुनाई तो एक उन पर रचित खुद की। कवि नीरज के पुत्र शशांक प्रभाकर ने अपने पिता की ही एक रचना सुनाकर कहा कि वे अपने पीछे हमारे लिए एक बड़ा सा परिवार छोड़ गए हैं। काव्यांजलि का मंच संचालन ओज के चर्चित कवि गजेन्द्र सोलंकी ने किया।
गीतों के सम्राट हैं नीरज: आरके सिन्हा
दिल्ली में कवि नीरज की याद में आयोजित दोनों कार्यक्रमों में राज्यसभा सदस्य आरके सिन्हा पूरे समय उपस्थित रहे। इसका कारण यह है कि वे कवि नीरज अत्यंत निकट रहे हैं। इसको वे बार बार याद भी करते हैं। उनकी स्मृति में नीरज स्मृति न्यास का गठन कर नवोदित गीतकारों-रचनाकारों को अवसर प्रदान करने का काम कर रहे हैं। आरके सिन्हा कहते हैं, ‘गीतकार-रचनाकार भले पंचतत्व में विलीन हो जाएं परन्तु वे कभी मरते नहीं हैं। जब तक उनके बोल गूंजते रहेंगे, वे लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।’
आरके सिन्हा बताते हैं कि गोपाल दास नीरज ने हमेशा से ही नवोदित गीतकारों को उन्होंने प्रोत्साहित किया। वे अपने से पहले उनका एकल काव्य पाठ कराते थे। प्रोत्साहन के लिए उसे लिफाफा दिलवाते थे। उस दौर में जबकि कोई किसी को आगे नहीं आने देना चाहता, साहित्यकार-गीतकार नवोदित रचनाकारों की भ्रूण हत्या करते हों, तब नीरज ने हर मंच पर उन्हें जगह दी। इसलिए वे सबके दिलों में जगह बना गए।
सांसद सिन्हा ने कहा कि लोग कवि नीरज को केवल सौंदर्य का कवि बताते हैं जबकि वे जीवन का मर्म समझाने वाले आध्यात्म के तल को भी छूने वाले कवि थे। उनकी दो लाइनें उस गहरी समझ को सामने लाती हैं- ‘तन से भारी सांस है ये बात समझ लो खूब, मुर्दा जल पर तैरता जिंदा जाता डूब।’ आरके सिन्हा ने कहा कि गीतों के रचनाकार राजकुमार अनेक होंगे, परन्तु गीतों के सम्राट तो सिर्फ गोपाल दास नीरज ही रहेंगे।