भाषाओं से परे होती हैं फिल्में : अमिताभ बच्चन

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“जब हम एक अंधेरे हॉल के अंदर बैठते हैं तो हम कभी भी हमारे बगल में बैठे व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग नहीं पूछते। हम एक ही फिल्म का आनंद लेते हैं, एक ही चुटकुले पर हंसते हैं और एक ही भावना पर रोते हैं।”



पणजी (गोवा), 21 नवम्बर (हि.स.)। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने सिनेमा को एक सार्वभौमिक माध्यम बताते हुए कहा कि फिल्में भाषाओं की सीमा से परे हैं। उन्होंने कहा, “जब हम एक अंधेरे हॉल के अंदर बैठते हैं तो हम कभी भी हमारे बगल में बैठे व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग नहीं पूछते। हम एक ही फिल्म का आनंद लेते हैं, एक ही चुटकुले पर हंसते हैं और एक ही भावना पर रोते हैं।”
इस दौरान उन्होंने चेताया भी कि इस तेजी से बिखरती दुनिया में सिनेमा जैसे कुछ माध्यम बचे हैं, जो इस तरह के एकीकरण का दावा कर सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि हम ऐसी फिल्में बनाते रहेंगे, जो लोगों को एकसाथ लाएंगी। गुरुवार को यहां  50वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (इफी) के अवसर पर कला अकादमी में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए उन्होंने यह बातें कही। इस दौरान उनकी 6 फिल्मों का प्रदर्शन भी किया जा रहा है। गौरतलब है कि अमिताभ को इसी वर्ष दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उद्घाटन अवसर पर अमिताभ ने यह भी कहा, “मैं बहुत ही विनम्र महसूस कर रहा हूं और इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दूंगा। मुझे हमेशा लगता है कि मैं ऐसी मान्यता के योग्य नहीं हूं लेकिन मैं विनम्रतापूर्वक और बहुत अनुग्रह व स्नेह के साथ इसे स्वीकार करता हूं।”
अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के स्वर्ण जयंती समारोह पर उन्होंने कहा, “यह अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव का 50वां साल है और मैं भारत सरकार और इफी को इतने शानदार तरीके से खुद को संचालित करने के लिए बधाई देता हूं। प्रत्येक वर्ष हम प्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि और फिल्मों के चुनाव से हमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के काम और रचनात्मकता को देखने का अवसर मिलता है।” अमिताभ की इस महोत्सव में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में पाओ, शोले, देवर, ब्लैक, पीकू और बिल्ला हैं।

 


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