रांची, 12 नवम्बर (हि.स.)। भाजपा-शिवसेना के बीच महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद संबंध ख़त्म हुए लेकिन झारखंड में चुनाव से पहले ही भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच तल्खी बहुत बढ़ गयी है। सीट बंटवारे को लेकर भाजपा और आजसू में विवाद इतना बढ़ा कि दोनों दलों में 19 साल पुरानी दोस्ती तक़रीबन टूट की कगार पर है। उधर, लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) झारखंड में अकेले चुनाव में उतरने का फ़ैसला करते हुए 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है।
झारखंड विधानसभा चुनाव में सहयोगी दलों की ज्यादा सीटों की मांग के बाद भाजपा के दो सहयोगी दलों ने गठबंधन से अलग राह पकड़ ली है। भाजपा ने झारखंड विधानसभा के लिए अपने 52 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। आजसू नेता सुदेश महतो ने भाजपा के शीर्ष नेताओं से कई दौर की बातचीत की लेकिन आजसू की बढ़ी हुई सीटों की मांग पर बात नहीं बनी। जिसके बाद आजसू ने 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर भाजपा को सकते में डाल दिया।
इधर, गठबंधन टूटता देख कई पुराने भाजपा नेता और दूसरे दलों के प्रत्याशी भी भाजपा के सहयोगी दलों से अपनी किस्मत आजमाने में लग गए हैं। झारखंड में सीट बंटवारे को लेकर भाजपा और आजसू के बीच बात नहीं बनी। आखिरकार 2000 में बने भाजपा-आजसू गठबंधन की राहें अलग होती दिख रही हैं। आजसू ने एक सीट से अपनी सियासी यात्रा शुरू की थी। बिहार विधानसभा के लिए चुने गये आजसू के एकमात्र विधायक सुदेश कुमार महतो सरकार से जुड़े। उसके बाद भाजपा की जितनी भी सरकारें बनीं, आजसू सभी में सहभागी रहा। 2014 के चुनाव में आजसू के साथ भाजपा का फूलप्रूफ गठबंधन बना था। भाजपा 72, आजसू आठ और एक सीट पर लोजपा चुनाव लड़ी थी। भाजपा को 37 सीटें मिली। आजसू ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की और लोजपा एकमात्र पाकुड़ की सीट नहीं जीत पायी। राज्य में भाजपा-आजसू गठबंधन की सरकार बनी।
विधानसभा चुनाव में आजसू जिन सीटों पर 2014 में दूसरे स्थान रही थी या जीत दर्ज की थी, उन्हीं सीटों पर उसने दावेदारी की। इसपर सहमति को लेकर आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने दिल्ली में केन्द्रीय नेतृत्व से चर्चा की लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और चुनाव प्रभारी ओम माथुर से मिलकर अपनी पार्टी का पूरा प्रस्ताव सौंप दिया था। तीन दिन बीतने के बाद भाजपा नेतृत्व ने आजसू के साथ सीट समझौते पर कोई ठोस बात नहीं की। अंततः दोनों के बरसों के रिश्ते खत्म हो गये।
आजसू ने उन सीटों पर भी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की, जहां भाजपा अपना उम्मीदवार उतार चुकी है। लोहरदगा और चंदनकियारी को लेकर दोनों दलों में सबसे अधिक खींचतान थी। इन सीटों पर भी आजसू ने अपने उम्मीदवार उतार दिए। लोहरदगा से नीरू शांति भगत और चंदनकियारी से उमाकांत रजक ने नामांकन पत्र भी भर दिया। इसके साथ ही वैसी सीटें जहां भाजपा ने अपने सीटिंग विधायकों का टिकट काटा था वैसे उम्मीदवारों को भी टिकट दे रहा है। इनमें छतरपुर से राधाकृष्ण किशोर शामिल हैं, जिन्होंने आजसू का दामन थाम लिया है। अब वे छतरपुर से आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।
आजसू ने जिन 12 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान किया है, उनमें से चार सीटों पर भाजपा पहले ही प्रत्याशी उतार चुकी है। ऐसे में अब सिमरिया, सिंदरी, मांडू और चक्रधरपुर सीट पर भाजपा और आजसू के उम्मीदवार चुनाव में आमने-सामने होंगे। चक्रधरपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा मैदान में हैं। यहां आजसू ने उनके खिलाफ रामलाल मुंडा को मैदान में उतारा है। जानकारी के मुताबिक यही वो चार सीटों हैं, जिसको लेकर गठबंधन में गांठ पड़ गई। दोनों दल इन सीटों पर अपनी-अपनी दावेदारी से पीछे नहीं हटे। इसके अलावा आजसू ने इसबार गठबंधन के तहत 19 सीटें मांगी थी, लेकिन बीजेपी मात्र 9 से 10 सीट देने को तैयार थी।
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा-आजसू गठबंधन के तहत मैदान में उतरे और सूबे की कुल 14 सीटों में 13 पर जीत हासिल की। 12 पर भाजपा और एक गिरिडीह पर आजसू को जीत हासिल हुई लेकिन विधानसभा चुनाव में ये गठबंधन आगे नहीं बढ़ पाया।19 सीटों के पेंच में फंसकर दोनों दलों की लगभग 19 साल पुरानी दोस्ती खतरे में आ गयी है।
आजसू के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दूसरे सहयोगी लोक एलजेपी ने भी 50 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का दावा पेश कर दिया है। एलजेपी भी इसबार ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी, जिसपर बात नहीं बनने के बाद एलजेपी ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया।
उधर, बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रहे जदयू ने झारखंड में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया है। इस तरह भाजपा को अपने सबसे पुराने सहयोगियों में से एक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से भी झारखंड में मुकाबला करना होगा। हालांकि जदयू ने पहले ही झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था।