पटना, 28 मार्च (हि.स.)। वैश्वविक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण के रोकने के लिए जारी लॉकडाउन के बीच शनिवार को नहाय-खाय के साथ लोकआस्था का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ शुरू हो गया। इस साल 28 मार्च से 31 मार्च के बीच चैती छठ मनायी जा रही है। नहाय-खाय को लेकर व्रतियों ने सपरिवार श्रद्धा, आस्था, शुद्धता, पवित्रता, नेम-निष्ठा और विश्वास के साथ स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना की। उसके बाद कद्दू की सब्जी, अरवा चावल का भात एवं शुद्ध चने की दाल का प्रसाद ग्रहण किया। व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के बाकी सदस्यों और पड़ोस के लोगों के साथ ही सगे-संबंधियों ने भी प्रसाद लिया। इसके अगले दिन रविवार की शाम खरना है। बाद सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते हुए सूर्य) को अर्घ्य दिया जाएगा। मंगलवार को प्रातःकाल में उदयाचलगामी (उगते हुए) सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस महापर्व का समापन होगा।
इस बार छठ महापर्व पर भी कोरोना वायरस का इफेक्ट है। नहाय-खाय के दिन भी लोग नदी और तालाबों पर स्नान नहीं करने गये। अपने घरों में स्नान के साथ पूजा की। बाजारों में भी पूरी पूजा सामग्री नहीं मिली। इससे लोगों का मन काफी उदास है, लेकिन परंपरा एवं आस्था से वशीभूत होकर लोग जो मिल रहा है उसी से पूजा सम्पन्न कराने में लगे हुए हैं।
चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है चैती छठ
हिंदी पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को चैती छठ मनाई जाती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत आज नहाय-खाय से हो चुकी है। इसके अगले दिन पंचमी को खरना है, जबकि षष्ठी को भगवान भास्कर को संध्या अर्घ्य और सप्तमी के प्रातः काल का अर्घ्य दिया जाएगा। यह पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पूर्वांचल सहित नेपाल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान सूर्य की बहन हैं छठी मइया
साल में दो बार छठ पूजा मनाई जाती है। पहली छठ पूजा चैत्र में और दूसरी छठ पूजा कार्तिक महीने में मनाई जाती है। चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय होता है। इस दिन से ही छठ पूजा की शुरुआत होती है। किवदंतियों के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं। इसलिए जो व्यक्ति छठ पूजा में सूर्य देव की आराधना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं छठी मैया पूर्ण करती हैं। साथ में घर में धन-धान्य का आगमन होता है और सभी स्वस्थ रहते हैं।
सनातन संस्कृति में सूर्य आराधना का विशेष महत्व
सनातन संस्कृति में सूर्य आराधना का विशेष महत्व है। नवग्रहों में सूर्य देव को राजा का पद दिया गया है। इसका मतलब यह है कि वह सृष्टि के पालनहार हैं और पूरे ब्रहमांड का ख्याल रखते हैं। सूर्य अपनी रश्मियों से धरती पर प्रकाश बिखेरते हैं और सूर्य के इसी प्रकाश की वजह से पृथ्वीलोक पर जीवन संभव हुआ है। इसलिए सूर्यदेव को जीवनदाता माना जाता है। इसलिए सूर्यदेव का आभार जताने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए साल में दो बाकर छठ का पर्व बहुत ही धूमधाम और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। समें बड़ी संख्या में व्रती नदी, तालाब और पवित्र जल सरोवरों के तट पर इकट्ठे होते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, छठ, डाला छठ, छठी माई पूजा, सूर्य षष्ठी के नामों से जाना जाता है।