दो दशक में दो अरब डॉलर के नुकसान को नहीं झेल सकी फोर्ड
नई दिल्ली, 11 सितंबर (हि.स.)। दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड ने भारत में अपने कारोबार को बंद करने का ऐलान तो जरूर कर दिया है, लेकिन अब कारोबारी जगत में लगातार ये सवाल उठ रहा है कि आखिर फोर्ड को भारत से अपना कारोबार समेटने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा। वैश्विक स्तर पर 49.76 अरब डॉलर के मार्केट कैप वाली इस कंपनी के सामने ऐसी कोई आर्थिक परेशानी भी नहीं थी कि वह भारत में अपने कारोबार का संचालन नहीं कर सकती थी। ऐसे में उसने गुजरात के साणंद और तमिलनाडु के चेन्नई प्लांट को बंद करने का ऐलान कर सभी लोगों को हैरत में डाल दिया है।
कंपनी की ओर से आधिकारिक तौर पर किए गए ऐलान के मुताबिक गुजरात के साणंद स्थित व्हीकल असेंबली यूनिट मौजूदा वित्त वर्ष के तीसरे तिमाही के आखिर तक यानी दिसंबर तक बंद कर दी जाएगी, वहीं फोर्ड के चेन्नई स्थित इंजन और असेंबली प्लांट को 2022-23 की पहली तिमाही के दौरान बंद किया जाएगा।
फोर्ड के साणंद प्लांट में फोर्ड एस्पायर और फोर्ड फिगो जैसी कार का उत्पादन किया जाता है। 460 एकड़ में फैले इस प्लांट में हर साल लगभग 2.40 लाख गाड़ियां बनकर तैयार होती हैं, जबकि 2 लाख इंजन का हर साल निर्माण किया जाता है। इसी तरह फोर्ड के चेन्नई प्लांट में फोर्ड इकोस्पोर्ट और फोर्ड एंडेवर जैसी कारों का उत्पादन किया जाता है। इस प्लांट की उत्पादन क्षमता हर साल 2 लाख गाड़ियों और 3.40 लाख इंजनों को तैयार करने की है।
औपचारिक तौर पर अभी तक यही कहा गया है कि करीब दो दशक तक भारत में कारोबार करने और लगभग 2 अरब डॉलर का नुकसान झेलने के बाद फोर्ड ने भारत के कारोबार को बंद करने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि कंपनियों के संचालन का खर्च काफी बढ़ जाने और फोर्ड की गाड़ियों की घरेलू मांग में काफी कमी आ जाने की वजह से इन दोनों प्लांट को चला पाना फोर्ड के लिए लगातार नुकसान की वजह बनता जा रहा था। फोर्ड के लिए इन दोनों प्लांटों से अपनी लागत को निकाल पाना भी मुश्किल हो गया था। यही वजह है कि कंपनी ने अपने भारतीय कारोबार को पूरी तरह से समेटने का फैसला कर लिया। अपने प्लांट्स को बंद करके फोर्ड करीब 2 अरब डॉलर के रिस्ट्रक्चरिंग चार्ज को चुकाएगी और उसके बाद भारतीय कारोबार के अधिकांश हिस्से को बेच कर या किसी नई भारतीय साझेदार कंपनी को सौंपकर बाहर निकल जाएगी।
बताया जा रहा है कि फोर्ड की ओला और महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियों के साथ इस संबंध में बात चल रही है। हालांकि दोनों पक्षों के बीच क्या बातचीत हुई है, इसकी जानकारी अभी तक साझा नहीं की गई है। फोर्ड का कारोबार बंद होने से भारत में उसके करीब 4000 से ज्यादा कर्मचारी प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे, जबकि डीलर और सब डीलर के पास काम करने वाले करीब 40 हजार लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि अगर फोर्ड की ओला, महिंद्रा एंड महिंद्रा या किसी और भारतीय कंपनी के साथ कारोबारी समझौता हो जाता है, तो इससे रोजगार गंवाने की आशंका से डरे कर्मचारियों को काफी राहत मिल सकेगी।
कंपनी की ओर से दावा किया जा रहा है कि फोर्ड अभी तक बिक चुकी अपनी कारों के लिए स्पेयर पार्ट्स और सर्विसिंग की सुविधा उपलब्ध कराती रहेगी। इसके साथ ही कंपनी मुस्टैंग और रेंजर जैसे प्रीमियर मॉडल्स का इंपोर्ट करना जारी रखेगी। दूसरी ओर एंडेवर, एस्पायर, फिगो और इको स्पोर्ट्स जैसे मॉडल्स की बिक्री उनके आर्डर खत्म होने के बाद पूरी तरह से बंद हो जाएगी।