बेगूसराय, 03 नवम्बर(हि.स.)। सूर्योपासना के महापर्व छठ के रविवार को समापन के साथ मिथिला की लोक संस्कृति का उत्सव सामा-चकेवा शुरू हो गया। आठ दिन तक चलने वाले इस लोक पर्व का समापन कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि होगा। सामा-चकेवा को लेकर गलियां मैथिली गीतों से गुंजायमान हो रही हैं। हर गली में ‘सामा खेले चलली भौजी संग सहेली, जुग जुग जियो हो, हो भैया जिओ हो’ गीत सुनाई पड़ रहा है।
भाई-बहन के कोमल और प्रगाढ़ रिश्ते को बेहद मासूम अभिव्यक्ति देने वाला यह लोक उत्सव मिथिला संस्कृति के समृद्धता और कला का अभिन्न अंग है। इस लोक पर्व को लेकर महिलाओं और युवतियों ने सामा, चकेवा, चुगला, सतभईयां, टिहुली, कचबचिया, चिरौंता, हंस, सतभैंया, चुगला, बृंदावन सहित अन्य मूर्ति को बांस से बने दउरा में सजाकर तैयार कर लिया है। रात में इसे ओस चाटने के लिए घर के बाहर छोड़ दिया जाता है। रात को एक-दूसरे के साथ हंसी ठिठोली करती महिलाएं लगातार आठ दिनों तक सामा खेलेंगी। इस दौरान आंगन में समदाउन, ब्राह्मण गोसाउनि गीत और भजन गूंजेंगे। सामा खेलने के दौरान भाई के प्रेम और ननद -भाभी की हंसी ठिठोली मिथिला की माटी में खुशबू घोलेगी।
उत्सव के अंतिम दिन समदाउन गाते हुए महिलाएं समूह में घर से निकलेंगी और नदी और तालाब के किनारे अथवा खेत में चुगला के मुंह में आग लगा बृंदावन से बुझाकर सामा-चकेवा सहित अन्य मूर्तियों को अगले साल आने की कामना के साथ विसर्जित कर दिया जाएगा।
सामा-चकेवा की कहानी श्रीकृष्ण काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री श्यामा और पुत्र शाम्ब के बीच अपार स्नेह था। कृष्ण की पुत्री श्यामा का विवाह ऋषि कुमार चारुदत्त से हुआ था। श्यामा ऋषि मुनियों की सेवा करने बराबर उनके आश्रमों में सखी डिहुली के साथ जाया करती थीं। भगवान कृष्ण के दुष्ट स्वभाव के मंत्री चुरक को यह रास नहीं आया और उसने श्यामा के विरुद्ध राजा के कान भरने शुरू कर दिए। इससे क्रुद्ध होकर श्रीकृष्ण ने श्यामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। पत्नी को पक्षी रूप में देखकर श्यामा के पति चारुदत्त ने भी भगवान शंकर की अर्चना कर पक्षी का रूप प्राप्त कर लिया।
श्यामा के भाई और भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्भ ने जब यह देखा तो बहन और बहनोई की दशा से मर्माहत होकर अपने पिता की आराधना शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने वरदान मांगने को कहा तो उसने बहन-बहनोई को मानव रूप में वापस लाने का वरदान मांगा। तब श्रीकृष्ण को पूरी सच्चाई का पता लगा और श्राप मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा कि श्यामा रूपी सामा एवं चारुदत्त रूपी चकेवा की मूर्ति बनाकर उनके गीत गाएं और चुरक की कारगुजारियों को उजागर करें। तभी से बहनें भाई के दीर्घायु होने की कामना के लिए सामा-चकेवा पर्व मनाती हैं।