हजारों सालों में पहली बार ‘मस्ती की नगरी’ कोलकाता में पसरी है वीरानी
कोलकाता, 07 अप्रैल (हि.स.)। हजारों सालों से भारत के इतिहास की कई गाथाएं समेटकर हमेशा चहल, पहल और रंगीन मिजाजी में डूबे रहने वाली मस्ती की नगरी कोलकाता में पहली बार खामोशी पसरी है। वर्तमान में करीब ढाई करोड़ की आबादी वाला यह शहर औपनिवेशिक काल से ही देश दुनिया के लाखों लोगों का शरणगाह रहा है।
भारत के कोने कोने से लोग यहां आकर बसते रहे हैं और यह शहर सबका पेट पालता रहा। अंग्रेजों से लेकर फ्रांसीसियों, डच तक को लुभाने वाले इस शहर के अजायबघर, चिड़ियाखाना, तारामंडल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, साइंस सिटी, हावड़ा ब्रिज और सिंधु को कैलाश से जोड़ती ममतामई गंगा के घाट आजकल सूने पड़े हुए हैं। जान समुद्र वाले जगहों पर आजकल कोई नजर नहीं आता। हजारों सालों की चहलकदमी और गाड़ियों की सरपट दौड़ से दबी रहने वाली सड़कें आराम फरमा रही हैं। दावा किया जाता है कि उपनगरीय क्षेत्रों से रोज कम से कम 20 लाख लोग रोजी रोजगार के लिए कोलकाता आते रहे हैं।
निकटवर्ती हावड़ा को जोड़ने वाले 77 साल पुराने ऐतिहासिक हावड़ा ब्रिज भी गाड़ियों के शोर और लाखों कामगारों की चहलकदमी से मुक्त है। किसी ने शायद ही सोचा होगा कि ऊंची ऊंची इमारतों और लंबी चौड़ी सड़कों से घिरे इस महानगर को ऐसी विरानी कभी नसीब होगी। कोविड-19 की वजह से वैसे तो पूरे देश की तस्वीरें एक जैसी हैं। दिल्ली के ऐतिहासिक इंडिया गेट को बंद कर दिया गया है। मुंबई के बीच बंद हैं। और मस्ती की नगरी कोलकाता भी महामारी की मार से चारदीवारी में सिमट गया है। राजीव गांधी ने इसे रैलियों का शहर कहा था। साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में विख्यात कोलकाता में आजकल नजारे कुछ यूं हैं कि शहर के एक हिस्से से लेकर दूसरे हिस्से तक बिरानी पसरी हुई है।