अनाज के एक-एक दाने को मोहताज,अगलगी के 36 घंटे बाद भी नहीं सूखे हैं पीड़ितों के आंसू

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खुले आसमान में रहकर मददगार का जोह रहे बाट



भागलपुर, 03 मार्च (हि.स.)।बिहार में भागलपुर जिले के अकबरनगर थाना क्षेत्र के कशमाबाद दियारा में बीते मंगलवार को धान उबालने के दौरान निकली चिंगारी से लगभग 400 फूस के घर जलकर राख हो गए। इस घटना में कई परिवारों के जीवन भर की कमाई आग के भेंट चढ़ गई। पीड़ित परिवारों के आंसू अभी तक नहीं सूख पाए हैं।घटना के बाद से इस क्षेत्र में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। बीच-बीच में पीड़ित महिलाओं की सिसकियां और भूख से रोते बच्चे की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई सुनाई पड़ती है। ये आवाज आम इंसानों को झकझोरने वाली होती है।
अगलगी कि घटना के बाद पीड़ित परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे दिन भर भूख से तड़पते रहे। बच्चे अपने माता-पिता से खाना मांग रहे थे, लेकिन उनके पास तो अन्न का एक दाना भी नहीं बचा था‌।स्थानीय बबलू मंडल ने मानवता का परिचय देते हुए देर शाम अग्नि पीड़ित परिवार के लिए दाल, चावल और सब्जी का व्यवस्था कर सभी गांव वालों को मंगलवार को रात का खाना का व्यवस्था तो कर दिया लेकिन बुधवार सुबह होते ही फिर बच्चे भूख से व्याकुल हो गए। पंचायत के मुखिया अरविंद मंडल ने प्रत्येक अग्नि पीड़ित परिवार को पांच किलो चूड़ा, एक किलो गुड़ दिया।
घटना की जानकारी पर बिहपुर पुलिस के साथ नारायणपुर से अजय सरकार, सुल्तानगंज अंचलाधिकारी शंभू शरण राय, नाथनगर के सीओ व बीडीओ मंगलवार देर शाम घटनास्थल पर पहुंचे और पीड़ित परिवारों के बीच प्लास्टिक वितरण किया और पूरे गांव का क्षति का आकलन किया।बैकुंठपुर दूधैला पंचायत के वार्ड 9 और 10 गंगा के दियारा पर बसा है। नारायणपुर प्रखंड मुख्यालय से कशमाबाद की दूरी करीब 19 किलोमीटर, जबकि अकबरनगर और सुल्तानगंज से लगभग यह 10 से 12 किलोमीटर की दूरी है। जिस कारण पीड़ित परिवार को जल्द मदद नहीं मिल पा रहा है।
पीड़ित हरिलाल मंडल, सूरज मंडल, कैलाश मंडल आदि का कहना है की अगलगी की घटना के बाद हमलोग खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं। गंगा नदी के किनारे बसे इस गांव की आबादी करीब 10,000 है। 34 साल पहले गंगा की कटाव से गांव के 1500 लोगों का घर नदी में विलीन हो गया था। इसके बाद विस्थापित परिवार गंगा की दूसरी छोर पर किसी तरह फूस के मकान बना कर गुजर-बसर कर रहे थे। इस पंचायत के 9 और 10 वार्ड के रूप में चयनित कर लिया गया। मगर विस्थापितों को यह नहीं पता था कि गंगा की त्रासदी झेलने के 35 साल बाद उन्हें दोबारा इतनी बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ेगी। अग्नि कांड ने सभी परिवारों को दोबारा सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। बच्चे, बूढ़े और जवान अन्न के एक-एक दाना के लिए मोहताज हैं और खुले आसमान में रहने को मजबूर है।

 


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