दो सितम्बर से शुरू होगा पितरों की मुक्ति और मोक्ष का पितृपक्ष महालया

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बेगूसराय, 31 अगस्त (हि.स.)। अनेकता और विविधताओं में एकता का संदेश देने वाले भारत में विभिन्न तरह के यज्ञ, पर्व और कर्मकांडो का प्रचलन पौराणिक काल से है। इसी में से एक है पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने और उनके मुक्ति के लिए 16 दिनों तक मनाया जाने वाला पितृपक्ष, जिसे महालया पक्ष भी कहा जाता है। इस वर्ष पितरों की तृप्ति तथा उनके मुक्ति का पक्ष पितृपक्ष दो सितम्बर से शुरू हो रहा है। इस बार पितृपक्ष का आगमन किसी वरदान से कम नहीं है। क्योंकि पितृपक्ष की शुरुआत राहु के शतभिषा नक्षत्र में हो रही है और राहु के नक्षत्र में इस पक्ष का आरंभ होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस समय में थोड़ी सी सावधानी और संयम से पितरों की अनुकंपा और मनचाहा आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

भादो माह के पूर्णिमा से आश्विन माह के प्रथम पक्ष अमावस्या तक 16 दिनों तक चलने वाला यह पितृपक्ष अथवा महालया पक्ष पितरों की जागृति के दिन होते हैं। जिसमें पितर सूक्ष्म रूप में देवलोक से चलकर पृथ्वी लोक में उपस्थित हो जाते हैं तथा अपने वंशजों से भोज्य पदार्थ एवं जल श्रद्धा स्वरूप स्वीकार कर उन्हें मनचाहा फल देते हैं। कहा जाता है कि यह पितृपक्ष यज्ञ कर्ता के सांसारिक जीवन को सुखमय बनाने के साथ-साथ परलोक भी सुधार देता है। जिस दिव्य आत्मा का श्राद्ध किया जाता है उसे तृप्ति एवं कर्म बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। पितृपक्ष की शुरुआत बुधवार को पूर्णिमा के दिन से हो रहा है। प्रथम दिन सभी तर्पण करने वाले अगस्त मुनि को जल देंगे, इसके बाद प्रत्येक दिन अपने पितरों को जल देंगे। हिंदू धर्म के अनुसार जिस तिथि को पितृपक्ष की मृत्यु हुई थी उस तिथि को पिंडदान कर पार्वन किया जाएगा। जिन्हें अपने पितृपक्ष के मरने की तिथि याद नहीं होगी वह नवमी तिथि को पिंड दान करेंगे।
पंडित आशुतोष झा ने बताया कि नाम और गोत्र से अग्निमुख किए गए पदार्थ ग्रास के रूप में पितर प्राप्त करते हैं। यदि पूर्वज देव योनि को प्राप्त हो गए हों तो अर्पित किया गया अन्न और जल उन्हें अमृतकण के रूप में प्राप्त होता है। पूर्वज यदि मनुष्य योनि में गए होंगे तो उन्हें अन्न के रूप में, पशु योनि में गए होंगे तो घास के रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में तथा यक्षिणी योनि में जल आदि पेय पदार्थ के रूप में उन्हें अर्पित पदार्थ का तत्व प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि वेद मंत्रों में इतनी शक्ति होती है कि श्रद्धा एवं संकल्प के साथ किया गया अर्पित वस्तु या पदार्थ के रूप में पितरों को प्राप्त होते हैं। तर्पण के समय प्रदान किए गए पदार्थ भक्ति के साथ बोले गए मंत्रों के माध्यम से पितर तक पहुंचते हैं।
उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में पिंड दान और तर्पण मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। जल में काला तिल, जौ, कुश और सफेद फुल मिलाकर तर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं। शास्त्रों में पितर का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है। माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी, गुरु और आचार्य पितर की श्रेणी में आते हैं। निर्णय सिंधु तथा भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख है। पितृपक्ष के दौरान अपने पितर की शांति के लिए देश में गया सबसे उपयुक्त स्थल है। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण वहां जाना मुश्किल है। ऐसे में लोग प्रत्येक दिन अपने घर पर ही तर्पण कर पितृ के मोक्ष की कामना कर सकते हैं। इसके लिए पीतल की थाली में शुद्ध जल भरकर, इसमें काला तिल, जौ और दूध मिला अपने समक्ष रख लें एवं उसके साथ एक दूसरा खाली बर्तन भी रखें।
तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के बीच में अंजुली बनाकर हाथ को परस्पर मिला लें तथा मृत पूर्वज का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुए हाथ का जल दूसरे खाली बर्तन में रख दें। एक व्यक्ति के लिए कम से कम तीन अंजलि तर्पण करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थान पर रखे गए जल में से आंखों में लगाएं, घर में छिड़क दें और बचे हुए जल को पीपल के पेड़ में अर्पित कर दें तो घर से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाएगी। हर प्रकार की समस्या से मुक्ति मिलेगी और पितर भी तृप्त होंगे।

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