पारंपरिक खेती छोड़कर समृद्ध हो रहे हैं किसान

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350 ग्राम तक की हो रही है एक शिमला मिर्च 



बेगूसराय, 24 दिसम्बर (हि.स.)। लागत केेे हिसाब से आमदनी नहीं होने से छोटे किसान खेती-किसानी छोड़कर दिल्ली, पंजाब और मुंबई चले जाते हैं लेकिन पारंपरिक खेती छोड़कर आधुनिक तकनीक से खेती करने पर किसान गांव में रहकर 25 से 30 हजार रुपये महीना कमा सकते हैं। इसे साबित कर दिखाया है बेगूसराय जिले के शकरपुरा निवासी किसान कृष्णदेव राय एवं अजीत भारद्वाज समेत जिले के सैकड़ों किसानों ने, जो सब्जी, फूल और इंटरक्रापिंग खेती कर रहे हैं।
20 साल पहले तक अमानत करने वाले कृष्णदेव राय की इतनी आय नहीं थी कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा दे सकें, घर-मकान बना सकें। लेकिन अचानक से खेती के प्रति जगी ललक से अमानत छोड़कर किसान बन गए। उन्होंने मेंथा और गन्ना की नई तकनीक से खेती शुरू कर दी। अब मेंथा की खेती छोड़कर पपीता, गन्ना, टमाटर, परवल, शिमला मिर्च आदि से प्रत्येक वर्ष छह से आठ लाख रुपये कमा रहे हैं। इसके साथ ही खेती किसानी की नई तकनीक इंटर क्रॉपिंग मल्चिंग एवं ड्रीप लाइन का उपयोग कर दूसरे किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। खेतों पर जाकर उन्हें सिखा रहे हैं। कृष्ण देव राय कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि किसानों के अच्छे दिन आएंगे। लेकिन इसके लिए मोदी जी हमारे खेत पर आकर कुछ नहीं कर सकते हैं। हम सब किसानों को डिजिटल यानी नई तकनीक से खेती करनी होगी और इससे जरूर अच्छे दिन आएंगे ।
2017 में इन्होंने इंटर क्रॉपिंग कर सीओ 0238 गन्ना के साथ पुखराज किस्म का आलू लगाया था। जांच में आए विशेषज्ञ ने आलू के साथ गन्ना को बिहार में सबसे बेहतर रिपोर्ट किया। इसके बाद दिल्ली में आयोजित समारोह में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के हाथों राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार मिला। 2018 में राज्य के कृषि मंत्री द्वारा तथा कृषि विश्वविद्यालय पूसा में अभिनव सम्मान मिला। उन्होंने बताया कि पारंपरिक तरीके से हो रही खेती में 15 से 20 हजार खर्च करने पर मौसम के साथ देने पर 25 से 30 हजार मिलता है। लेकिन नई तकनीक की खेती में 15 से 25 हजार खर्च करने पर 60 हजार से अधिक आय हो जाती है। इस सीजन में मल्चिंग सिस्टम एवं ड्रीमलाइन सिस्टम से शिमला मिर्च के साथ मटर लगाया है। शिमला मिर्च पेड़ में लद गया है तथा एक फल 300 से 350 ग्राम तक का है। मल्चिंग में मेड़ पर पन्नी के नीचे समान दूरी पर छेद वाला ड्रिप लाइन पाइप है। इस पानी के पाइप से ही सभी आवश्यक जैविक तत्व सीधे पौधे की जड़ में पहुंचता है, जिससे नमी अधिक दिनों तक बरकरार रहती है। पौधे की जड़ में कीट एवं खरपतवार से सुरक्षा भी है।
वह बताते हैं कि पहले जहां पटवन में 20 से 25 घंटा लगता था वहीं अब मात्र 30 से 35 मिनट में पानी की उचित मात्रा मिल जाती है। किसानों के फसल में लागत का एक बड़ा भाग कीटनाशक पर खर्च हो जाता है। लेकिन इसके लिए नई तकनीक में क्रॉप गार्ड विकसित किया गया है। यह कीटनाशक के छिड़काव पर होने वाले 15-20 हजार खर्च एवं शरीर तथा फसल पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से मुक्त करता है। क्रॉप गार्ड को पीला एवं नीला पॉलिथीन में विशेष गोंद लगाकर दस-दस फीट की दूरी पर खेत में लगाया गया है। फसल पर आने वाला कीट इसी दोनों पॉलिथीन में चिपक कर मर जाते है।

 


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