किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रदर्शन का हक लेकिन समाधान बातचीत से ही निकलेगा

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 कोर्ट ने पूछा, जब तक बातचीत से कोई समाधान नहीं निकलता, क्या सरकार कानून लागू नहीं करने पर विचार कर सकती है?



नई दिल्ली, 17 दिसम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के आंदोलन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा है कि हमने क़ानून के खिलाफ प्रदर्शन के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है, उस अधिकार में कटौती का कोई सवाल नहीं, बशर्ते वो किसी और की ज़िंदगी को प्रभावित न कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या जब तक बातचीत से कोई समाधान नहीं निकल जाता, क्या सरकार कानून लागू नहीं करने पर विचार कर सकती है? कोर्ट ने इस मामले पर आज कोई भी आदेश जारी नहीं किया।

कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों की सुनने के बाद ही फैसला सुनाएंगे। वेकेशन बेंच मामले की सुनवाई कर सकती है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि मैं एक नागरिक के लिए पेश हुआ हूं। हमने यूपी और हरियाणा को पक्षकार बनाया है। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि आप पर मामले का असर कैसे पड़ रहा है। हर जरूरी चीज के दाम बढ़ रहे हैं। यह जीवन के अधिकार का हनन है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम विरोध प्रदर्शन के अधिकार को मान्यता देते हैं। बस यह देखना है कि दूसरों के अधिकार बाधित न हों। तब साल्वे ने कहा कि बिल्कुल। कोई भी अधिकार अपने आप में पूर्ण नहीं है। उसकी सीमा होती है। दिल्ली के नागरिकों के अधिकार को भी बाधित नहीं किया जा सकता है। साल्वे ने कहा कि आज लोगों का रोजगार छिन रहा है। अपने काम के लिए पड़ोसी शहर में नहीं जा पा रहे हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम मामले का आज ही निपटारा नहीं कर रहे हैं। बस देखना है कि विरोध भी चलता रहे और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन न हो। उनका जीवन भी बिना बाधा के चले।

साल्वे ने कहा कि मैं टैक्स पेयर हूं। कल को अगर मेरी कार जला दी गई तो कोर्ट सरकार से भरपाई को कहेगा। यानी मेरे टैक्स के पैसों से मुझे भुगतान होगा। नेताओं की पहचान हो, ताकि उनसे ही वसूली हो सके। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि विरोध पर रोक नहीं लेकिन आपकी बात सही है। नेताओं की पहचान होनी चाहिए। हम निष्पक्ष कमेटी बनाना चाहते हैं। इसमें साईंनाथ जैसे कृषि विशेषज्ञ, किसान यूनियन के लोग हों। रिपोर्ट दें। तब तक शांतिपूर्ण विरोध चले। पुलिस भी हिंसा न करे लेकिन सड़क भी न रोकी जाए। इस पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कमेटी के जरिए उनकी बात समझ आनी चाहिए। सिर्फ ज़िद सही नहीं कि कानून वापस लो।

सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कौन-कौन से बॉर्डर रोक दिए गए हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि अच्छा, तो यह नहीं कह सकते कि दिल्ली को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। तब दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि जो बन्द हैं, उनके अलावा भी दिल्ली आने-जाने के कई रास्ते हैं। किसानों की मांग मान ली जाए तो हल निकल जाएगा। तब तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने प्रस्ताव दिए। लोग ज़िद पर अड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट किसी सम्मानित निष्पक्ष व्यक्ति को मध्यस्थ बना सकता है। सुनवाई के दौरान पंजाब की ओर से पी चिदंबरम ने कहा कि किसान अहंकारी सरकार से लड़ रहे हैं। उन्हें दिल्ली आने से रोका गया। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर इतनी बड़ी संख्या में लोग दिल्ली आ गए तो उन्हें नियंत्रित कैसे किया जाएगा।

सुनवाई के दौरान बीकेयू (भानु) के लिए वकील एपी सिंह ने कहा कि किसान देश की रीढ़ हैं। उनका ध्यान रखा जाए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यहां कहा जा रहा है कि दिल्ली के रास्ते रोक कर यहां के लोगों को भूखा रखा जा रहा है। तब एपी सिंह ने कहा कि फिर किसान कहां जाएं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध पर रोक नहीं है। तब एपी सिंह ने कहा कि हमें रामलीला मैदान जैसी जगह मिले।

हरीश साल्वे ने कहा कि कम से कम जाम हटाने पर आदेश दें या यह संकेत दें कि क्या आदेश देना चाहते हैं, ताकि किसान तैयारी करके आएं। चीफ जस्टिस ने कहा कि मैं अगले हफ्ते उपलब्ध नहीं हूं। पूर्वोत्तर भारत में एक अहम कार्यक्रम के लिए जाना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम प्रयास कर सकते हैं कि 21 दिसम्बर को यही बेंच सुनवाई करे। नहीं तो किसी नई बेंच का गठन करना होगा। अगर अटार्नी जनरल आश्वासन दे सकें कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तक कानून लागू नहीं होगा तो बात बन सकती है। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि इस पर चर्चा करनी होगी। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून पर रोक की बात नहीं कह रहे हैं। सिर्फ वार्ता का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सभी पक्षों को नोटिस जारी किया जाए। ज़रूरत पड़ने पर आप लोग वेकेशन बेंच के सामने मामला रखें। 16 दिसम्बर को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया गया था। कोर्ट ने किसान संगठनों को पक्षकार बनाने का आदेश दिया था।

 


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