मानवीय चेतना में पर्यावरण की महत्ता का रस घोल रही हैं कोरोना काल में बदलती फिजाएं
बेगूसराय, 31 मई (हि.स.)। वर्तमाम दौर में जब संपूर्ण विश्व कोविड-19 के संकट से ग्रसित होकर बचाव के लिए घर की चारदीवारी बंद है तो प्रकृति के साथ हुए खिलवाड़ का चित्र पूर्ण स्पष्टता के साथ उभर कर सामने आ गया है। गंगा की निर्मल होती धाराएं, विलुप्त हो चुके प्रजातियों की पक्षी का कलरव, दूरदर्शिता के बढ़ते पैमाने समेत कई अन्य सकारात्मक बदलाव सहजता से महसूस किए जा सकते हैं। साथ ही इन बदलावों के पीछे के कारकों को भी समझा जा सकती है। शोर मचाती शुद्ध हवा अपनत्व के भाव से सराबोर अतिमहत्वाकांक्षी इच्छाओं को रोक कर प्रकृति के साथ सुखमय जीवनयापन का संदेश दे रही हैै। गांव छोड़कर शहर का रुख कर चुके लोग गांव की ओर भागे जा रहे हैं।
सर्वमंगला सिद्धाश्रम सिमरिया के संस्थापक स्वामी चिदात्मन जी करते हैं कि अनादि काल से प्रकृति स्वयं की अद्भुत कलाकृतियों से जगत के कल्याण के लिए कई उत्कृष्ट व सर्वोपयोगी अभिनय करती आई है। यह अभिनय मानस-पटल पर दस्तक देकर कर्तव्य का बोध करा रही है। कई पीढ़ियों ने उन दस्तकों पर दरवाजे खोले तो उन्हें कर्तव्य परायणता के अनुसार फलों की प्राप्ति हुई लेकिन वर्तमान की पीढ़ी ने जिसे नजरअंदाज कर आधुनिकीकरण से कदम ताल किया, वह काफी हानिकारक सिद्ध हुआ। प्रकृति उपभोग की उन समस्त वस्तुओं को कालचक्र के अनुरूप मुहैया कराती रही जो प्राणियों के जीवन को सुगमता प्रदान करे लेकिन उपभोग के मद में चूर प्रणियों ने उपयोग की सारी सीमाएं तोड़ दीं। आवश्यकता से अधिक की लालसा कालांतर में क्षरण की बुनियादी आधारशिला बनी।
पर्यावरण और समाजिक मुद्दों के कार्य में लगे आयुष ईश्वर कहते हैं कि कोरोना जैसी गंभीर समस्या से निपटने के लिए लॉकडाउन जितना कारगर सिद्ध हो रहा है, उससे कहीं अधिक यह अवधि मानवीय चेतनाओं में पर्यावरण की महत्ता का रस घोल रहा है। स्वजनों के साथ विचार-विमर्श में व्यतीत हो रहे समय में एक बड़ा वर्ग सुखद अनुभूति के अहसास से परिवर्तन की गाथा लिखने को संकल्पित हो रहा है। पर्यावरण की शुद्धता मानवीय जीवन को कितनी सुगमता प्रदान करती है, इसके कई उदाहरण सामने हैं। ऐसे दौर में हम सबकी जिम्मेदारी है कि प्रकृति के प्रति अपने प्रेम का पुनर्जागरण कर आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ एवं सुखमय जीवन प्रदान करें।
आयुष का कहना है कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने जिस प्रकार से तत्कालीन समय की आवश्यता के अनुरूप वेदों की ओर लौटने का सन्देश दिया था, उसी प्रकार वर्तमान स्थिति में लोगों को प्रकृति की ओर लौटने का संकल्प लेना होगा। इससे पीढ़ियां सुरक्षित रहेंगी तथा अनायास प्रकट हो रही विपदाओं में कमी आएगी। जीवनपर्यंत प्रकृति की छांव में जीवनयापन के लिए वृक्षारोपण, जल संरक्षण जैसी जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ वर्तमान स्थिति के अनुरुप स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखना होगा। सरकार को विभिन्न माध्यमों से फैल रहे प्रदूषण के रोकथाम की समुचित व्यवस्थाएं करनी होगी। बहुआयामी योजनाओं का कागज की बजाय धरातल पर क्रियान्वयन को प्राथमिकता देनी होगी। पर्यावरण से जुड़कर हम जीविकोपार्जन के कार्य को सरलता से निष्पादित कर स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।