‘एक देश, एक चुनाव’ से जुड़ा संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में मत विभाजन के बाद पेश

0
d753314178bacd955ca7190659c6c33a_1929872077

नई दिल्ली : लोकसभा में मंगलवार को लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों एवं पंचायत के एक साथ चुनाव कराए जाने से जुड़ा संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 सदन में पेश किया गया। इसके अलावा केन्द्र शासित प्रदेशों से जुड़े कानूनों में संशोधन से जुड़ा विधेयक भी पेश किया गया।

गृह मंत्री अमित शाह के प्रधानमंत्री की भावना से अवगत कराए जाने के बाद केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने सदन को आश्वसन दिया कि विधेयक को जेपीसी को भेजा जाएगा। विधेयकों को पेश किए जाने का विपक्षी सदस्यों ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे संविधान की मूल भावना और बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ बताया। वहीं सरकार में शामिल शिवसेना और टीडीपी ने विधेयक का समर्थन किया।

बाद में विधेयक को पेश किए जाते समय विपक्ष ने कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए मत विभाजन की मांग की। इसके बाद पहली बार नई संसद में इलेक्ट्रोनिक माध्यम से मतविभाजन हुआ। बाद में कुछ सांसदों ने मतपत्रों से अपने मतदान में सही कराया। विधेयक को पेश किए जाने के पक्ष में 269 और विरोध में 198 वोट पड़े और किसी ने भी मतविभाजन से दूरी नहीं बनाई। इस तरह से विधेयक सदन में पेश हुआ।

विधेयक पर चर्चा के दौरान कुछ दलों के नेताओं ने इसे जेपीसी को भेजे जाने का पक्ष रखा। द्रमुक सदस्य टीआर बालू के जेपीसी के पक्ष में दिए बयान को आगे रखते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भावना से अवगत कराते हुए कहा कि सरकार भी विधेयक को जेपीसी को भेजे जाने के पक्ष में है। वह सदस्यों से अनुरोध करते हैं कि विधेयक को पेश करने दिया जाए।

अब विधेयक में आगे जेपीसी का गठन होगा और सरकार अलग से प्रस्ताव लाकर इन्हें संयुक्त संसदीय समिति को भेजे जाने का प्रस्ताव कर सकती है।

विधेयक पर हुई चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस संविधान संशोधन विधेयक को सदन की विधायी क्षमता से बाहर बताया। उन्होंने कहा कि यह संघीय ढांचे और हमारे लोकतंत्र की व्यवस्था के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के कार्यकाल अलग होते हैं। इन्हें एक को दूसरे पर आधारित करना संविधान विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है ना कि इससे उलट है और यह विधेयक केंद्रीकरण की ओर ले जाता है।

कांग्रेस के ही नेता गौरव गोगोई ने विधेयक को लेकर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि विधेयक में चुनाव आयोग को राष्ट्रपति को सुझाव देने की शक्तियां दी गई हैं जबकि यह अब तक केवल राज्यपाल और मंत्री परिषद के अधिकार क्षेत्र में थी। विधेयक में राष्ट्रपति को भी विधानसभा भंग करने की शक्तियां दी गई हैं। उन्होंने कहा कि देश में चुनाव कराए जाने का खर्च 3700 करोड़ रुपये है और इसके लिए सरकार कानून ला रही है। उन्होंने भी विधेयक को जेपीसी को भेजे जाने का पक्ष रखा।

विधेयक को पेश करने से पूर्व कानून मंत्री ने कहा कि विधेयक सदन की विधायी क्षमता के दायरे में है। विधेयक किसी भी तरह से विधान मंडलों के अधिकारों पर हस्तक्षेप नहीं करता। यह उनकी स्वायत्तता भी प्रभावित नहीं करता। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत केंद्र सरकार को इस तरह का विधेयक लाने का पूर्ण अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर की व्याख्या के कुछ बिंदु हैं। उनपर किसी भी तरह से यह विधेयक आघात नहीं करता। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के बाद वह देश के दूसरे कानून मंत्री हैं, जो दलित समाज से आते हैं। उन्होंने ही कहा था कि राज्य किसी समझौते के तहत देश से नहीं जुड़े हैं कि वे अपनी इच्छा से अलग हो सकें।

उन्होंने राष्ट्रपति कोविन्द का भी धन्यवाद दिया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की निर्णय लेने की क्षमता की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि विधेयक का विषय 41 साल से लंबित पड़ा था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने 2019 में सर्वदलीय बैठक में विधेयक का विषय रखा था, जिसमें 19 में से 16 पार्टियों ने इसका समर्थन किया था। केवड़िया में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के नेतृत्व में पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में भी इस विषय को रखा गया था।

तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने राज्य विधानसभाओं की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया और कहा कि वे केंद्र के अधीन नहीं है। सरकार को चाहिए कि राज्यों को चुनाव फंड दिए जाने जैसा रिफॉर्म लाए। समाजवादी पार्टी सदस्य धर्मेंद्र यादव ने सवाल किया कि देश के एक राज्य में आठ चरणों में चुनाव होते हैं ऐसे में एक साथ चुनाव कैसे कराया जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार तानाशाही के नित्य नए साधन लाती रहती है।

इसके अलावा आईयूएमएल के मोहम्मद बशीर, शिवसेना(उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के अनिल देसाई, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन, द्रमुक नेता टीआर बालू, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, एनसीपी(एसपी) सुप्रिया सुले और माकपा अमरा राम ने विधेयक का विरोध किया।


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *