कोलकाता, 08 अगस्त (हि.स.)। अरबों रुपये के सारदा चिटफंड घोटाला मामले में धन शोधन की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चिटफंड समूह के मालिक सुदीप्त सेन के गुवाहाटी स्थित घर में अपना क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की मांग की है। इसके लिए कोलकाता के विचार भवन में स्थित विशेष न्यायालय में एक याचिका लगाई गई है। इसमें जांच एजेंसी ने मांग की है कि गुवाहाटी में सारदा प्रमुख का जो घर है उसे अस्थाई तौर पर ईडी के दफ्तर के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए। जब सारदा मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी और न्यायालय का निर्देश आ जाएगा तब उसे छोड़ दिया जाएगा। यह जानकारी ईडी के पूर्वी क्षेत्रीय अधिवक्ता अभिजीत भद्र ने दी।
अभिजीत भद्र ने बताया कि न्यायालय में लिखित तौर पर आवेदन किया गया है। नौ सितंबर को इस पर सुनवाई होनी है। उसी दिन तय होगा कि सारदा प्रमुख के घर का इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकेगा। दरअसल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चिटफंड मामले की जांच शुरू की तब पता चला कि असम के गुवाहाटी में सारदा प्रमुख का एक घर है। जांच की गई तो पता चला कि इस पांच मंजिला मकान को सुदीप्त सेन ने 2010 में एक निजी कंपनी से खरीदी थी। खास बात यह है कि समूह के पैसे से खरीदा गया यह मकान सारदा रियलिटी के नाम पर नहीं था बल्कि सेन ने अपने नाम पर खरीदा था। हालांकि उसका म्यूटेशन उन्होंने नहीं कराया था। 2014 में जब जांच शुरू हुई है और इसके बारे में पता चला तब प्रवर्तन निदेशालय ने इसे कुर्क कर लिया था। उसके बाद से लेकर आज तक ईडी की जब्ती सूची में सारदा प्रमुख का यह मकान है। कई बार मामले की सुनवाई के दौरान सुदीप्त सेन ने न्यायालय में यह दावा किया था कि उनकी संपत्तियों को कुर्क करने के बाद उसकी देखरेख नहीं की जा रही है। इससे मकान क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। अब ईडी ने न्यायालय में जो चिट्ठी दी है उसमें कहा गया है कि किसी भी मकान में अगर कोई नहीं रहता है और उसे बंद कर रखा जाए तो उसका नुकसान होता है। ऐसे में गुवाहाटी स्थित सारदा प्रमुख का जो घर है उसे ईडी को अस्थाई तौर पर जोनल कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए। यह मकान 6.5 करोड़ रुपये में खरीदा गया था। 25,000 वर्ग फुट में फैला हुआ है। देखरेख नहीं होने की वजह से कहीं-कहीं प्लास्टर उतर गया है तो कहीं दीवारों को भी नुकसान हो रहा है। अगर वहां ईडी का दफ्तर रहेगा तो देखरेख भी हो सकेगा और जांच को भी गति मिलेगी। जब सारदा मामले की सुनवाई पूरी होकर इस मामले में न्यायालय का निर्देश आ जाएगा तब नियमानुसार उस घर को छोड़कर न्यायालय के निर्देशानुसार उसका इस्तेमाल किया जाएगा। कायदे से चिटफंड कंपनियों और उसके मालिकों की संपत्तियों को कुर्क करने के बाद उसकी नीलामी की जाती है और उससे एकत्रित हुए रुपये को निवेशकों को लौटाया जाता है।
उल्लेखनीय है कि सारदा समूह ने बाजार नियामक संस्था सेबी के निर्देशों को दरकिनार कर बाजार से करीब 36 हजार करोड़ रुपये की धनराशि गैरकानूनी तरीके से उठाई थी। अधिक रिटर्न का लोभ देकर लोगों से यह धनराशि ली गई थी लेकिन रिटर्न देने के बजाय चिटफंड कंपनी के मालिकों ने इसे बंद कर दिया था और सारे रुपये गबन कर गए थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई और ईडी इस मामले की जांच कर रही है। इसमें पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल के कई शीर्ष नेता फंसे हुए हैं। कई लोग तो जेल की हवा भी खा चुके हैं। हालांकि पांच साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी केंद्रीय एजेंसी इस मामले में अंतिम चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी है, जिसे लेकर जांच एजेंसी पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।