नई दिल्ली, 10 जनवरी (हि.स.)। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पूर्वी लद्दाख, सियाचिन और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात भारतीय सैनिकों को सर्दियों से बचाने के लिए नए ताप उपकरण ‘हिम तापक’ और ‘अलोकल क्रीम’ का विकास किया है। भारतीय सेना ने ‘हिम तापक’ के लिए 420 करोड़ रुपये और ‘अलोकल क्रीम’ के लिए 3.5 लाख जार का ऑर्डर डीआरडीओ को दिया है। यह दोनों उत्पाद अत्यधिक सर्दियों वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को ठंड से बचायेंगे।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने सीमा पर अपनी जान की परवाह किये बगैर देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय जवानों के लिए एक अलग तरह की डिवाइस तैयार की है। बैक ब्लास्ट के दौरान निकलने वाली जहरीली गैस जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड से भारतीय जवानों की होने वाली मौतों को देखते हुए हिम तापक नामक यह डिवाइस तैयार की गई है। इससे भारतीयों जवानों की जहरीली गैस से होने वाली मौतों में कमी आयेगी। इस डिवाइस के इस्तेमाल से लद्दाख जैसे ठंडे इलाकों में ड्यूटी पर तैनात भारतीय जवानों की मुश्किलें कम करने में मददगार साबित होगी। पूर्वी लद्दाख, सियाचिन समेत अन्य ऊंचे बर्फीले इलाकों में इस डिवाइस का इस्तेमाल किया जाएगा।
डीआरडीओ ने इसमें तीन तरह के सुधार किये जिससे तेल की खपत लगभग आधी है। इस वजह से साल में 3,650 करोड़ की बचत होगी। हिम तापक में केरोसिन का इस्तेमाल होता है। यह कमरे में कोई हानिकारक गैस भी नहीं छोड़ता है। यह किफायती भी है क्योंकि इसमें प्रति घंटे सिर्फ 500 से 700 मिली लीटर केरोसिन की जरूरत पड़ती है। यह कमरे को आरामदायक गर्मी प्रदान करता है और पर्यावरण के अनुकूल है। एक हिम तापक में सालाना एक टन कार्बन डाई ऑक्साइड और 0.3 टन ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन कम करता है।
डीआरडीओ ने पूर्वी लद्दाख, सियाचिन और बर्फीले इलाकों में तैनात सैनिक खतरनाक ठंड और मौसम की स्थिति के कारण परेशान होते हैं। बड़ी संख्या में सैनिकों के हाथ और पैरों की उँगलियों में जख्म हो जाते हैं। एलोवेरा आधारित ‘अलोकल क्रीम’ का ठंड की वजह से होने वाली चोटों और जख्मों की रोकथाम के लिए बर्फीले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों पर सफलतापूर्वक अध्ययन किया गया है। यह क्रीम ठंड के कारण होने वाले जख्मों से सैनिकों को बचाएगी। सशस्त्र बलों के लिए फ्रॉस्टबाइट एक प्रमुख स्वास्थ्य खतरा और गंभीर चिकित्सा समस्या है। यह बड़ी संख्या में हाथ और पैर की उंगलियों के नुकसान के लिए जिम्मेदार है। ग्लेशियर क्षेत्रों में तैनात सैनिकों में शीतदंश के कारण होने वाली बीमारियों को कम करने में भी इस क्रीम को प्रभावकारी पाया गया है। यह क्रीम ठंड की चोट, बैक्टीरिया के संक्रमण, जलन, अल्सर, घाव और त्वचा की सर्जिकल ड्रेसिंग को रोकती है। इसके अलावा धूप की कालिमा, गाल, होंठ और उंगलियों की सुरक्षा करती है। अन्य ठंडे प्रदेशों में तैनात जवानों के लिए सेना ने ‘अलोकल क्रीम’ के 3.5 लाख जार का ऑर्डर किया है।
डीआरडीओ के रक्षा विज्ञान और संबद्ध विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. राजीव वार्ष्णेय ने बताया कि भारतीय सेना ने ‘हिम तापक’ के लिए 420 करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए हैं। इन उपकरणों को पूर्वी लद्दाख, सियाचिन और कम तापमान वाले ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात अत्यधिक सर्दियों वाले क्षेत्रों में सेना और आईटीबीपी के सभी नए आवासों में लगाये जायेंगे। यह उपकरण सुनिश्चित करेगा कि बैकब्लास्ट और कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता के कारण जवानों की मौत न हो। उन्होंने बताया कि डीआरडीओ ने अत्यधिक ठंड वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को शीतदंश, चिलब्लेन्स और अन्य ठंड की चोटों से बचाने के लिए ‘अलोकल क्रीम’ विकसित की है। पूर्वी लद्दाख, सियाचिन और अन्य क्षेत्रों में तैनात भारतीय सेना के जवान ठंड के शिकार होते हैं, इसीलिए सेना ने इस क्रीम के 3 से 3.5 लाख जार खरीदने का आदेश दिया है।
डीआरडीओ के वैज्ञानिक सतीश चौहान ने बताया कि पूर्वी लद्दाख एवं अन्य ऊंचाई वाली जगहों पर पीने की पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सूर्य की रोशनी से बर्फ को पिघलाने वाले यंत्र का ट्रायल चल रहा है। उन्होंने बताया कि अभी सियाचिन, खार्दुंगला और तवांग में उपकरण का परीक्षण किया जा रहा है। यह हर घंटे 5 से 7 लीटर पानी मुहैया करा सकता है।