नई दिल्ली, 30 नवम्बर (हि.स.)। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) पुनर्गठन की प्रक्रिया में अपनी तीन प्रयोगशालाओं को बंद करके यहां के कर्मचारियों को अन्य प्रतिष्ठानों में भेज दिया है। निकट भविष्य में अधिक प्रयोगशालाओं के बंद होने या विलय होने की उम्मीद है। आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी. रामगोपाल राव की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश पर प्रयोगशालाओं को कम करने की दिशा में यह पहला कदम उठाया गया है। डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं को सुव्यवस्थित करने और काम करने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत महसूस की गई है ताकि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिए जा रहे फैसलों के मुताबिक डीआरडीओ की कार्य प्रणाली में बदलाव हो सके।
डीआरडीओ की बंद होने वाली प्रयोगशालाओं में दिल्ली की दो रक्षा क्षेत्र अनुसंधान प्रयोगशाला (डीटीआरएल) और लेजर साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (एलएएसटीईसी) हैं। बंद होने वाली तीसरी प्रयोगशाला हैदराबाद की उन्नत न्यूमेरिकल रिसर्च एंड एनालिसिस ग्रुप (एएनयूआरएजी) है। डीटीआरएल लैब पर सशस्त्र बलों के लिए भू-स्थानिक समाधान और इलाके की खुफिया जानकारी हासिल करने की जिम्मेदारी थी। इसके कर्मचारियों को अब चंडीगढ़ स्थित हिमपात और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान (एसएएसई) में भेज दिया गया है। यह संस्था हिमस्खलन का पूर्वानुमान लगाने, हिमखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में संरचनात्मक नियंत्रण, क्रायोस्फेरिक क्षेत्रों में डेटा संग्रह और हिम आवरण सूचना प्रणाली के निर्माण में कार्यरत है। एसएएसई का नाम बदलकर रक्षा भूवैज्ञानिक अनुसंधान प्रतिष्ठान कर दिया गया है।
इसी तरह दिल्ली की बंद होने वाली दूसरी लैब एलएएसटीईसी लेजर स्रोतों, लेजर काउंटरमेशर्स और लेजर स्पेक्ट्रोस्कोपी के क्षेत्र में काम कर रही थी। इसके जिम्मे उच्च ऊर्जा लेजर स्रोतों और संबंधित ऊर्जा अनुप्रयोगों के साथ-साथ डिटेक्टरों, हथियार लोकेटरों और लेजर रोशनी के लिए संबंधित प्रौद्योगिकियों का विकास करना था। हैदराबाद की बंद की गई लैब एनयूआरएजी उन्नत कंप्यूटिंग अवधारणाओं और प्रौद्योगिकियों सहित कंप्यूटिंग प्रणालियों की डिजाइन, विकास सहित स्वदेशी वास्तुकला और विशिष्ट एकीकृत सर्किट आधारित उत्पादों या महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के साथ समानांतर प्रसंस्करण तकनीकों का इस्तेमाल कर रही थी। इन दोनों लैब के कर्मचारियों को हैदराबाद की दो अन्य प्रयोगशालाओं में स्थानांतरित किया गया है, जो मिसाइलों के विकास से जुड़ी हैं।
रक्षा मंत्रालय के अनुसंधान और विकास विंग डीआरडीओ को 1958 में स्थापित किया गया था जो स्वदेशी हथियार प्रणालियों और संबद्ध प्रौद्योगिकी के डिजाइन के लिए जिम्मेदार है। इसकी 52 प्रयोगशालाएं देश भर में फैली हुई हैं, जिन्हें नौसेना प्रणाली और सामग्री, एरोनॉटिकल सिस्टम, आर्मामेंट और कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम, मिसाइल और स्ट्रैटेजिक सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रणाली, जीवन विज्ञान और माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस, कम्प्यूटेशनल सिस्टम नामक सात प्रौद्योगिकी समूहों में वर्गीकृत किया गया है। इन सभी में लगभग 5,000 वैज्ञानिकों के अलावा 25 हजार तकनीकी और सहायक कर्मचारी हैं। डीआरडीओ को भारत का सबसे बड़ा और सबसे विविध अनुसंधान संगठन कहा जाता है लेकिन संसद की रक्षा समिति के साथ-साथ भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने इसके प्रदर्शन और इसकी कुछ परियोजनाओं की स्थिति पर गंभीर टिप्पणी की है।
इसी साल अगस्त में डीआरडीओ के सचिव डॉ. सतीश रेड्डी ने संगठन की मौजूदा संरचना की समीक्षा करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के निदेशक वी. रामगोपाल राव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एस. सोमनाथ, वायु सेना के उप प्रमुख एयर मार्शल संदीप सिंह, नेवल सिस्टम्स एंड मटिरियल्स के डायरेक्टर जनरल डॉ. समीर वी. कामत और डीआरडीओ के इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट के निदेशक बेंजामिन लियोनेल को सदस्य बनाया गया। इस समिति ने प्रयोगशालाओं को सुव्यवस्थित करने और डीआरडीओ के काम करने के तरीके में बदलाव लाने के तरीकों पर एक रिपोर्ट दी है जिस पर इन 3 प्रयोगशालाओं को बंद करके प्रयोगशालाओं को कम करने की दिशा में यह पहला कदम उठाया गया है।
इससे पहले भी डीआरडीओ के पुनर्गठन और इसके कामकाज को कारगर बनाने के लिए प्रयास हुए हैं। 2008 में पी. रामाराव समिति ने अन्य सिफारिशों के साथ डीआरडीओ को रणनीतिक महत्व की मुख्य तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया था। इस समिति ने तब दूरगामी बदलावों की सिफारिश की थी, जिसमें डीआरडीओ को मच्छर भगाने और यहां तक कि रस बनाने जैसे गैर-प्रमुख क्षेत्रों के बजाय कोर प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया था। सिफारिशों के आधार पर डीआरडीओ की 52 प्रयोगशालाओं को इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, आयुध, वैमानिकी प्रणालियों और जीवन विज्ञान जैसे सात समूहों के रूप में लाया गया था।डीआरडीओ के कामकाज की आलोचनाओं के बाद इसकी कार्य प्रणाली में बदलाव का यह दूसरा मौका है।