नई दिल्ली, 18 दिसम्बर (हि.स.)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को डीआरडीओ के पुरस्कार समारोह में वैज्ञानिकों को राष्ट्र के लिए उनके उत्कृष्ट योगदान और सेवाओं के लिए सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि आज जब वैश्विक परिस्थितियां बदल रही हैं, रक्षा के समीकरण बदल रहे हैं और उनके नए-नए आयाम हमारे सामने आ रहे हैं तो हमें और ऊंची उड़ान भरने की जरूरत है। हमारी सेनाओं को आए दिन कई नई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए हमें अपनी जरूरतों के अनुरूप अपनी क्षमताओं को तेजी से बढ़ाने की जरूरत है। अब हमें 100 प्रतिशत की जगह 200 प्रतिशत योगदान देने के लिए काम करना है।
उन्होंने कहा कि मुझे बताया गया है कि ये पुरस्कार इस वर्ष के तकनीकी, अकादमिक, प्रदर्शन उत्कृष्टता के क्षेत्रों में प्रगति और उपलब्धियों के लिए दिए गए हैं। यह न केवल वैज्ञानिकों, बल्कि पूरे संगठन के लिए बहुत हर्ष का विषय है। अपनी स्थापना के साथ ही यह संगठन हाइपरसोनिक प्रदर्शन वाहन के सफल परीक्षण तक भारतीय सशस्त्र बलों को लगातार उच्च स्तर का तकनीकी सहयोग देता है। डीआरडीओ ने नई-नई रक्षा प्रणालियों के कई सफल प्रयोग किए हैं। वह चाहे मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट तेजस हो, बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम हो, सामरिक प्रणाली हो या फिर रडार सिस्टम हो, इन सभी परीक्षणों ने भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमता बढ़ाने में मदद की है।डीआरडीओ ने वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने के साथ ‘यंग साइंटिस्ट लैब्स’ को सपोर्ट करते हुए भविष्य की जरूरतों का भी बराबर ध्यान रखा है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान डीआरडीओ ने प्रारंभ से ही वेंटिलेटर, मास्क, पीपीई किट्स और सैनिटाइजर्स का उत्पादन करना शुरू कर दिया था। यह हमारे कोरोना वारियर्स और मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुआ। डीआरडीओ ने दिल्ली और बिहार में बहुत कम समय में ही बड़े कोविड अस्पतालों की स्थापना करके भी जनता और संस्थानों की मदद की है।साथ ही पब्लिक, प्राइवेट और एकेडमिया से पार्टनरशिप करके ‘रिसर्चर’ और ‘यूजर’ के बीच तालमेल को बढ़ाने का भी काम किया है। एक तरफ कई रक्षा प्रौद्योगिकियों का विकास कर स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी ओर अपनी तकनीक हस्तांतरण से रक्षा उद्योग के भी स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता में उनकी मदद की है।