नई दिल्ली, 18 अगस्त (हि.स.)। डोकलाम विवाद के बाद यह दूसरा मौका है जब चीन के साथ पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चल रहे सैन्य टकराव के 100 दिन पूरे हो चुके हैं। डोकलाम में चीन के साथ 73 दिनों तक गतिरोध चला था। इस दौरान ऑपरेशनल गतिविधियों में सेना के सामने कई तरह की दिक्कतें भी आईं थीं। इन्हीं अनुभवों पर सेना ने रक्षा मंत्रालय को एक प्रस्ताव में कई सुझाव भेजे थे, ताकि आगे कभी चीन के साथ विवाद होने पर डोकलाम जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। सेना के इन सुझावों पर अमल होने की बजाय यह फाइल तीन साल से मंत्रालय में धूल फांक रही रही है। डोकलाम विवाद से सबक न लेने का ही नतीजा है कि चीन से एलएसी पर टकराव लगातार बढ़ रहा है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने अब फिर मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने यह मुद्दा रखा है।
भारत और चीन के बीच गतिरोध की शुरुआत डोकलाम विवाद से शुरू हुई थी। भारत और चीन के बीच यह विवाद रणनीतिक रूप से उस पठारी इलाके को लेकर हुआ, जिसे दुनिया डोकलाम के नाम से जानती है। यह एक विवादित पहाड़ी इलाका है, जिस पर चीन और भूटान दोनों ही अपना दावा जताते हैं। डोकलाम में जब चीन ने सड़क बनानी शुरू की तो 16 जून, 2017 को भारतीय सैनिकों ने विरोध किया। सितम्बर, 2017 में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होने से पहले चीन ने अचानक अपनी सेना को पीछे करने का फैसला किया और 28 अगस्त, 2017 को दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गईं। इस तरह दोनों देशों की सेनाएं 73 दिन तक डोकलाम में आमने-सामने डटी रहीं। इस दौरान भारतीय सेना को कुछ इस तरह के अनुभव हुए, जिससे ऑपरेशनल गतिविधियों को चलाने के लिए डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ (स्ट्रेटजी) यानी उप सेना प्रमुख (रणनीति) जैसे पद की जरूरत महसूस हुई।
दरअसल डोकलाम से दोनों सेनाओं के हटने पर गतिरोध खत्म मानकर भारत की ओर से आगे के लिए कोई रणनीतिक फैसला नहीं लिया गया लेकिन चीनी सैनिक वहां कड़ाके की ठंड में भी डटे रहे। भारतीय सेना बाद में वहां निगरानी नहीं कर पाई, क्योंकि भारतीय सेना को इस बेस तक पहुंचने में खच्चरों के लिए बने रास्ते का इस्तेमाल करने पर सात घंटे तक का वक्त लग जाता था। इसका नतीजा यह रहा कि चीन ने विवादित स्थल को छोड़ दूसरे रास्ते से दक्षिण डोकलाम तक पहुंचने के लिए 1.3 किलोमीटर लंबी नई सड़क बना ली। इस रोड के जरिए चीनी सैनिक दक्षिण डोकलाम में स्थित जम्फेरी रिज तक पहुंच सकते हैं। यह सड़क भारतीय चौकियों से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। हालांकि अब बीआरओ ने पिछले साल तारकोल से बनी हर मौसम में काम करने वाली सड़क तैयार कर ली है, जिससे अब भारतीय सेना को रणनीतिक रूप से बेहद अहम डोकलाम बेस तक पहुंचने में 40 मिनट से ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा। इसके बाद चीन ने दो पुरानी सड़कों की मरम्मत करने के साथ ही भारतीय गतिविधियों पर नजर रखने के लिए इन इलाकों के आसपास दो निगरानी प्रणाली और हाई फ्रीक्वेंसी के कैमरे भी लगाये हैं।
डोकलाम विवाद के बाद रणनीतिक फैसले न होने से मात खाई सेना ने डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ का पद सृजित करने के लिये रक्षा मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था। सेना का कहना है कि ऑपरेशनल कामकाज के लिए इस पद की सख्त जरूरत है। इस पद के सृजित करने से बजट पर कोई असर नहीं होगा, क्योंकि यह पद असम रायफल्स के लेफ्टिनेंट जनरल पोस्ट के बदले में बनाने का सुझाव दिया गया है। सेना का मानना है कि इस पद के सृजित होने से सेना के कामकाज में तालमेल का अभाव नहीं रहेगा। बड़े पैमाने पर होने वाले किसी भी ऑपरेशनल कामों में परेशानी नहीं होगी। डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ की मौजदूगी में आर्मी हेडक्वॉर्टर पर भी भार काफी कम होगा। रक्षा मंत्रालय को भेजे गये प्रस्ताव के अनुसार सृजित किये जाने वाले पद डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ को सैन्य संचालन के महानिदेशक, सैन्य खुफिया, ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स, परिप्रेक्ष्य योजना और सूचना युद्ध के संचालन की जिम्मेदारी दी जानी थी। इस सब के बावजूद इस पद को सृजित करने की मंजूरी 3 साल बाद भी रक्षा मंत्रालय के वित्त विभाग से नहीं मिल सकी है।
पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चीन से टकराव बढ़ने और गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद फिर डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ की जरूरत महसूस हुई है ताकि तत्काल रणनीतिक फैसले लेकर ऑपरेशनल गतिविधियों का संचालन किया जा सके। इस पर सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने अब फिर से मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने यह मुद्दा रखा है। कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं में सहमति जताने के बावजूद चीन ने पैंगोंग त्सो और गोगरा के भारतीय क्षेत्रों से अपनी सेना हटाने से इनकार कर दिया है। इसलिए भारतीय फौज ने भी ठंड के दिनों में भी टिकने की तैयारी कर ली है। पूर्वी लद्दाख में चीनी फौज की घुसपैठ को देखते हुए भारतीय सेना ने कई नई चौकियों का भी निर्माण किया है।