सरकारी डॉक्टरों की सुरक्षा संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश देने से इनकार.

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वकील आलोक अलख श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग की है। याचिका में पश्चिम बंगाल के एनआरएस मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की गई। याचिका में मांग की गई है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की सुरक्षा के सुरक्षा गार्ड्स की तैनाती की जाए।



नई दिल्ली, 17 जून (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट सरकारी डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर दायर याचिका पर जुलाई में सुनवाई करेगा। कोर्ट ने आज कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच ने कहा कि पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में डॉक्टरों ने हड़ताल खत्म कर ली है इसलिए इस पर अब जुलाई में ग्रीष्मावकाश के बाद सुनवाई होगी।
कोर्ट ने कहा कि हम आम लोगों और कानून व्यवस्था के मूल्य पर डॉक्टरों को सुरक्षा देने का आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। हम पुलिस बलों की उपलब्धता के आधार पर ही कोई भी फैसला करेंगे। आज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने याचिकाकर्ता की मांग का समर्थन करते हुए अपने को पक्षकार बनाने की मांग करने वाली याचिका दायर की।
वकील आलोक अलख श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग की है। याचिका में पश्चिम बंगाल के एनआरएस मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की गई। याचिका में मांग की गई है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की सुरक्षा के सुरक्षा गार्ड्स की तैनाती की जाए।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 10 जून को एक 75 वर्षीय बुजुर्ग रोगी की कोलकाता के एनआरएस अस्पताल में मौत हो गई। उसके बाद मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों ने वहां मौजूद जूनियर डॉक्टरों की जमकर पिटाई की। उस हमले में एक जूनियर डॉक्टर परिबाहा मुखर्जी को गंभीर चोटें आई हैं। इस घटना के विरोध में पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में जूनियर डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गए। इससे पूरे देश की हेल्थकेयर सेवाएं चरमरा गई।
याचिका में कहा गया है कि इंडियन मेओडिकल एसोसिएशन(आईएमए) की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर के 75 फीसदी से ज्यादा डॉक्टर्स को किसी न किसी तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों के आईसीयू में हिंसा की 50 फीसदी घटनाएं हुई हैं। 70 फीसदी हिंसा के मामलों में मरीजों के रिश्तेदार शामिल रहे हैं।

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