भारत-चीन के बीच डिवीजनल कमांडर स्तर ​की बातचीत बेनतीजा

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पूर्वी ​लद्दाख में ​​6 जून को फिर होगी​ ब्रिगेडियर स्तर ​की ​बैठक 



नई दिल्ली, 02 जून (हि.स.)।​ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल- एलएसी) पर तनाव दूर करने के लिए​ भारतीय सेना और चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी- ​​पीएलए) के ​बीच छह दौर की वार्ता नाकाम होने के बाद मंगलवार को हुई ​डिवीजनल कमांडर स्तर ​की बातचीत भी बेनतीजा रही​।​ ​अब पूर्वी ​लद्दाख में ​​ब्रिगेडियर स्तर ​की अगली बैठक 6 जून को​ तय की गई है।​ भारत और चीन ​लगातार कह रहे हैं कि दोनों देश आपसी बातचीत और विचार-विमर्श के माध्यम ​से ​सीमा पर तनाव को दूर करने के लिए बिना किसी बाधा के काम कर रहे हैं। ​इसके बावजूद लगातार वार्ता नाकाम होते देख सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि चीन बातचीत के बहाने समय ले रहा है​ और अन्दर ही अन्दर अपनी तैयारियां करने में जुटा है​​। ​​
सूत्रों के मुताबिक सीमा ​पर तनाव दूर करने के लिए प्रोटोकॉल के मुताबिक ​पहले स्थानीय कमांडर​ स्तर​ पर बातचीत कर मामला सुलझाने ​के लिए दो दौर ​की ​वार्ता हुई​​​​​।​ भारत का कहना है कि उस वार्ता के दौरान लिए गए फैसलों को चीनी सेना ने जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया​, ​जिससे तनाव में कमी नहीं आई।​ ​इसलिए इसके बाद प्रतिनिधि मंडल के तौर पर दोनों ​सेनाओं के ब्रिगेडियर ​स्तर​ के अधिका​रियों के बीच मीटिंग ​हुई।​ ​वार्ता के दौरान हालांकि कुछ छोटे मसलों पर सहमति भी बनी जिसके बाद चीन और भारत ने भी अपने कुछ ​भारी वाहनों को पीछे किया। ​इसके बावजूद ​तनाव खत्म करने के लिए दोनों देश किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाए। ​​कमांडर स्तर पर मामला न सुलझने पर ​​​​मंगलवार को डिवीजनल कमांडर स्तर ​की ​बैठक ​हुई जिसमें ​दोनों तरफ के मेजर जनरल ​स्तर के ​अधिकारियों ने ​हिस्सा लिया​​। ​यह बैठक भी बेनतीजा रही। अब ​6 जून को​ पूर्वी ​लद्दाख में ​​भारतीय सेना और ​​पीएलए के ​​​ब्रिगेडियर स्तर पर ​फिर ​वार्ता तय की गई है​।​
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​रक्षा विशेषज्ञ​ ब्रह्म चेलानी का कहना है कि पूर्वी लद्दाख में चीन के पसंदीदा सहूलियत वाले स्थानों को सैन्य रूप से हथियाने के बाद भारत ने तीसरी बार कहा ​है ​कि सीमा की स्थिति ‘स्थिर और नियंत्रणीय’ है। यही बात चीन भी कह रहा है।​ इसके बावजूद चीन के साथ ​लगातार गतिरोध जारी है। सैनिकों और मशीनों की आपूर्ति करने वाले ​चीन के ​ट्रक गलवान घाटी के लिए अपना रास्ता बना रहे हैं। इसी तरह भारत भी चीन के अतिक्रमणों से निपटने के लिए कश्मीर से लद्दाख तक सैनिकों को स्थानांतरित कर रहा है।
​सेना के ​एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा​ कि ​एलओसी से एलएसी तक सैनिकों की शिफ्टिंग गंभीर परिस्थितियों में होती है और ये ​भी ​गंभीर हालात हैं। उन्होंने कहा कि कमांड और कॉर्प्स स्तर पर भारत के पास रिजर्व सैनिकों की बड़ी संख्या हैं जिन्हें जमीन पर परिचालन को प्रभावित किए बिना स्थानांतरित किया जा सकता है। कश्मीर के मामले में इसी तरह का आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया गया था। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीन ने इस बीच कोई नया सैन्य निर्माण नहीं किया है। भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने विवाद के मद्देनजर दूसरे दौर की बातचीत की ताकि एक माह पूर्व पूर्वी लद्दाख के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में हुई सैन्य टकराव की घटनाएं दोबार न हों लेकिन इस वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला​ है।
भारतीय सशस्त्र बल एक माह से एलएसी के पास तैनात रहकर चीन की उन हरकतों पर पैनी नजर रख रहे हैं जिसमें उसने अपने क्षेत्र के भीतर अतिरिक्त सैन्य टुकड़ियों के साथ तोपों, टैंकों और अन्य बख्तरबंद वाहनों की तैनाती की है। चीन द्वारा सीमा पर पिछले एक माह के भीतर सैन्य सामानोंं का जमावड़ा किए जाने की पुष्टि भारत-चीन सीमा से लगे गांवों के ग्रामीण भी करते ​हैं​। इनका कहना है कि हर रात उनके क्षेत्र से 80 से 90 ट्रक गुजरते हैं। इस काफिले में सेना और नागरिक वाहन होते हैं जो चीनी सेना के लिए गोला-बारूद और अन्य सामान की आपूर्ति करते ​हैं​। ​भारत-चीन सीमा पर 10 प्रतिशत लंबित कार्यों को पूरा करने के लिए ​​​भारत भी ​12​ हजार अतिरिक्त ​लोगों को प्राथमिकता ​के आधार ​पर भेज रहा है।
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पिछले दिनों चीनी एयरबेस गरगांसा, होटन और काशगर से लद्दाख तक लड़ाकू विमानों ने उड़ान भी भरी लेकिन इसे नियमित अभ्यास का हिस्सा बताया गया। सिर्फ चार से पांच जे-11 लड़ाकू विमानों को गरगांसा (नागरिक हवाई क्षेत्र नगरी कुन्हा) एयरबेस पर तैनात किया गया है जो एलएसी से लगभग 60-80 किमी दूर है। इसके अलावा ​चीन ने ​कई जे-11 और जे-8 ​लड़ाकू ​विमानों को चीनी एयरबेस हॉटन और काशगर में ​तैनात कर ​रखा है। यह इसलिए चिंता की बात नहीं है क्योंकि जब चीनी लड़ाकू विमान एलएसी के पास उड़ान भरते हैं तो भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान भी ऐसा ही करते हैं। इसके अलावा चीनी जेट विमानों की हथियार और ईंधन-वहन ​की ​क्षमता उनके हवाई अड्डों के उच्च ऊंचाई पर स्थित होने के कारण काफी सीमित है।

 


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