प्रबुद्धजनों की राय : बांग्लादेश को हिन्दू शून्य बनाने के पीछे इस्लामिक साजिश

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कोलकाता, 22 अक्टूबर (हि.स.)। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू आबादी पर बर्बर हमले और अत्याचार की खबरें पूरी दुनिया में सुर्खियों में हैं। भारत में भी बांग्लादेश की हिंदू मंदिरों और घरों में तोड़फोड़ की घटनाओं को लेकर भारत में रोष चरम पर है। खासकर पश्चिम बंगाल में नियमित इन घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं।

बांग्लादेश की घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले समय में बांग्लादेश को हिंदू शून्य करने के लिए इस्लामिक साजिश के तहत काम किया जा रहा है। हिंदुओं को मौत के घाट उतारना, उनकी बहन-बेटियों माताओं से दुष्कर्म और बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने की रणनीति शामिल है। बांग्लादेश के हालात को लेकर हिन्दुस्थान समाचार ने कई विशेषज्ञों से बात की है। पेश है उनसे बातचीत के खास अंश

पूर्व चीफ पोस्टमास्टर जनरल गौतम भट्टाचार्य ने बताया कि अविभाजित बंगाल में कलकत्ता एकमात्र महत्वपूर्ण शहर था, जहां शिक्षा, संस्कृति और रोजगार फला-फूला। उच्च और मध्यम वर्ग के परिवारों के लड़के पढ़ने या काम करने के लिए कलकत्ता में आते और रहते थे। कलकत्ता आने वाले हिंदुओं की संख्या अधिक थी क्योंकि बंगाली मुस्लिम समाज में मध्यम वर्ग अभी तक इतना जागरूक नहीं था। विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में लाखों हिंदू अपनी मातृभूमि से भाग गए और पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत में शरण ली। उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि स्वतंत्र बांग्लादेश की स्थापना के साथ हिंदुओं की दुर्दशा समाप्त नहीं हुई। पूर्वी पाकिस्तान या उसके बाद के बांग्लादेश में हिंदुओं की बेबसी को समझने के लिए विभाजन के दौरान बंगाल की राजनीति को समझना होगा। उन्होंने बताया कि 1946 के प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम लीग ने बंगाल में मुसलमानों के लिए आरक्षित 118 केंद्रों में से 113 पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, राष्ट्रीय कांग्रेस ने आम जनता के लिए आरक्षित छह में से छह सीटों पर जीत हासिल की। विभाजन के तुरंत बाद कांग्रेस के लगभग सभी नेता पश्चिम बंगाल चले गए। नतीजतन, पूर्वी पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम निवासी राजनीतिक रूप से दिशाहीन हो गए।

विभाजन के बाद राष्ट्रीय कांग्रेस ने नवगठित पाकिस्तान में अपने संगठन को भंग कर दिया। इस फैसले ने पूर्वी पाकिस्तान की गैर-मुस्लिम आबादी की राजनीतिक रीढ़ को तोड़ दिया। बांग्लादेश में आज भी करीब डेढ़ करोड़ हिंदू प्रताड़ित होकर इसकी कीमत चुका रहे हैं। मुझे लगता है कि तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस का निर्णय पाकिस्तान के अल्पसंख्यक लोगों के साथ अंतिम विश्वासघात था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग लेकिन स्वतंत्र भारत में भी मौजूद है।

भाजपा राज्य समिति के सचिव संघमित्रा चौधरी ने विभाजन का समय याद करते हुए बताया कि हमने कांटेदार तार की बाड़ के बारे में सुना था। 1947 में पिताजी तब बहुत छोटे थे। दादी अपनी कोठरी में एक-दो गहने छुपा रही थीं लेकिन उन्होंने (मुसलमानों ने) इसे भी छीन लिया। मेरे दादा उर्फ गोपाल डॉक्टर पहले ही बड़े और मंझली मौसी को कलकत्ता भेज चुके थे। डॉ बाबू की बेटी समझकर एक मुस्लिम परिवार ने उनकी मदद की। हमारा पुश्तैनी घर ढाका के ताजपुर गांव में था। उस समय नोआखली और चटगांव में दंगों की आग जल रही थी। कई हिंदू परिवार घर, भूमि, बगीचों, तालाबों से भरी मछली सब छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए आए। उन्होंने बताया कि वह इतिहास 1971 में दोहराया गया था। इसके बाद भी उत्पीड़न बंद नहीं हुआ। वह परंपरा आज भी जारी है।

राष्ट्रवादी प्रोफेसरों और शोधकर्ता संघ की राज्य कार्यकारी समिति के पूर्व सदस्य डॉ. रंजन बनर्जी ने बताया कि अगले एक दो दशक में बांग्लादेश हिंदू शून्य होने जा रहा है। इसके कारण का जवाब पिछले इतिहास में है। रवींद्रनाथ से लेकर स्वामी विवेकानंद तक, शरत चंद्र से लेकर बंकिम चंद्र तक सभी ने बार-बार चेतावनी दी थी। इसलिए फारस और इंडोनेशिया हिंदू शून्य हो गया और उससे भी पहले अरब प्रायद्वीप मूर्तिपूजक विहीन हो गया। बांग्लादेश के मामले में यह अलग नहीं होगा। अगर ऐसा है तो इतिहास भी उन हत्यारों के शास्त्रों को झूठा साबित करेगा। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध यहूदी शोधकर्ता ने एक दशक पहले टिप्पणी की थी, “मिलियन किल्ड, मिलियन एट रिस्क, बट बिलियन साइलेंट।”


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